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Saturday, 22 October 2011

जाके दरिया में गिरूंगा मैं नदी हूँ यारों



लोग कहते हैं मैं दीवाना कवि हूँ यारों
जाके दरिया में गिरूंगा मैं नदी हूँ यारों

हादसा हो या कोई बात भूलती ही नही
मैं तो इतिहास की यादगार कड़ी हूँ यारों
नही हो पा रही बंद मैं ऐसी फाइल हो गया
रोजाना तारीखों पर आके मैं खड़ी हूँ यारों
मैं अमीरों की भूख हूँ जो मिटती ही नही
गिद्ध की नजरों सी रुपयों पे गढ़ी हूँ यारों
मुझको समझेंगे वही जो भी बेचैन यहाँ
चैन वालों के लिए मैं अजनबी हूँ यारों



Friday, 21 October 2011

दिमाग पर यादों का भारी कैसे पलड़ा है



पूछूँगा खुदा मुझको गर मिल गये कभी
तदवीर और तकदीर में से कौन बड़ा हैं
क्यूं ता-उम्र सफर में ही रहता हैं आदमी
महफ़िल में होके भी कोई कैसे तनहा है
सीने में दिल,दिल में धडकने है लेकिन
रग रग में कोई बनके लहू क्यूं दौड़ता हैं
पलकों की मुंडेरों पे जुगनू बैठते है क्यूं
दिमाग पर यादों का भारी कैसे पलड़ा है
मालूम हो किसी को तो बताना हमें जरुर
क्यूं बेचैन जफा का हुश्न से गहरा नाता हैं

Thursday, 20 October 2011

मुझसे मिलना है तो मेरी बस्ती में आइए



ना हूजुर आप मतलब परस्ती में आइए
छोड़ कर गर्ज़ थोड़ी सी मस्ती में आइए
मैं कमल हूँ मिलूंगा कीचड़ में तुझको
मुझसे मिलना है तो मेरी बस्ती में आइए
दिलजले जाने क्या पूछ बैठेंगे तुझसे
हाय महफ़िल में ना तंगदस्ती में आइए
जान हैं तो जहाँ हैं बाद में होता रूतबा
बात को समझकर मेरी कश्ती में आइए
कुछ उम्र का भी तकाजा होता हैं बेचैन
इतनी जल्दी बड़ों की ना हस्ती में आइए

Wednesday, 19 October 2011

Songs.PK - Jagjit Singh,Parwaaz,Ghazals,Indian,Download Free Ghazals,Ghazals

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अपने दिमाग का खुद रकीब हूँ



सच पूछिए तो मैं बेहद गरीब हूँ
हालात से लड़ता हुआ नसीब हूँ
हर फैसला दिल पर छोड़ देता हूँ
अपने दिमाग का खुद रकीब हूँ
तन्हाई में खुद से बात करता हूँ
इसलिए मैं दूसरों से अजीब हूँ
निकलवा ही लेते हैं मुझसे काम
जिनके लिए मैं एक तरकीब हूँ
पसंद नही बकवासमंदो को बेचैन
उनके सर पर मैं लटकती सलीब हूँ

Tuesday, 18 October 2011

हमें तो हमारा ज़ज्बात खा गया



दिल के मामले में मात खा गया
हमें तो हमारा ज़ज्बात खा गया
इस कदर चालाक हैं महबूब मेरा
मिला तो काम की बात खा गया
सफर में एक छतरी थी दोनों पे
ना बरसा मौसम बरसात खा गया
करके बहाना फुर्सत न मिलने का
मेरे हिस्से की मुलाक़ात खा गया
हराम का उसे खाने की आदत थी
इसलिए वो मेरे ख्यालात खा गया
हद की भी हद होती हैं बेचैन
वो कैसे अपनी औकात खा गया

धडकन पर सबके पहरा मिलेगा



जख्म दिल का गहरा मिलेगा
हर आँख में इक चेहरा मिलेगा
ये अलग बात है कोई हाँ ना भरे
धडकन पर सबके पहरा मिलेगा
रूह खिल उठेगी जनाबे आली
जीत का जिस पल सेहरा मिलेगा
खुद पर ही भरोसा नही जिसका
उस शख्स का वक्त ठहरा मिलेगा
ना सोचा था दुआ के वक्त बेचैन
इस दौर का खुदा बहरा मिलेगा

Monday, 17 October 2011

मत पूछो कलाकारी ने छिना है क्या हमारा



कभी तालियों ने लूटा कभी शाबाशी ने मारा
मत पूछो कलाकारी ने छिना है क्या हमारा

शोहरत मैं मानता हूँ मिल ही गई हैं लेकिन
खाली नाम के ही दम पर होता नही गुज़ारा
तकलीफ दूसरों की हुआ देखकर दुखी पर
ज़ज्बातों में बहकर मिला फायदा क्या यारा
दुनिया है ये उसी की जो लूटे इसको हर पल
रखें ठोकरों के ऊपर सदा ईमान का पिटारा
वे जानता है पक्के गम और ख़ुशी की भाषा
जो चख चुके हैं यारों अश्कों का स्वाद खारा
कहने को हैं आसां करना हैं कितना मुश्किल
बस तूफानों से लड़ें वो चाहते हैं जो किनारा
बेचैन की गुज़ारिश हैं अगले जन्म में दाता
दिल सीने में ना देना होगा अहसान तुम्हारा

Sunday, 16 October 2011

करेंगे अब खुलासा करेंगे अब खुलासा



खैर नहीं सुन लो तुम्हारी भ्रस्त्ताचारियों
लड़ने की हो गई हैं तैयारी भ्रस्त्ताचारियों
करेंगे अब खुलासा करेंगे अब खुलासा ............................

