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Sunday 15 July 2012

अब दूर बैठे क्या समझाये ज़ज्बात क्या है

कोई हमें भी तो बताये मामलात क्या है
हंगामा बरप रहा है आखिर बात क्या है

दोस्ती से बढ़कर नही होता कोई रिश्ता
फिर महबूबाओ की कहिये औकात क्या है

वो पास होता तो समझाता बारीकी सी
अब दूर बैठे क्या समझाये ज़ज्बात क्या है

मुफलिसों को टका सा जवाब देने वालों
पहले यह तो पूछ लो तुमसे सवालात क्या है

रोज लुटती आबरू देख कर कोई तो बताये
बेबस के लिए शहर क्या है जंगलात क्या है

बरसों बाद मिलने का करार देने वाले
बता तो सही साल महीने दिन लम्हात क्या है

रूबरू नही तो कम से कम ख्वाब में ही बोल
बेचैन को लेकर तेरे ख्यालात क्या है

मैं भी हूँ जिंदगी तो गुजारो मुझे

अक्स हूँ मैं तुम्हारा विचारो मुझे
जिंदा रहने दो या फिर मारो मुझे

दब ना जाऊ कही वक्त की रेत में
मौका है जानम तुम संवारों मुझे

कर चुका एलान जान हो तुम मेरी
मैं भी हूँ जिंदगी तो गुजारो मुझे

तुझको मैं दे रहा हूँ कब से सदा
अनसुना मत करो तुम पुकारों मुझे

प्यार हूँ या बला सोच लो बैठ कर
कुछ तो पहचान दो तुम यारो मुझे

चीखकर कह रही है मेरी बेबसी
गलत हूँ मैं अगर तो सुधारो मुझे

चैन मरकर भी बेचैन ना आएगा
कर्ज़ हूँ मैं तुम्हारा उतारों मुझे