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Tuesday 18 October 2011

हमें तो हमारा ज़ज्बात खा गया



दिल के मामले में मात खा गया
हमें तो हमारा ज़ज्बात खा गया
इस कदर चालाक हैं महबूब मेरा
मिला तो काम की बात खा गया
सफर में एक छतरी थी दोनों पे
ना बरसा मौसम बरसात खा गया
करके बहाना फुर्सत न मिलने का
मेरे हिस्से की मुलाक़ात खा गया
हराम का उसे खाने की आदत थी
इसलिए वो मेरे ख्यालात खा गया
हद की भी हद होती हैं बेचैन
वो कैसे अपनी औकात खा गया

धडकन पर सबके पहरा मिलेगा



जख्म दिल का गहरा मिलेगा
हर आँख में इक चेहरा मिलेगा
ये अलग बात है कोई हाँ ना भरे
धडकन पर सबके पहरा मिलेगा
रूह खिल उठेगी जनाबे आली
जीत का जिस पल सेहरा मिलेगा
खुद पर ही भरोसा नही जिसका
उस शख्स का वक्त ठहरा मिलेगा
ना सोचा था दुआ के वक्त बेचैन
इस दौर का खुदा बहरा मिलेगा