भूखमरी खुदगर्जी जो तुमने फैलाई हैं
रिस्प्त्खोरी की जो तुमने हवा चलाई हैं
उस हवा पर नजर हमारी भ्रस्त्ताचारियों
करेंगे अब खुलासा, करेंगे अब खुलासा ............................

सबके सपने सच होंगे सबकी होगी जीत
रोज खुलासे होने से गूंजेंगे प्यार के गीत
 होगी छवि देश की न्यारी भ्रस्ताचारियों
करेंगे अब खुलासा, करेंगे अब खुलासा ............................

वसुधैव कुटुम्बकम का नारा सब लाओ
अन्ना जी की राह पकड देश के हो जाओ
अब जाग गई जनता सारी भ्रस्ताचारियों
करेंगे अब खुलासा, करेंगे अब खुलासा ............................

आओ शहीदों के सपनों को पूरा हम कर दें
भारत माँ की दुःख तकलीफें सारी ही हर दें
बेचैन होने की तुम्हारी बारी भ्र्स्ताचारियों
करेंगे अब खुलासा, करेंगे अब खुलासा ............................



एक प्यार स्कूली को खड़ा सामने पाता हूँ



बचपन से जवानी तक जब नजरें दौड़ाता हूँ
एक प्यार स्कूली को खड़ा सामने पाता हूँ

नही भूला हूँ दोनों ही हम उमर के कच्चे थे
अहसास में पर यारों हम बिलकुल सच्चे थे
बंद करता हूँ जब आँखें कही खो सा जाता हूँ
एक प्यार स्कूली को..................

उस जैसी सादगी और मुस्कान नही देखी
कहने को तो दुनिया में खूब निगाह फेंकी
हाय उसकी नजाकत पर सर को झुकाता हूँ
एक प्यार स्कूली को..................

रातों को उठ उठ कर मैंने रोकर भी देखा हैं
तन्हाइयों में सिसकी का होकर भी देखा हैं
नहीं कुछ भी हुआ हासिल यारों पछताता हूँ
एक प्यार स्कूली को..................

कितना ही मेरे दाता मेरे हिस्से कयामत दे
याददाश्त को भी बेशक कोई भी आफत दे
पर पाठ महोब्बत का नही भूलना चाहता हूँ
एक प्यार स्कूली को..................

नही बात अकेले की मैं सबकी करता हूँ
इल्जाम महोब्बत का हर सर पे धरता हूँ
यहाँ बेचैन हैं हर कोई सरेआम बताता हूँ
एक प्यार स्कूली को..................


Saturday, 15 October 2011

वो आता हैं याद चाहे बुढ़ापे में आये


रूह से चिपक जाता हैं उतरता नहीं हैं
इश्कियां भूत जीते जी मरता नहीं हैं
कितना ही पुराना हो जख्मे-महोब्बत
पूरी तरह से यह कभी भरता नहीं हैं
लफ्जों से झलक जाता हैं हाले-दिल
चेहरा आइना हैं कभी मुकरता नहीं हैं
वो आता हैं याद चाहे बुढ़ापे में आये
यादों का नश्तर रहम करता नहीं हैं
हर आँख में हैं मौत का खौफ बेचैन
किसने कहा की वो कभी डरता नही हैं

दाम्पत्य में सुखी जीवन का साधारण सा राज़...............................

खुद को शेर समझो...
........................और.................
......................बीवी को......................................................................................................................................................................................................................................................................................................................................................................................................................................................................................................................................
.........
शेरोंवाली .....हैप्पी करवा चौथ.....

तेरी आँख में तस्वीर अपनी क्या देखी



तन भीगने से तुमने बचा लिया बेशक
मन भिगों गई बरसात क्या करूं बता
रह रहकर ख्याल तुम्हारा ही आ रहा हैं
मेरे बस में नही ज़ज्बात क्या करूं बता
कह तो दिया तुम बिन अब जीना क्या
तुम समझते नही बात क्या करूं बता
तेरी आँख में तस्वीर अपनी क्या देखी
छुट गया आईने का साथ क्या करूं बता
तुम दे दो जवाब तो बन जाएँ लाजवाब
वरना हैं वही सवालात क्या करूं बता
इश्क लडाना आता तो बेचैन ना होता
यही पर खाता हूँ मात क्या करूं बता


Friday, 14 October 2011

CHAND UGA HAIN ZMI PE YAA AASMAAN PE करवा चौथ पर आप सबके लिए वी एम बेचैन द्वारा लिखा गया एक पैरोडी गीत

