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Friday 29 June 2012

कितने युगों तक मन मारता रहूँ

कुछ ना कहूं बस तुझे निहारता रहूँ
अश्कों से आरती उतारता रहूँ

सचमुच करूंगा इंतजार लेकिन बता
कितने युगों तक मन मारता रहूँ

बस इतनी इनायत करना राधे
ता-उम्र तेरा नाम पुकारता रहूँ

तुमको पाकर जग जीत लिया लेकिन
अपने आप से कब तक हारता रहूँ

किसी रोज तो देख तू आकर बेचैन
और कितना दर्द बता संवारता रहूँ

Wednesday 27 June 2012

कम से कम मजाक तो ना कर मेरे प्यार के साथ

तू छेड़छाड़ ना कर मेरे किरदार के साथ
मैं खुश हूँ अपने फकीरी व्यवहार के साथ

दौलत की हवस मुझमे अगर जागी किसी रोज
छोड़ जाऊंगा तुझको तेरे संसार के साथ

मेरा है तो मेरे अश्क तू पौंछ दे आकर
वरना क्यूं चाहता है मरू इंतजार के साथ

मुझको तू अपना समझ या न समझ तेरी ख़ुशी
कम से कम मजाक तो ना कर मेरे प्यार के साथ

खुदगर्जी के सिवा वह कुछ न मिलेगा बेचैन
मैं जुड़ना ही नही चाहता बाज़ार के साथ




Monday 25 June 2012

तुझसे जियादा प्यारी नही है अपनी खाल मुझे

मैं गलतफहमी में हूँ तो मत बाहर निकाल मुझे
खूब राहत दे रहा है मेरा ही ख्याल मुझे

कही अँधा ना कर दे मुझे ख्वाबो की रौशनी
तू संजीदगी से सोचता है तो सम्भाल मुझे

आजकल हर बात पर आँखे छलक जाती है
जाने क्या दे जायेगा मौजूदा साल मुझे

बिना बात के तू बेशक उठा दिया कर तूफां
अच्छा लगने लगा है तेरा हर बवाल मुझे

अगर समझ सकता है तो समझ दर्दे दिल मेरा
बहुत ज्यादा जरूरत है तेरी फिलहाल मुझे

कालीन की जगह बिछानी पड़ी तो बिछा दूंगा
तुझसे जियादा प्यारी नही है अपनी खाल मुझे

दुनिया मेरी खूब देखी भाली है बेचैन
बेहतर होगा मत दे कोई भी मिसाल मुझे

Monday 18 June 2012

बता किस शमा का शहर में परवाना नही है

तेरा मुझसे अगर सचमुच याराना नही है
जा फिर ये शख्स भी तेरा दीवाना नही है

शक की मेरे सर पर तलवार लटकाने वाले
शायद तुमने मुझे ढंग से पहचाना नही है

जब दिल करता है घर बैठ कर पी लेता हूँ
मेरे घर के करीब कोई मयखाना नही है

सब तुझसे मिलने के बाद ही तो महके है
मेरे दिल में कोई भी जख्म पुराना नही है

दोस्तों आग की तकदीर होता है धुंआ
बता किस शमा का शहर में परवाना नही है

महोब्बत में वही लोग पाते है दुःख बेचैन
महबूब को जिसने भी अपना माना नही है

Friday 8 June 2012

विज्ञापनबाज़ी में फंस अखबार गिर गये

बाकि तो सब ठीक है पर किरदार गिर गये
भाईचारे के हर तरफ व्यवहार गिर गये

खबरों की प्रधानता तो अब रही ही नही
विज्ञापनबाज़ी में फंस अखबार गिर गये

खुदगर्जी ने कर डाले इस कदर अंधे
दूर दूर तक सब रिश्तेदार गिर गये

ख़ाक करेगा आम आदमी खरीदारी
शापिंग मॉल में ढलकर बाज़ार गिर गये

अब तो फूलों से ही खरी चुभन मिलती है
तीखे तेवरों वाले सब खार गिर गये

क्यूं नही होगा कत्ल अहसास का बेचैन
रिश्तों के जब सारे एतबार गिर गये

Thursday 7 June 2012

कुछेक आदतें फर्जी तो सब मे होती है

आध पाव खुदगर्जी तो सब मे होती है
