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Monday 4 June 2012

घर में बुढिया बैठी है जब तक है ऐश तुम्हारी

खासकर बेटो को है मुफ्त में मशवरा जारी
बीवी की हाजरी छोड़, करे माँ की तरफदारी

दबोच लेगी मियाँ बीवी को बाद में तो गृहस्थी
घर में बुढिया बैठी है जब तक है ऐश तुम्हारी

शौहर कमाता है दिमाग से निकाल दो फितूर
घर में बरकत है मां की दुआओं से ही सारी

मत पूछ हजाम से कितने बड़े है सर के बाल
तुम्हारे आगे आएगी तुम्हारी समझदारी

दौलत-ओ- रुतबे पर तेल छिड़क कर रख बेचैन
माँ  तो होती है बस अपनी ममता की मारी



मुझको तू चाहे अपना अजीज ना समझ

मुझको तू चाहे अपना अजीज ना समझ
पर मजे देने वाली भी चीज़ ना समझ

तुझको नही है इश्क तो अच्छी बात है
अगर है .तो बचने का ताबीज ना समझ

गुस्सा दिलाओगे तो फिसलेगी जुबान
वरना तू मुझे कोई बदतमीज़ ना समझ

मेरी वजह से कोई तकलीफ है तो बोल
इतना भी तू खुद को आजीज ना समझ

शुमार हूँ मैं भी शहर के नामी लोगों में
बेचैन मुझे इतना भी नाचीज़ ना समझ