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Tuesday 30 June 2015

जिंदगी क्या है ये तो वक्त ही समझाता है

संबधों का निचोड़ तभी निकलकर आता है
आदमी जब हर एक तरफ से घिर जाता है

किसी के समझाने से समझ नही आती है
जिंदगी क्या है ये तो वक्त ही समझाता है

जहाँ हौंसले से बड़ा कद ख्वाईश का होगा
नाकामी का अंदेशा वही पर मुह उठाता है

सुरक्षा चक्र दुआओ का उन्हें घेरे रखता है
जिन लोगो के जिन्दा पिता और माता है

उसके व्यवहार में झूठ का तड़का मिलेगा
बात बात पर जो आदमी कसमे खाता है

मेहनत से कतराया हुआ नाकारा मुफ़लिस
अक्सर बाप दादाओ की दौलत गिरवाता है

ना होती तवायफें तो सुखनवर भी ना होते
आपस में मेल इनका दर्द-ओ-फन खाता है

सब ले रहे है अपने अपने हिस्से की सांसे
बेचैन कौन किसका यहाँ भाग्य विधाता है 

Sunday 21 June 2015

फादर्स डे पर मेरी और से ,,,



मुझे अपनी और जमाने की औकात समझ में आ गई
बाउजी क्या गए दुनिया से कायनात समझ में आ गई

मैं अब अनसुनी नही करता हूँ हो बात कोई भी बाउजी
क्यूँ पाँव दबाते वक्त मारी थी वो लात समझ में आ गई

देने लगी है जब से पहरा मेरे सिरहाने पर जिम्मेदारियां
सचमुच कितनी लम्बी होती है रात समझ में आ गई

मेरा इससे जियादा ज्ञान बताओ क्या बढ़ेगा दुनिया का
यार प्यार और रिश्तेदारो की भी जात समझ में आ गई

अच्छे बुरे की समझ बेचैन लगभग आने लगी है क्यूकी
अब बाउजी की झिड़कियों भरी हर बात समझ में आ गई

Saturday 20 June 2015

आदमी जब तक सच को निंगलता नही है

आदमी जब तक सच को निंगलता नही है
उसके भरम का हिमालय पिंघलता नही है

बुज़ुर्गो की दुआ और राय बेहद लाज़मी है
वरना सकूँ का पौधा फूलता फलता नही है

बस इतना ही पढ़ा देखा आज तलक मैंने
असर मुफ़लिस की हाय का टलता नही है

मानो तो दामाद बेटो से बढ़कर चैन देता है
किसने कहा बेटियो से वंश चलता नही है

टाइमपास होता है जिनके प्यार का टोटल
उनका जुदाई में कभी मन मचलता नही है

जब तक न पहुंचे जरुरतमंदो तक रौशनी
अपनी मर्ज़ी से आफताब भी ढलता नही है

जिंदगानी धोखा नही देती सुख से मरता है
जो आदमी रिश्तो को कभी छलता नही है

कमीनेपन का कोर्स पूरा होता नही बेचैन
लीडर जब तलक पार्टिया बदलता नही है



Wednesday 17 June 2015

अपना अपना राग अपना अपना व्यवहार है सबका
मैं क्यूँ परेशान होऊँ अपना अपना विचार है सबका

कोई पैदल तो कोई गाडी में कोई जहाज में चलता है
वक्त और मौके के मुताबिक़ जीवन रफ़्तार है सबका

मैं अव्वल तो किसी को अपना रकीब मानता ही नही
कोई मुझे माने तो माने सोच का अधिकार है सबका

खीज अपनी नाकामी की किसलिए उतारूँ किसी पर
किसी से शिकायत नही व्यवहारिक प्यार है सबका

कोई क्यूँ माने तुम्हारी महोब्बत ही पाक महोब्बत है
खुद की नज़र में दुनिया से अलग दिलदार है सबका

हर एक शख्स बंधा हुआ है अपने संबधो के दायरे में
दोस्तों दखल ना करो अपना अपना संसार है सबका

एक हद तक तो साथ निभाएगा निभाने वाला बेचैन
उसके बाद नही यहाँ अपना अपना परिवार है सबका 

