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Monday 5 September 2011

जाते ही खत लिखने का करके वादा बेचैन

ठहरी आँखों की कसम दिल की शान चली गई
तू शहर से क्या गई, मेरी तो जान चली गई
दौड़ता है लहू रगों में सिर्फ कहने भर को
जिसे जिंदगी कहते है वो जुबान चली गई
एक बोझ बनकर वो धरती पर रह गया
जमाने में जिस शख्स की पहचान चली गई
तस्वीर के बहाने देकर मेरी तनहाइयो को
देकर सज़ा ए हिज्र का सामन चली गई
पैगाम लेकर आई थी जो मौज साहिल का
उठा कर मेरी जिंदगी में तूफ़ान चली गई
जाते ही खत लिखने का करके वादा बेचैन
खाकर झूठी कसम वो बेइमान चली गई

सीने में छिपा वो राज हूँ में



मानो तो दिल की आवाज़ हूँ मैं
वरना टूटा हुआ  साज़ हूँ मैं
दौड़ कर मुझको गले लगा ले
अपने प्यार का आगाज़ हूँ मैं
बन जाते शाहजहाँ किसी तरह
कहकर तो देखते मुमताज़ हूँ मैं

देखें है जो दोनों ने  मिलकर
उन ख्वाबो की परवाज़ हूँ मैं
देख आईने के आगे बैठकर
तेरा ही नाज़-ओ अंदाज़ हूँ मैं
बेचैन कर देगा खुल गया तो
सीने में छिपा वो राज हूँ में