एक दिल हम सीने में एक घर छोड़ते है





यूं तो पत्नी पर इल्जाम ना लगाओ यारो
उनसा कोई ओर है तो सामने लाओ यारो

एक दिल हम सीने में एक घर छोड़ते है
यदि में गलत हूँ तो गलत ठहराओ यारो
तुम्हरे बच्चे पाल दिए घर सम्भाल लिया
मेहरबानी ये मिटटी में ना मिलाओ यारो

अब भी गर भ्रम है तो तलाक देकर देखो
फिर रसोई के रस्ते मैदान में आओ यारो
ढूंढते हो जिस महबूब की आँखों में प्यार
उस प्यार पर चिल्लाकर तो दिखाओ यारो

पत्नी से बड़ी माँ तो कोई होती नही बेचैन
अपनी नही तो बच्चो की तो बनाओ यारो

हिज्र ना किसी के लिए तेज़ाब बने



इधर उधर बिखरे हैं यादों के पन्ने
मिलें तुम्हारा साथ तो किताब बने
काश महोब्बत में सारे दर्दे दिल का
परचून जैसा अपना भी हिसाब बने
सोहनी को लेकर फिक्रमंद हूँ इतना
डूब जाऊं गर अश्कों की चनाब बने
रूह तक जलाकर ख़ाक कर देता हैं
हिज्र ना किसी के लिए तेज़ाब बने
दौर कैसा भी आये इश्क में बेचैन
ना किसी की हालत इज़्तिराब बने 










शक्ल देखकर कोई भ्रम ना पाल



पहले जैसा अब जमाना नही हैं
मुकरने का कोई बहाना नहीं हैं
किसी भी बात से फिर सकते हो
जुबां सच्चाई का पैमाना नहीं हैं
दिल में सभी के होती हैं हलचल
इक शख्स बता जो दीवाना नहीं हैं
ओरों की तफ्तीश वो क्या करेगा
खुद को जिसने पहचाना नहीं हैं
जाम से नहीं तो आँखों से पी लो
दूर तुमसे कोई मयखाना नहीं हैं
शक्ल देखकर कोई भ्रम ना पाल
मिजाज मेरा आशिकाना नहीं हैं
बारहा आईने आगे वो जाएँ बेचैन
जिसका का भी चेहरा पुराना नहीं हैं

Wednesday, 12 October 2011

जल्दी में तो बोतल भी नही खोलता




कहते हैं लोग पीकर ड्रामा करता हूँ
दो पैग लगाते ही हंगामा करता हूँ
यूं ही गिनते हैं मुझे पीने वालों में
मैं तो शराब से रामा रामा करता हूँ
ढलते ही साँझ दोस्त खौफ खाते हैं
इल्जाम है की कारनामा करता हूँ
जल्दी में तो बोतल भी नही खोलता
जो करना हैं खरामा खरमा करता हूँ
ये तो बे-इंतिहा पिलाने वाले जाने
क्यूं बेचैन नशे में मां मां करता हूँ

Monday, 10 October 2011

गजल गायक जगजीत सिंह के निधन पर एक गजल दर्द का आभास छूट गया हमसे



मखमली अहसास छूट गया हमसे
शख्स कोई खास छूट गया हमसे
ग़ज़लें दुल्हन हैं तो दुल्हा था वो
मन का विश्वास छूट गया हमसे
जब भी सुनते थे मिलता था चैन
दर्द का आभास छूट गया हमसे
कौन मिलवायेगा दिल को दिल से
रिश्तों का "पास" छूट गया हमसे
कैसे गुजरेगी जिंदगी अब बेचैन
सच्चा इखलास छूट गया हमसे







Sunday, 9 October 2011

सितमगर से यारी हैं इन दिनों



मन थोडा सा भारी हैं इन दिनों
सितमगर से यारी हैं इन दिनों
कहने को तो सब ठीक हैं मगर
हल्की सी बेकरारी हैं इन दिनों
हार जीत की बात करते हैं सभी
हरेक शख्स जुआरी हैं इन दिनों
अपना तो जिक्र उठता ही नही
चर्चाए ही तुम्हारी हैं इन दिनों
फरेब से कोई बचकर दिखाए
हर तरफ कलाकारी हैं इन दिनों
काम पड़ने पर गधा बाप बना लो
यही तो दुनियादारी हैं इन दिनों
चैन नही बेचैन उसके बिना अब
अपनी यही लाचारी हैं इन दिनों

यहाँ क्या मैं ही बेचैन हूँ



शर्मिंदा हूँ किसी बात से
नही सोया हूँ कई रात से
हुआ जाने कैसे हादसा
अनचाही सी मुलाक़ात से
वो जवाब ऐसा ही दे गये
डरता हूँ अब सवालात से
रह जाता हूँ बस कांप कर
हाय इश्क के ख्यालात से
तुझे जीते जी मरवा देगा
नही यारी रख ज़ज्बात से