Monday 15 June 2015

जरूरत बड़े से बड़े को भी झुका देती है


जिंदगी भरम का जब पर्दा उठा देती है
जरूरत बड़े से बड़े को भी झुका देती है  

मैंने देखी है संबधो की गहराई नापकर 
उम्मीदों का मज़बूरी बहम मिटा देती है 

सदा रखना चाहिए याद चुगलखोरों को 
इक जरा सी चिंगारी आग लगा देती है 

रिश्तो की फ़ौज भी उतना दे नही सकती 
जितना प्यार औलाद को एक माँ देती है 

यकीन नही होता जिनको खुदी पर बेचैन 
उन सवारों को कश्तियाँ खुद डूबा देती है 















Saturday 13 June 2015

उसूलो की बात तो करना बहुत आसान है

उसूलो की बात तो करना बहुत आसान है
निभाओ तो जानो खुद में कितनी जान है

अपनी बर्बादी की झूठी खबर फैलाकर देखे
अपनेपन का रिश्तेदारो पर जिसे गुमान है

यकीं है मेरे वज़ूद पर तो चली आ मंज़िल
मेरा बंद गली में एक कच्चा सा मकान है

बात तो जब है जब जनून को दिशा मिले
वरना तो हर सख्स के सीने में तूफ़ान है

नादान ना-समझ जिसे अहसास बोलते है
उसी वजह सैकड़ो जिंदगानियां हलकान है

अपनी दिक़्क़तों पर इतना दुखी मत होवो
हर सख्स किसी न किसी कारण परेशान है

हर शै से भारी बोझ है जेब का खाली होना
मन बेचैन हलका रखना पैसे को वरदान है


Wednesday 10 June 2015

मुमकिन नही कामयाबी बुरे दौर के बिना



ज़िंदगी खामोश है ख्वाबो के शोर के बिना 
मुमकिन नही कामयाबी बुरे दौर के बिना

अपने जहन में बिठा लो ये बात नौजवानो 
बशर कुछ भी नही साहस की डोर के बिना 

तू फ़िज़ूल बहस मत कर दिल के चौकीदार 
चोरी हो नही सकती कही भी चोर के बिना 

मालूम है अंधेरो को इसलिए तो गरूर में है 
दिन निकल नही सकता कभी भोर के बिना 

जहाँ भर की ख़ाक छानकर मैं लौट आता हूँ 
दिल लगता नही बेचैन मेरा इंदौर के बिना 


Sunday 7 June 2015

तीन पैग तक तो उदासी महबूबा को बुलाती है

तीन पैग तक तो उदासी महबूबा को बुलाती है
उसके बाद केवल दिवंगत माँ की याद आती है

हदें पहचानते है मेरे पीने की शहर के ठेकेदार
इसलिए तो मयखानों में पर्चियां चल जाती है

शराबखोरी से मुझको बचपन से ही नफरत है
बोतल देखते ही रूह खत्म करो बुदबुदाती है

करोड़ो का कर्ज़ा मगर फिर भी मौज मस्तियाँ
समझ नही पाया कुछ लोगो की कैसी छाती है

किस मंडी में ले जाऊं अपनी बेबसी के गुलाब
यहाँ हर दुकान से खुदगर्ज़ी की बू ही बू आती है

ख़ुदकुशी की कोशिश वज़ूद ने कई बार की है पर
मेरे संस्कारो की सीख अक्सर आड़े आ जाती है

दीदार की भूख ने जिनको भिखारी बना दिया है
वो जानते है रूह अनाज नही अहसास खाती है

कही और जाकर बोलता है मेरी रगो का नशा
बेचैन तन्हाईयाँ मेरी इसीलिए तो मुस्कुराती है 

रूह की बुनियाद हिला देगी ये लम्बी उदासी

तू सचमुच जुड़ा है गर मेरी जिंदगी के साथ
तो कबूल कर मुझको मेरी हर कमी के साथ

रूह की बुनियाद हिला देगी ये लम्बी उदासी
हमेशा मत रहा कर आँखों की नमी के साथ

इससे ज्यादा यकीं बाप क्या करे रिश्तो पर
बेटी विदा कर देता है एक अजनबी के साथ

बाऊं जी मरने से पहले मुझे बताकर गए थे
समय शतरंज खेलता है हर आदमी के साथ

परेशान मत हो बेचैन इश्क और तिज़ारत में
जीते जी पेश आती है दिक्क़ते सभी के साथ







Saturday 6 June 2015

सचमुच मैगी जैसी ही तो थी उसकी महोब्बत

सचमुच मैगी जैसी ही तो थी उसकी महोब्बत
कैरियर की सेहत जिसने बिगाड़ी बरसो तक

मौके हज़ार दिए उसके मिजाज ने हकीकत के
मगर रहे हम भी अनाड़ी के अनाड़ी बरसो तक

जिस रुट पर हो हर एक जंक्शन जफ़ाओ का
कोई कितना खींचे वफ़ा की गाडी बरसो तक

सरकार-ओ-मौसम की साज़िश ने खदेड़ दिया
वरना खूब की थी हमने खेतीबाड़ी बरसो तक

जिम्मेदारियों ने घेर लिया हमको हरसू वरना
हम भी रहे है अहसास के खिलाड़ी बरसो तक

कैसे भूल पायेगा खंडहर जिंदगानी का बेचैन
जिसने ईंटे मेरे भरोसे की उखाड़ी बरसो तक 

पेड़ के जैसी जिंदगी किरदार में लाओ दोस्तों



हर साल अपना जन्मदिन यूं मनाओ दोस्तों
कम से कम एक पौधा जरूर लगाओ दोस्तों

सब आने वाली पीढ़िया सेहतमंद हो जाएगी
पेड़ के जैसी जिंदगी किरदार में लाओ दोस्तों

शौक है अगर गाड़ियां छाँव में खड़ी करने का
सूख रहे पेड़ पौधों तक पानी पहुँचाओ दोस्तों

