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Friday 4 May 2012

दिलो दिमाग पर भारी लुत्फे वस्ल क्यूं है

सोचता हूँ नसीब में इतने बल क्यूं है
जीस्त बेवफा तो बावफा अजल क्यूं है

दिल ने तो बुरा चाहा ही नही किसी का
फिर सीने में किसी खौफ की हलचल क्यूं है

वो शख्स जो मेरा कभी हुआ ही ना था
उसकी याद में मेरी आँखें सजल क्यूं है

आंसू भी तो किसी झील की पैदाइश है
फिर इतना मशहूर दुनिया में कमल क्यूं है

हिज्र से भी तो याराना रहा है बरसों
दिलो दिमाग पर भारी लुत्फे वस्ल क्यूं है

अपनों में शामिल और भी तो है बेचैन
फिर तू ही मेरे सब मसलो का हल क्यूं है

ज़ीस्त= जिंदगी   अजल = मौत 
 लुत्फे वस्ल= मिलन का आनंद

उसके पसीने में भी खुशबू आती है

दोस्तों दौर सचमुच कलयुगी आ गया
मैं मुस्कुराया तो वो गाली सुना गया

बच्चे जवान बूढ़े सब पर शक करते है
हुस्नवालों को भ्रम का कीड़ा खा गया

शरीफों को लल्लू समझती है लडकियाँ
कल रात मुझे मेरा महबूब बता गया

देखा जब बिल्लियों को आपस में लड़ते
सच कहता हूँ मुझे तो चक्कर आ गया

पायजामा तक जिसे न पहनना आता था
पड़ा इश्क में तो कमबख्त जींस फसा गया

उसके पसीने में भी खुशबू आती है
पहचान बस बेचैन इतनी बता गया