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Sunday 18 December 2011

होती मेरी माँ तो आज मुझे खूब धमकाती

होती मेरी माँ तो आज मुझे खूब धमकाती
दर्दे इश्क में पड़कर क्यूं खुदखुशी कर रहा है

खून के आंसू रुलायेगे तुझे तेरे ही असआर
शायरी में धंसकर क्यूं खुदखुशी कर रहा है

आसमां की और थूकोगे तो मुहं पर गिरेगा
दूसरो पर हंसकर क्यूं खुदखुशी कर रहा है

तेरी दीवानगी और पागलपन कौन सराहेगा
जिंदगी से बचकर क्यूं खुदखुशी कर रहा है

झटके में लगा दे होश ठिकाने जिंदगी के
टुकडो में बंटकर क्यूं खुदखुशी कर रहा है

कयामत तक कोई नही याद रखेगा तुझको
जमाने से कटकर क्यूं खुदखुशी कर रहा है

भूल जा बेचैन किसने क्या कहा था तुझको
बातों से लिपटकर क्यूं खुदखुशी कर रहा है






मेरी तकदीर में अल्लाह कैसा दौर आ गया

मैं उससे कभी मिलने की कोशिश ना करूंगा
कमबख्त ज़ज्बात में मुझसे हामी भरा गया

पानी की जगह शराब में मिला रहा हूँ आंसू
मेरी तकदीर में अल्लाह कैसा दौर आ गया

यही सोचकर कर लिया उसने मुझसे किनारा
कहाँ किस सरफिरे का उस पर दिल आ गया

जल्दी से आकर रख बेचैन हाथ मेरे दिल पर
आँखों के सामने यह कैसा अन्धेरा छा गया

उसकी चालाकी है या वक्त की नजाकत बेचैन
मुझसे बात बातों में ज़ालिम पीछा छुड़ा गया 

दिल का मसला तो मुझसे ही सुलझेगा

दिल का मसला तो मुझसे ही सुलझेगा
सत्संग में जाकर वक्त खराब ना कीजे

नसीब में लिखा है तो हो जायेगा मिलन
बैठ के बेकार जुदाई का हिसाब ना कीजे

सोचने से पहले लोग फसाना बना देंगे
मुझको देख कर आँखें पुर आब ना कीजे

आबरू और समाज पर पड़ जाए महंगी
कभी भी ऐसी हरकत मेरे जनाब ना कीजे

सब घड़ी भर की बेकरारी होती है बेचैन
आप अपने आपको इतना बेताब ना कीजे