हुआ हरा भरा पर्यावरण तो पंछी दुआएं देंगे
इसलिए कहता हूँ दुआ मत ठुकराओ दोस्तों

बेशक तुलसी लगा लो तुम आँगन में बेचैन
जंगली झाड़ यानी केक्टस मत उगाओ दोस्तों 

Friday 5 June 2015

जब भी अपनी जड़ो से कोई पेड़ दूर हो जाता है

जब भी अपनी जड़ो से कोई पेड़ दूर हो जाता है
शाख का हर पत्ता सूखने पर मज़बूर हो जाता है

सबसे पहले माँ बाप की निगाहो में खटकता है
अपनी जवानी पर जब बेटे को गरूर हो जाता है

किसी वक्त भी कर सकती है गलतफहमी वार
दो लोगो के बीच प्यार जब भरपूर हो जाता है

हार न माने जिद्द पर अड़ा रहे अगर मेहनतकश
फिर मुकदर को भी दोस्त सब मंज़ूर हो जाता है

छोड़ ही देना चाहिए उनको उनके हाल पर बेचैन
जिनके दिमाग में बे वजह का फ़ितूर हो जाता है




Wednesday 3 June 2015

पकड़ी जानी थी कभी तो कलाकारी उसकी








अव्वल तो कुछ हम दोनों के बीच था ही नही
कुछ था तो उसे समेट ले गई हुश्यारी उसकी

जबकि दोस्ती में ही इतनी तकलीफ दे गया
फिर क्या करता मैं पाकर रिश्तेदारी उसकी

फिल्म दो घंटे की होती है दो साल की नही
पकड़ी जानी थी कभी तो कलाकारी उसकी

तज़ुर्बो की फेहरिस्त में ये तज़ुर्बा और सही
ना हज़म हुई ना भुला सकूँगा यारी उसकी

मेरी सादा मिजाजी से कही मेल नही खाती
आदतें समझ गया हूँ मैं बेचैन सारी उसकी 

असमंजस का दौर है और मैं आहे भर रहा हूँ

इन दिनों दर्द की तलहटी से होके गुज़र रहा हूँ
नमालूम मैं बिखर रहा हूँ या की निखर रहा हूँ

मंज़िल मेरे करीब है या मेरे बहम का कोहरा
असमंजस का दौर है और मैं आहे भर रहा हूँ

फिर भी शक भरी निगाहो से लोग देख रहे है
जबकि ईमानदारी से अपना कर्म कर रहा हूँ

शोहरत जान ना ले कही मज़दूर का बेटा हूँ
मददगारों के साथ से इसलिए भी डर रहा हूँ

अजीब सा धोखा है जीने की आरज़ू में बेचैन
रोजाना एक दिन का हिसाब करके मर रहा हूँ

आदतें समझ गया हूँ मैं बेचैन सारी उसकी

अव्वल तो कुछ हम दोनों के बीच था ही नही
कुछ था तो उसे समेट ले गई हुश्यारी उसकी

जबकि दोस्ती में ही इतनी तकलीफ दे गया
फिर क्या करता मैं पाकर रिश्तेदारी उसकी

फिल्म दो घंटे की होती है दो साल की नही
पकड़ी जानी थी कभी तो कलाकारी उसकी

तज़ुर्बो की फेहरिस्त में ये तज़ुर्बा और सही
ना हज़म हुई ना भुला सकूँगा यारी उसकी

मेरी सादा मिजाजी से कही मेल नही खाती
आदतें समझ गया हूँ मैं बेचैन सारी उसकी

Monday 1 June 2015

ढल जाएगी एक दिन जिंदगी ख़ाक में

दो जून की रोटी कमाने की फिराक में
ढल जाएगी एक दिन जिंदगी ख़ाक में

रिश्ता कोई भी हो तार रूह से जुड़ते है
अहसास को कोई भी ना ले मज़ाक में

लब्ज़ो की धमक दिमाग से टकराती है
बोलता है जो भी कोई आदमी नाक में

उफ़ तरक्की में डूबे नए युग के हादसे
गिद्ध की तरह रहते है हरदम ताक में

सब हर्फो की जादूगरी है वरना बेचैन
कोई फर्क नही बेशर्म और बेवाक में