वो किसकी जुल्फें संवारेगा
जो उलझ रहा हो हालात से
यहाँ क्या मैं ही  बेचैन हूँ
कोई पूछ दे कायनात से

अनछुए ज़ज्बात है अभी



साधारण सी बात है अभी
कच्ची मुलाकात है अभी
दिल का हाल कैसे कह दूं
अनछुए ज़ज्बात है अभी
कैसे आयें इक छतरी नीचे
हल्की सी बरसात है अभी
वो होंगे धुरंधर इश्क में
मेरी तो शुरुआत है अभी
पकड़ हाथ सीने पर रखूं
मेरी कहाँ औकात है अभी
जवाब मिलते ही बताऊंगा
जिंदगी सवालात है अभी 
दिन ही तो गुज़रा है बेचैन
पहाड़ सी बाकि रात है अभी

दिल के इलावा चैन भी खोकर तो देखिये



शर्मिंदगी को माफ़ी से धोकर तो देखिये
मिलेगा शकुं तन्हाई में रोकर तो देखिये
पाने का छोड़कर लालच कभी मेरे हूजुर
दिल के इलावा चैन भी खोकर तो देखिये
मिल जायेंगे सवालों के सारे जवाब भी
अहसास के जंगल से भी होकर तो देखिये
हंसने का जब मन करे बिन बात आपका
तस्वीर मेरी में कोई भी जोकर तो देखिये
मेरी तरह से आप भी दिल ही दिल में
सपना कोई भी पहले संजोकर तो देखिये
हर वक्त जागे जागे ना रहा करो बेचैन जी
ख्वाबों में आऊंगा कभी सोकर तो देखिये



Saturday, 8 October 2011

उम्र को भी पछाड़ के रख दिया



हर अदा में छिपे हैं सौ-सौ राज
क्या लगाऊं अदाओं का अंदाज़
एक दफा जो भी मिल लें तुझसे
हो जाये है उसका दिल दगाबाज़
असर है तेरी खिलखिलाहट का
नींद में सुनता हूँ हंसी की आवाज़ 
उम्र को भी पछाड़ के रख दिया
बता तो दीजियेगा क्या है राज़
जिसे देखो वो ही बेचैन हुआ है
मान गये तुझको वाह मुमताज़

Wednesday, 5 October 2011

गुलों की खुशबू जिस्म में पुरजोर लाये हो



इतनी  सादगी कहाँ से बटोर लायें हो
लगता है खुदा के यहाँ से चोर लाये हो
शर्मों-हया से पलकें झुका कर चलना
हंसने की अदा काबिले गौर लाये हो
क्यूंकर ना परेशां हो देखकर वो चाँद
जुल्फों के साए में चेहरा चकोर लाये हो
देखकर महफ़िल में हर कोई कह रहा है
जुल्फें नही ज़ालिम रेशम की डोर लाये हो
सुनते ही लगे झूमने लोग होकर दीवाने
सावन के महीने का पायल में शोर लाये हो
हर कोई तुम्हारी और खिंचा जा रहा है
गुलों की खुशबू जिस्म में पुरजोर लाये हो
क्यूंकर ना बढ़े धडकने देखकर बेचैन
तवज्जो आज अपना मेरी ओर लाये हो

Monday, 3 October 2011

मन्दिरों में जाकर कभी माथा नही रगड़ता



मैं बहुत कम लोगों से मुलाक़ात करता हूँ
जिनसे याराना हो उन्ही से बात करता हूँ
कहने को तो आती है मुझे जादूगरी मगर
ना दोस्तों के साथ कोई करामात करता हूँ
बस सीख ही नही पाया टालने की आदत
सब फैंसले मैं दोस्तों हाथों हाथ करता हूँ
मन्दिरों में जाकर कभी माथा नही रगड़ता
अपनी तदबीर से ही मैं सवालात करता हूँ
नही ला पाया उस्तादों सा पैनापन हुनर में
तुकबंदियों के सहारे पेश ज़ज्बात करता हूँ
शायद इसी लिए लोग मुझे जानने  लगे है
आये रोज़ कोई ना कोई खुरापात करता हूँ
खुदा जाने हो जाते है क्यूं कमजोर बेचैन
मैं तो बारहा मजबूत अपने हालात करता हूँ


शाही अंदाज़ हूँ मैं नवाबों में मिलूँगा



मरने के बाद मैं ख्वाबों में मिलूँगा
ढूँढना गजलों की किताबों में मिलूँगा
कर सको तो करना महसूस मुझको
खुशबू बनकर मैं गुलाबों में मिलूँगा
यूं भीड़ में बेकार तलाश ना कीजिये
शाही अंदाज़  हूँ मैं नवाबों में मिलूँगा
जो असल की भेंट चढ़ा था वो सूद हूँ
मैं साहूकार के हिसाबों में मिलूँगा 
अधुरा हूँ मुकम्मल होकर भी बेचैन
मैं सवालात बनके जवाबों में मिलूँगा

