Friends

Tuesday 13 September 2011

सोचता हूँ कई दफा फुर्सत में बैठकर



सोचता हूँ कई दफा फुर्सत में बैठकर
तेरा प्यार तेरी यादें होती ना अगर
फिर किसके सहारे जिंदगी जीते हम
चलता धडकनों के संग किसका गम

आँखों में तस्वीर किसकी बस्ती दोस्तों
मिट जाती आशिकों की हस्ती दोस्तों
होता नही गर कहीं यादों का मौसम
फिर किसके सहारे ..................

हुश्न की भी फिर कोई तारीफ ना करता
यहाँ एक हंसी के लिए ना कोई मचलता
बनाता नही गर किसी को कोई हमदम
फिर किसके सहारे ........................

हर खूबसूरत शै भी बेकार सी लगती
रात भर आँखें ना किसी के लिए जगती
वजूद ढूंढ़ती फिरती फिर अपना शबनम
फिर किसके सहारे ............................

वो दर्द मीठा-मीठा फिर आता कहाँ से
आहों का अहसास हमें सुहाता कहाँ से
बेचैन होकर ना कोई खाता फिर कसम
फिर किसके सहारे .........................