कुछेक आदतें फर्जी तो सब मे होती है

बेशक अपने मन से करो काम कोई भी
मुए वक्त की मर्जी तो सब मे होती है

अपने हाथों से अपने आंसू पौंछ ले
इतनी सी एनर्जी तो सब मे होती है

समाज सेवा का बेशक ढिंढोरा पीटो
गरीब से एलर्जी तो सब में होती है

कोई खुलकर ना कहे तो बेचैन क्या करे
इश्क की एक अर्जी तो सब में होती है

Tuesday 5 June 2012

राजनीती में जरूरी है चिकना घडा होना

सांप का क्या तो छोटा और क्या बड़ा होना
राजनीती में जरूरी है चिकना घडा होना

इन्साफ की राह में सबसे बड़ी रुकावट है
गरीबों के लिए कानून का हिजड़ा होना

कोठियों और बैलेंस को रूतबा ना बोल
सच है माँ बाप का कोने में पड़ा होना

कामयाबी के बाद जो सबसे अच्छा लगा
तेरा भाईचारे में बीच में खड़ा होना

बात तो मेहनत से ही बनेगी नौजवान
सबके नसीब में नही है धन का गड़ा होना

लाज़मी है बहुत ही शायरी में बेचैन
महोब्बत के किसी जख्म का गला सड़ा होना

Monday 4 June 2012

घर में बुढिया बैठी है जब तक है ऐश तुम्हारी

खासकर बेटो को है मुफ्त में मशवरा जारी
बीवी की हाजरी छोड़, करे माँ की तरफदारी

दबोच लेगी मियाँ बीवी को बाद में तो गृहस्थी
घर में बुढिया बैठी है जब तक है ऐश तुम्हारी

शौहर कमाता है दिमाग से निकाल दो फितूर
घर में बरकत है मां की दुआओं से ही सारी

मत पूछ हजाम से कितने बड़े है सर के बाल
तुम्हारे आगे आएगी तुम्हारी समझदारी

दौलत-ओ- रुतबे पर तेल छिड़क कर रख बेचैन
माँ  तो होती है बस अपनी ममता की मारी



मुझको तू चाहे अपना अजीज ना समझ

मुझको तू चाहे अपना अजीज ना समझ
पर मजे देने वाली भी चीज़ ना समझ

तुझको नही है इश्क तो अच्छी बात है
अगर है .तो बचने का ताबीज ना समझ

गुस्सा दिलाओगे तो फिसलेगी जुबान
वरना तू मुझे कोई बदतमीज़ ना समझ

मेरी वजह से कोई तकलीफ है तो बोल
इतना भी तू खुद को आजीज ना समझ

शुमार हूँ मैं भी शहर के नामी लोगों में
बेचैन मुझे इतना भी नाचीज़ ना समझ

Friday 1 June 2012

नुकसान का टोटल उसी से पूछ बेचैन


रिश्तों में जब हुशयारी टाँगे अडाती है
सबसे पहले भरोसे की नींव हिलाती है

भूखे के दिन फिर सकते है झूठे के नही
मुझको आज भी माँ की बात याद आती है

कोई फरेब खाकर जोर का ठहाका लगा दे
किस शख्स की बता इतनी बड़ी छाती है

कसमों के जंगल में जो ले जाते है अक्सर
बिन हड्डी की जीभ उनका काम चलाती है

हर बात बता देते है महबूब को जो लोग
उन्ही को महोब्बत नानी याद दिलाती है 

नुकसान का टोटल उसी से पूछ बेचैन
जिस किसी की दौलते अहसास लुट जाती है

तू मत देना कभी सकूं पीर तो है मेरे पास

तुम ना सही तुम्हारी तस्वीर तो है मेरे पास
ना दे साथ किस्मत तदवीर तो है मेरे पास

रख अपने पास मेरी रूह का अचार डालकर
चलती फिरती लाश सा शरीर तो है मेरे पास

ढूंढ़ लूँगा अपने ही गम में हंसी का बहाना
तू मत देना कभी सकूं पीर तो है मेरे पास

मुझे रुलाएगा भी और हंसायेगा भी वही
तेरी याद का इक फकीर तो है मेरे पास

सर कलम कर दूंगा बुरे ख्यालो का बेचैन
शेरो-शायरी की शमसीर तो है मेरे पास