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Friday 23 December 2011

कभी कभी वक्त पर भी आ जाया करो कमबख्तों

दीवानगी को पागलपन का करार देने वालों
बहुत पछताओगे जीत को हार देने वालों

कभी कभी वक्त पर भी आ जाया करो कमबख्तों
महबूब को महोब्बत में इंतजार देने वालों

तुम्हारे भी तो बन सकते है गोली का निशाना
इंसानियत के दुश्मनों को हथियार देने वालों

कभी आम आदमी के दर्द को भुगत कर देखो
मंचों से भीड़ को इंकलाबी विचार देने वालों

मन की ताकत बढती है सच बोलने से बेचैन
आजमाकर देखो झूठा करार देने वालों

पिछली मुलाकात की इक बात अधूरी है

पिछली मुलाकात की इक बात अधूरी है
वो बात ये थी तुम बिन हयात अधूरी है

सर अपनी गोद से मेरा मत उठाओ जान
अभी मेरी आँखों की बरसात अधूरी है

मैं भी देखूँगा रोज तुम भी देखना चाँद
कही भी रहे निगाहों की मुलाक़ात जरूरी है

वो मान जाये बेशक मेरी बात का बुरा
संग है महबूब तो वस्ल बिना रात अधूरी है

कितना बड़ा हो जाये किरदार तेरा बेचैन
सितमगर के बिना अब तो औकात अधूरी है