Sunday, 2 October 2011

सच कहूं मैं बहुत बड़े दिलदार से मिला




जो ऑनलाइन पनपा उस प्यार से मिला
आज फेसबुक के अपने इक यार से मिला
मिलते ही बिछा दी धडकने स्वागत में
सच कहूं मैं बहुत बड़े दिलदार से मिला
बहुत दूर थी बनावटीपन से बातें उसकी
मैं साफ़ सुथरे सच्चे व्यवहार से मिला
यही कहूँगा इस मुलाकात को लेकर के
एक कलमकार एक कलाकार से मिला
 लोहा है जिसकी अदाकारी का जहाँ में
बेचैन आज उस लाठर सरकार से मिला

Friday, 30 September 2011

वो मिले तो किस्सा खत्म करूं



सोच सोचकर उम्र क्यूं कम करूं
वो नही मिला तो क्यूं गम करूं
ना हुआ ना सही दीदार उनका
किसलिए भला आँखे नम करूं
सोचता हूँ लिख डालु विरासत
उसके नाम भी कुछ नज्म करूं
हद हो गई फल के इंतजार की
कितने दिन और अब कर्म करूं
अब नही सुहाती इश्क की बातें
वो मिले तो किस्सा खत्म करूं
महबूब के कपड़ो की कंगाली पर
बता तो बेचैन कितनी शर्म करूं

Tuesday, 27 September 2011

कभी गया ही नही कोई आसमां झुकाने



ना आई नींद रात को किसी भी बहाने
रह रह कर तेरी याद आ बैठती सिरहाने
करवटें सैकड़ों बदली दिले-बेताब ने लेकिन
गूंजते रहे कानों में तेरे बोल अनजाने
महोब्बत के सिवा और भी किस्से है कई
क्यूं कुरेदते हो यारों वो जख्म पुराने
ज़ज्बात मुझसे अपने दबाए ना जायेंगे
कभी चल पड़ी जो मौज कोई तुफां उठाने
छोटी से तमन्ना के लिए जान की बाज़ी
क्या सोचकर बनाए खुदा तुमने परवाने
कौन सा काम है जो इंसां कर नही सकता
कभी गया ही नही कोई आसमां झुकाने
बुरा लगता गर उन्हें यूं मेरा करीब आना
ना जायेगा बेचैन किसी का दिल दुखाने

Monday, 26 September 2011

चेहरा कपड़ो की तरह बदलेगा



वही छिपाएगा हकीकत यारों
जिसके मन में चोर रहता हैं
वो रौब दूसरों पर ही झाड़ेगा
ना खुद पे जिसका जोर रहता हैं
नजर सभी पर शक की डालेगा
यकीं जिसका कमजोर रहता हैं
चेहरा कपड़ो की तरह बदलेगा
दिल में जिसके शोर रहता हैं
हाल बेचैन होने पर यारों
कहाँ अपनों पर गौर रहता हैं



Sunday, 18 September 2011

समझ सकता हूँ कजरारी आँखें



अंगूर की बेटी के जो दीवाने नहीं
वो लोग महफ़िल में बुलाने नहीं
कल के टूटते आज ही टूट जाएँ
झूठे रिश्ते नाते हमें निभाने नहीं
जिंदगी का नशा वो क्या जाने
जिसने उठाकर देखें पैमाने नही
समझ सकता हूँ कजरारी आँखें
इनसे बढ़कर कहीं मयखाने नही
इतना तो तय है सितमगर के
साँझ ढलते ही ख्वाब आने नहीं
कल का ही तो वाक्यात है बेचैन
जख्म महोब्बत के पुराने नहीं

खुल गये है टाँके जख्मों के बेचैन


शुक्र है सम्भाल लिया कलम ने मुझे
वरना मार डाला था तेरे गम ने मुझे
बेशक तुझे पाने का जज्बा था मगर
सनकी किया किस्मत ने भ्रम ने मुझे
किसी का हाथ नही बुलंदी के पीछे
यहाँ तक पहुँचाया है मेरे करम मुझे
बेबसी की कहानी मैं ही जानता हूँ
बहुत तडफाया झूठी कसम ने मुझे
खुल गये है टाँके जख्मों के बेचैन
जब भी कुरेदा है तेरी नज्म ने मुझे

Saturday, 17 September 2011

कौन जख्मी ख्यालात करेगा

खुदा जब करामात करेगा
फैंसले हाथों हाथ करेगा
मतलबियों के मोहल्ले में 
कौन गहरे ज़ज्बात करेगा
वो नेता जी है आदमी नही
क्यूं भूखों का साथ करेगा
फिर खोली है जुल्फें उसने
फिर वो दिन को रात करेगा
शादी शुदा से दिल लगाकर
कौन जख्मी ख्यालात करेगा
बड़े से बड़ा चोर भी बेचैन
घर से ही शुरुआत करेगा

