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Tuesday 13 March 2012

लोग शैदा होते है वरना जर के बाईस

वो मुरीद है मेरा मेरे हुनर के बाईस
लोग शैदा होते है वरना जर के बाईस

कबका भूल गया होता घर गाँव का लेकिन
इक पहचान बाकि है सूखे शजर के बाईस

मैं सह नही सकता नशा नींद का लेकिन
रातों जाग सकता हूँ बज्मे सुखनवर के बाईस

कनखियों से घूरकर मुझे क्या देखा तुमने
दिल हो गया बिस्मिल तेगे नजर के बाईस

जर्फ़ वालों की कसौटी से निकला है जुमला
इश्क रोशन है यारों सितमगर के बाईस

बाप होने का हक अदा यूं किया उसने
हो गया नीलाम लख्ते-जिगर के बाईस

आवारगी ने तो कोई कमी न छोड़ी मगर
न हो सका आवारा बेचैन घर  के बाईस

मुरीद=प्रसंशक, बाईस = कारण, शैदा- आशिक ,,जर=धन ,,,शजर- पेड़,,..बज्मे सुखनवर= कवि सम्मेलन ,,,,बिस्मिल= घायल ...तेगे नजर=निगाहों की तलवार....जर्फ़=श्रेष्ठ ....कसोटी=अनुभव ...लख्ते जिगर= दिल का टुकडा