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Monday 1 August 2011

तू शहर से क्या गई, मेरी तो जान चली गई

ठहरी आँखों की कसम दिल की शान चली गई

तू शहर से क्या गई, मेरी तो जान चली गई

दौड़ता है लहू रगों में फकत कहने भर को

जिसे जिंदगी कहते है वो जुबान चली गई

एक बोझ बनकर वो धरती पे रह गया

जिस शख्स की ज़माने में पहचान चली गई

अपनी तस्वीर के बहाने मेरी तन्हाईयो को

देकर सज़ा ए हिज्र का सामान चली गई

पैगाम लेकर आई थी, जो लहर साहिल का

उठाकर मेरी जिंदगी में तूफ़ान चली गई

जाते ही खत लिखने का करके वादा बेचैन

खाकर झूठी कसम वो बेईमान चली गई