Thursday, 15 September 2011

देखना बोलेगी इक रोज़ मेरी किस्मत



उस दिन समझेंगे मेरी यायावरी लोग
बताऊंगा जब दुनिया में कहाँ क्या है
वक्त के थपेड़ों ने पहुँचाया है यहाँ तक
नही जानता विरासत की हवा क्या है
भरोसा है जिनको इश्क-ए-हकीकी में
वही तो बतायेंगे असर-ए-दुआ क्या है
मुझे इतना समझा दो बस मेरे रकीबों 
रश्क रखने से आखिर फायदा क्या है
देखना बोलेगी इक रोज़ मेरी किस्मत
बता दें बेफिक्र  बेचैन तेरी रज़ा क्या है

कोई हाथ मिलाकर दगा दे जायेगा


महोब्बत का दिल में मान रखा कर
आँखों में दर्द की  पहचान रखा कर

कोई हाथ मिलाकर दगा दे जायेगा
इतनी मत जान पहचान रखा कर
दीवानगी को लोग मजाल समझेंगे
हथेली पे ना अपनी जान रखा कर
मतलब परस्ती कहेंगे आपको सभी
ना दोस्तों के याद अहसान रखा कर
हर अच्छे बुरे की समझा देगा वक्त
बस खुले अपने दोनों कान रखा कर 
घर में  कितनी ही विदेशी चीज़ रख
दिल में पर अपने हिंदुस्तान रखा कर
शेर को सवा शेर जूमला है जब तक
तू  ताकत का ना अभिमान रखा कर
बचपन के देखें ख्वाब पूरे होंगे बेचैन
अपनी सोच की ऊँची उड़ान रखा कर

Tuesday, 13 September 2011

सोचता हूँ कई दफा फुर्सत में बैठकर



सोचता हूँ कई दफा फुर्सत में बैठकर
तेरा प्यार तेरी यादें होती ना अगर
फिर किसके सहारे जिंदगी जीते हम
चलता धडकनों के संग किसका गम

आँखों में तस्वीर किसकी बस्ती दोस्तों
मिट जाती आशिकों की हस्ती दोस्तों
होता नही गर कहीं यादों का मौसम
फिर किसके सहारे ..................

हुश्न की भी फिर कोई तारीफ ना करता
यहाँ एक हंसी के लिए ना कोई मचलता
बनाता नही गर किसी को कोई हमदम
फिर किसके सहारे ........................

हर खूबसूरत शै भी बेकार सी लगती
रात भर आँखें ना किसी के लिए जगती
वजूद ढूंढ़ती फिरती फिर अपना शबनम
फिर किसके सहारे ............................

वो दर्द मीठा-मीठा फिर आता कहाँ से
आहों का अहसास हमें सुहाता कहाँ से
बेचैन होकर ना कोई खाता फिर कसम
फिर किसके सहारे .........................



Monday, 12 September 2011

इक सनक सी दिखी बातों में उसकी



वो पास होकर भी मेरे पास नही लगा
न जाने क्यूं दिल को ख़ास नही लगा
बेशक से बढ़ी धडकने देखकर उसको
अपनेपन का पर अहसास नही लगा
इक सनक सी दिखी बातों में उसकी
विचारों में खुला आकाश नही लगा
यूं ही परेशां थे उसके मुरीद और वो
व्यवहार में मुझे विश्वास नही लगा
शातिर नही होते दिमाग वाले बेचैन
जुमला ये वाकई बकवास नही लगा

Sunday, 11 September 2011

मर्दानगी से तर हो तो मैदान में आइये



आम आदमी होने का न मातम मनाइए
मर्दानगी से तर हो तो मैदान में आइये
सच में गर व्यवस्था बदलना चाहते हो
इन्कलाब का हिस्सा आप बन जाइये
यूं ही साफ नही होगी काई तालाब की
मिल बैठकर विचार कोई आप बनाइए
गरूर गर हुआ है सूरज को रोशनी का
आइना आफ़ताब को मिलके  दिखाइए
गुस्सा हर बात पर अच्छा नही बेचैन
थोडा वक्त के सांचे में भी ढल जाइये



Friday, 9 September 2011

इश्क में दोनों का भला हो तो निपट ले



अकेले दिल का मामला हो तो निपट ले
इश्क में दोनों का भला हो तो निपट ले
जिक्र है दिमाग में मचती खलबली का
हिज्र कोई मामूली बला हो तो निपट ले
वही होता है जो भी तकदीर में लिखा है
कभी वार होनी का टला हो तो निपट ले
इश्क तो कर लेता है अब समझोते मगर
हुशन भी तजुर्बों में ढला हो तो निपट ले
इसलिए बेचैन हूँ मंजिल को लेकर दोस्त
मेरे पीछे कोई काफिला हो तो निपट ले

मेरे मित्र अरिहंत जैन के जन्मदिवस पर विशेष व्यापार हो या इश्क मुनाफा मिले बेचैन



खुशियाँ झूमे और आप सदा मुस्कुराये
जन्मदिन पर कोई शुभ संदेश घर आये
रंगीनी मिले बचपन से देखे ख्वाबों को
मन की मुराद हर हाल में पूरी हो जाये
मस्ती के सागर में गोते लगाये जिंदगी
कभी चाहके भी ना गम आपको छू पाए
कोई शख्स या कोई बात आँख में न चुभे
बस आपका भला चाहे वे अपने हो पराये 
व्यापार हो या इश्क मुनाफा मिले बेचैन
दुनिया में आप बेशक कही पर भी जाएँ

