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Friday 16 November 2012

आशिक और नेता में कोई फर्क नही

आदमी पर जब वक्त बुरा आता है
ऊंट पर बैठे को कुता काट खाता है

आशिक और नेता में कोई फर्क नही
दोनों का दिल हारकर पछताता है

दौलत से बढ़कर एक और नशा है
शोहरत का जिसे भूत कहा जाता है

अक्ल तो धक्के खाने से आएगी
बादाम दिमाग थोड़े ही चलाता है

जिसकी रगों में है बेचैन गंदा खून
माल हराम का उसी को भाता है

सजधज कर मेरी जान जब पटाखा बन जाती है

सजधज कर मेरी जान जब पटाखा बन जाती है
अनार सी चलती है फुलझड़ी सी खिलखिलाती है

मैं फुस्स की आवाज के साथ खामोश हो जाता हूँ
मुझे बम की तरह गुस्से में जब वो धमकाती है

...
नाराजगी की सौ बात पर हकीकत तो यही है
मैं दीया हूँ उसका तो वो मेरी बाती है

मन में अँधेरा ना रहने का यही सबब है यारो
वो चिराग बन दिल की मुंडेरो पर झिलमिलाती है

मेरे हिस्से की खुशियाँ भी उसे ही मिले बेचैन
काश दिवाली पर दुआ अगर कबूल हो जाती है
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हो सके तो मुझे अब बिखरने मत दे

मैं टूटने की हद तक टूट चुका हूँ
हो सके तो मुझे अब बिखरने मत दे

एक ही बार बनता है दर्द का रिश्ता
इस रिश्ते को बेमौत मरने मत दे

दूरिया बढाती है गलतफहमियाँ
गलतफहमी को ज्यादा निखरने मत दे

सूख जायेगा आंसुओ का समन्दर
इन आँखों को इतना झरने मत दे

पहले ही है खौफजदा जिंदगानी
और मुझको अब बेचैन डरने मत दे