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Sunday 13 November 2011

हमजुबां से खुदा मुझको मिलाता क्यूं नही


कोई मजबूरी है तो मुझे बताता क्यूं नही
वो मेरी तरह यारी में पेश आता क्यूं नही

शक है मुझे समझकर भी नही समझा वो
समझ गया तो ढंग से समझाता क्यूं नही

दांतों तले ऊँगली दबाना तो छुट गया पीछे
मुझको देखकर अब वो शरमाता क्यूं नही

डालकर ख़ाक मेरी बरसों की दीवानगी पर
मेरी हालत पर थोडा रहम खाता क्यूं नही

टकरा ही जाते है बेचैन हर बार दुसरे लोग
हमजुबां से खुदा मुझको मिलाता क्यूं नही


वो दोस्ती से पहले मुखबरी करता है

वो दोस्ती से पहले मुखबरी करता है
तब जाकर अपना शक बरी करता है

करके चिकनी चुपड़ी बातें कमबख्त
मौका मिलते ही वो जादूगरी करता है

हर कदम हर रिश्ते से फरेब मिला है
वो इसलिए बात खोटी-खरी करता हैं

माँ का दर्दे दिल महसूस नही है जिसे
बेटा फिर बेकार ही अफसरी करता है


वो उतना ही शातिर निकलेगा बेचैन
जो जितनी जुबान रसभरी करता है