चुगली उसके जाने के बाद ना कर


बहाकर आंसू वक्त बर्बाद ना कर
भूलने वाले को तू भी याद ना कर
सौ फीसदी गूंगे बहरों का दौर है
बेकार किसी से फरियाद ना कर
बहाने उसके संजीदगी से लेकर
दर्द नया आये दिन इजाद ना कर
सरे बज्म कह दे जो भी कहना है
चुगली उसके जाने के बाद ना कर
हक मेरे हुनर का मुझे दे दे बेचैन
बेशक मेरी तू कोई इमदाद ना कर

Thursday, 8 September 2011

मेरे बेचैन होने का अफ़सोस न कर




नाम जब खुदा का लेने की सोची
रह रह कर आया ख्याल तुम्हारा
दिलों-दिमाग पर ये कैसा असर है
रूह पर बन है गया जाल तुम्हारा
कालेज के नये माहौल में जाकर
बताओ कैसा बीता साल तुम्हारा
किस कद्र दीवाना हूँ अदाओ का
अजीब सा लगा सवाल तुम्हारा
मेरे बेचैन होने का अफ़सोस न कर
छिपा नही है मुझसे हाल तुम्हारा
 

पढ़े लिखे बेकारों से कहाँ गजल होती है



तेरे इश्क ने बनाया मुझे काम का वरना
पढ़े लिखे बेकारों से कहाँ गजल होती है
तेरी जुदाई ने दी है रंगत मेरे हुनर को
लिखता हूँ जब-जब आँखें सजल होती है
छेड़खानी करने लगता है दिमाग से दिल
इसलिए जवानी में कम ही अक्ल होती है
संस्कारों से लबरेज़ हो सारी ही औलादें
कितनों के नसीब में ऐसी फसल होती है
किसी का भी काम देख लो नजर भर के
झूमती है रूह जब मेहनत सफल होती है
खूबसूरत महबूब और वफा की बात यारों
सुनकर मन में अजीब सी हलचल होती है
बेचैन हूँ मालूम हुआ है यह राज़ जब से
कलियाँ तो गुलशन में रोज़ कत्ल होती है


Wednesday, 7 September 2011

कईयों के लिए तो वनवास है रिश्तेदार


हर शख्स के गले की फांस है रिश्तेदार
बताओ किस किसके खास है रिश्तेदार
मैंने तो आज तक यही देखा है दोस्तों
गरीब आदमियों की आस है रिश्तेदार
नापते है कमबख्त औकात रिश्तों की
बारीकी से देखों बकवास है रिश्तेदार
उम्मीद के जंगले में भटकते है बेचारे
कईयों के लिए तो वनवास है रिश्तेदार
पीढ़ियों के राज सीने में दफन है बेचैन
अपनी पर आये तो राजफास है रिश्तेदार

चिल्ला उठी गरीबों की महोब्बत




सादा सा जिंदगी का राज होता है
फितरत का अक्स मिजाज होता है
कितने ही लगा लो चेहरे पर चेहरे
व्यवहार में छिपा अंदाज़ होता है
चिल्ला उठी गरीबों की महोब्बत
इंटों से बना भी कोई ताज होता है
किसका वास्ता देके समझा रहे हो
बड़ा ही ज़ालिम ये समाज होता है
स्कुल-ए-इश्क में दाखिलाधारी सुनो
हर वक्त हंसता चेहरा दगाबाज़ होता है
सही पेश आती है कई हुश्न की बलाएँ
मनचलों का लुटकर ही इलाज होता है
रुतबे के नाम पर बदतमीज़ ना बनो
आखिर छोटे बड़े का लिहाज़ होता है
बता किसको बेचैन नही करती ये फौज
आदमी नाहक रिश्तों से नाराज़ होता है

Monday, 5 September 2011

जाते ही खत लिखने का करके वादा बेचैन

ठहरी आँखों की कसम दिल की शान चली गई
तू शहर से क्या गई, मेरी तो जान चली गई
दौड़ता है लहू रगों में सिर्फ कहने भर को
जिसे जिंदगी कहते है वो जुबान चली गई
एक बोझ बनकर वो धरती पर रह गया
जमाने में जिस शख्स की पहचान चली गई
तस्वीर के बहाने देकर मेरी तनहाइयो को
देकर सज़ा ए हिज्र का सामन चली गई
पैगाम लेकर आई थी जो मौज साहिल का
उठा कर मेरी जिंदगी में तूफ़ान चली गई
जाते ही खत लिखने का करके वादा बेचैन
खाकर झूठी कसम वो बेइमान चली गई

सीने में छिपा वो राज हूँ में



मानो तो दिल की आवाज़ हूँ मैं
वरना टूटा हुआ  साज़ हूँ मैं
दौड़ कर मुझको गले लगा ले
अपने प्यार का आगाज़ हूँ मैं
बन जाते शाहजहाँ किसी तरह
कहकर तो देखते मुमताज़ हूँ मैं

