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Friday 9 December 2011

सबके टकराते है बरतन ना झूठ बोलिए

चेहरा है मन का दरपन ना झूठ बोलिए
तेज़ हो जाएगी धडकन ना झूठ बोलिए

मियाँ-बीवी की तकरार पे शर्मिंदगी कैसी
सबके टकराते है बरतन ना झूठ बोलिए

मुमकिन नही जो बात उसका वादा ना करो
कर दोगे सब कुछ अरपन ना झूठ बोलिए

जब देखते है आप मुझे मुस्कुराकर हुजुर
बढती है दिल की तडफन ना झूठ बोलिए


बेचैन जमाने में पूछ लीजिये किसी से भी
याद आता है सबको बचपन ना झूठ बोलिए

अहसास की औकात हो पर रूबरू नही

 चाहता हूँ मुलाकात हो पर रूबरू नही
रोजाना उनसे बात हो पर रूबरू नही

इक दूजे को समझाने और कुछ बताने में
चाहे जख्मी ख्यालात हो पर रूबरू नही

बनकर भ्रम उनकी मैं रूह से चिपक जाऊ
इक ऐसी करामात हो पर रूबरू नही

हम जिम्मेदारियों को भी हरगिज़ दगा ना दे
अहसास की औकात हो पर रूबरू नही

वो प्यार करे जिस भी पल अपने आप से
मेरे हिस्से भी खैरात हो पर रूबरू नही

होकर बेचैन मुझको महसूस वो करें
uske दिल पे  मेरे हाथ हो पर रूबरू नही