देखें है जो दोनों ने  मिलकर
उन ख्वाबो की परवाज़ हूँ मैं
देख आईने के आगे बैठकर
तेरा ही नाज़-ओ अंदाज़ हूँ मैं
बेचैन कर देगा खुल गया तो
सीने में छिपा वो राज हूँ में

Sunday, 4 September 2011

यही सीखा उसने बरबाद होकर



बहुत पछताया हो वो सैयाद होकर
जब नही उडा पंछी आज़ाद होकर
जमाना साज़ियो से बावस्ता निकला
हुश्यारी दिखाई उसने उस्ताद होकर
भरोसा भी भरोसे के जितना करो
यही सीखा उसने बरबाद होकर
हंसी से कुछ तो मयस्सर हो शायद
कुछ नही पाओगे नाशाद होकर
मौत के रूबरू हुआ तो कांपने लगा
जो मकतल में रहा था जल्लाद होकर
बेचैन होकर बस मुझे देखने लगा
ना ले सका वो नाम मेरा याद होकर

चुपके-चुपके आहें निकालना सीखा दिया



दर्दे-दिल को हर्फों में ढालना सीखा दिया
शुक्रिया मुर्शिद गम पालना सीखा दिया
टूट जाता वरना, मैं तो दो कदम चलकर
बोझ जिंदगी का संभालना सीखा दिया
किस जुबान से कहूं क्या क्या सीखा दिया
चुटकियो में बुरा वक्त टालना सीखा दिया
परख अपने-बेगानों की बताने के साथ
मुदा सरे बज्म उछालना सीखा दिया
लबों को भी खबर ना हो, कब निकली
चुपके-चुपके आहें निकालना सीखा दिया
फंस जाये गर कभी तन्हाई के हाथों
खामोशी को हथियार डालना सीखा दिया
गजल की बारीकिय समझने के लिए
ज़ज्बात को बेचैन उबलना सीखा दिया 
 

मस्ती इनकी नौकरानी


देखो -देखो तीन तिलंगे
मन कर्म से एकदम चंगे
दुःख चिंता,सोच फ़िक्र के
ये नही लेते बिलकुल पंगे
सत प्रतिशत पवित्र है ये
बोल उठी ये माता गंगे
मस्ती इनकी नौकरानी
ये मनमर्जी के है  पतंगे
चैन की पुडिया है ये बेचैन
बेशक हो शहर में दंगे   

Saturday, 3 September 2011

पहला दुश्मन करीबी होगा



झूठ रास जब आ जाता है
सच को जिंदा खा जाता है
तन्हा बैठ कर रोता है वो
जो जज़्बात दबा जाता है
बेशक चारागर हो कोई
मौत से ना बचा जाता है
खेल तो सब तदबीर का है
तकदीर का तो कहा जाता है
गुलों से पहले बागवां को
खिज़ा का डर खा जाता है
पहला दुश्मन करीबी होगा
नाम जिसका छा जाता है 
जो दुनिया में छा जाता है
कैसा ही लिबास पहन बेचैन
व्यवहार सब बता जाता है 

Friday, 2 September 2011

छोडके कुछेक लोग सब कमजर्फ थे



पल पल जीते जी मारा है खुद को
तब जाके मैदान में उतारा है खुद को
डूबोने वालों ने तो कोई कमी न छोड़ी
बड़ी ही मुश्किल से उभारा है खुद को
छोडके कुछेक लोग सब कमजर्फ थे
जाने कहाँ-कहाँ से गुज़ारा है खुद को
अच्छे बुरे की समझ कोई नही देगा
अपना तो यह इशारा है खुद को
छट गए बेचैन मुश्किलात के बादल
ख़ामोशी से जब पुकारा है खुद को
  

घर की टूटी दिवार की चिंता कर


छोड़ दे शौक घरबार की चिंता कर
नादां ना बन व्यपार की चिंता कर
क्या हासिल हवाई किले बनाने से
घर की टूटी दिवार की चिंता कर
जवानी के भ्रम तो पछतावे देंगे
तू जिंदगी के सार की चिंता कर
खुदगर्जी में उम्र कैसे गुजरेगी
मन में छिपे विचार की चिंता कर
गजल का क्या बन ही जाएगी
अ सुखनवर असआर की चिंता कर
जो रहता है बेचैन तुझे पाने के लिए
कभी तो उस तलबगार की चिंता कर


Wednesday, 31 August 2011

पैग पे पैग लिए मगर नशा नही हुआ


खूब झूमा अपने ख्वाब के साथ बैठ कर
आज पी भाई साहब के साथ बैठ कर
पैग पे पैग लिए मगर नशा नही हुआ
सीखा बहुत कुछ नकाब के साथ बैठ कर
बहुत कम लोगो को मालूम था आज
फंस गया सवाल जवाब के साथ बैठ कर
लाजिम था पीने के बाद खुशबू आये मुझमे
महसूस किया ये सब गुलाब के साथ बैठ कर
ऐसी कोई तीर मारने वाली बात नही बेचैन
देख लिया हमने जनाब के साथ बैठ कर