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Saturday 31 December 2011

नये साल से मेरी जान की तकदीर संवर जाए

नये साल से मेरी जान की तकदीर संवर जाए
मेरे इश्क के भगवान की तकदीर संवर जाए

जागते ही सुबह  कोई खुश खबरी मिले ख़ास
मेरी महोब्बत के ईमान की तकदीर संवर जाए

बचपन से देखा ख्वाब उसका हर हाल में हो पूरा
उसके हिस्से के आसमान की तकदीर संवर जाए

झुक ना पाए पलकें जब रफ्तार बढ़े धडकनों की
दोस्तों काश दिले नादान की तकदीर संवर जाए

हालात तो नही है बेचैन फिर दुआ तो दे देता हूँ
कैसे भी मेरे हिन्दुस्तान की तकदीर संवर जाए

Friday 30 December 2011

तारीख की पलकों पर सजाऊंगा तुझे

वो दे गया जिसकी तलाश थी मुझे
गुज़रा साल कैसे भुलाउंगा तुझे

कुछ भी दे दे अब आने वाला वक्त
मैं जीत का हासिल बताऊंगा तुझे

दिन महीने साल गुजरें कितने ही
तारीख की पलकों पर सजाऊंगा तुझे

भरोसा रख जिंदगी अपने दीवाने पर
अह्सासे-खुशनसीबी दिलाऊंगा तुझे

क्यूं हो जाता हूँ बात बात पर बेचैन
मिल किसी रोज समझाऊंगा तुझे

Thursday 29 December 2011

नये साल पर मशवरा है मुफ्त में सभी को

इस साल के झगड़े इसी साल निपटा लो
भूलकर नाराजगी रूठा महबूब मना लो

एक दूसरे की गलती फिर निकलना कभी
तुम फिलहाल नये साल की धूम मचा लो

प्यार है तो रूठना भी जरूरी है मेरे दोस्त
अच्छे से ये बात दिलों-दिमाग में बिठा लो

मिलता है मौका तो माथे पर चुम्बन लेकर
पाकीजगी के अहसास का दीपक जला लो

गर अगले जन्म में भी उसी की आरजू है
दे देगा खुदा शिवाले जाकर सर झुका लो

चाहत है नये साल पर गर ज्यदा मजे की
पैग लगाकर सच बोलने की कसम खा लो

नये साल पर मशवरा है मुफ्त में बेचैन
दोस्ती के रिश्ते को थोडा सा आगे बढ़ा लो



जो भी उम्मीदें है इस साल पूरी हो जाएँ

जो भी उम्मीदें है इस साल पूरी हो जाएँ
है दुआ कामयाबी तुमसे मिलने घर आये

पूरे घराने और माँ-बाप का हो नाम रोशन
तुम्हारे नाम की ही हर कोई कसमे खाएं

हो मसला इश्क का या कोई व्यपार वाला
तुम्हारे वास्ते मुश्किल सभी सुलझ जाएँ

अव्वल तो आंसू कोई तुम्हारे कभी ना आये
अगर वो आये तो खुशखबरी संग में लायें

चाहे तखल्लुस में अपना नाम रख बेचैन
दिलों दिमाग मगर चैन की गजलें गाएं

Monday 26 December 2011

माफ़ कर देना मुझको मेरी बेबसी के लिए

आज के बाद नही रोऊंगा किसी के लिए
रखूंगा अश्को को बचाकर ख़ुशी के लिए

चाहे हालात कभी खुदखुशी के बन जाये
मुस्कुराता रहूँगा उसकी दोस्ती के लिए

अपने कमरे के शिवाले से बुत हटा दूंगा
उसकी तस्वीर को रखूंगा बन्दगी के लिए

खुदा हाफ़िज़ सलाम तुमको आखरी मेरा
अब ना आऊंगा लौटकर मैं आशिकी के लिए

तुझमे हिम्मत है गर सच में मुझे भुलाने की
मैं भी भूलूंगा तुमको सारी जिंदगी के लिए

बोल अ शमा खुदा तुम्हारा भला कैसे करे
तुमने अँधेरे को है तडफाया रौशनी के लिए

तुमको परेशान किया बेचैन मैं शर्मिंदा हूँ
माफ़ कर देना मुझको मेरी बेबसी के लिए

Sunday 25 December 2011

बता तो क्यूं मुझको बेवकूफ बनाती रही

तेरी याद में रोते रोते सो गया था कल
इसलिए नींद में भी सुबकियां आती रही

उधर तू अपना शक समेटने में रहा उम्र भर
इधर बेबसी अपना रंग-रूप दिखाती रही

मेरे जज़्बात के संग खेलकर इत्मिनान से
बता तो क्यूं मुझको बेवकूफ बनाती रही

क्यूं नही बताती उसमे वो बेवफा तुम थी
वो कहानी जो तुम लोगों को सुनाती रही

गर बेचैन नही था मुझको लेकर तेरा दिल
किसलिए बार बार झूठी कसमे खाती रही

Friday 23 December 2011

कभी कभी वक्त पर भी आ जाया करो कमबख्तों

दीवानगी को पागलपन का करार देने वालों
बहुत पछताओगे जीत को हार देने वालों

कभी कभी वक्त पर भी आ जाया करो कमबख्तों
महबूब को महोब्बत में इंतजार देने वालों

तुम्हारे भी तो बन सकते है गोली का निशाना
इंसानियत के दुश्मनों को हथियार देने वालों

कभी आम आदमी के दर्द को भुगत कर देखो
मंचों से भीड़ को इंकलाबी विचार देने वालों

मन की ताकत बढती है सच बोलने से बेचैन
आजमाकर देखो झूठा करार देने वालों

पिछली मुलाकात की इक बात अधूरी है

पिछली मुलाकात की इक बात अधूरी है
वो बात ये थी तुम बिन हयात अधूरी है

सर अपनी गोद से मेरा मत उठाओ जान
अभी मेरी आँखों की बरसात अधूरी है

मैं भी देखूँगा रोज तुम भी देखना चाँद
कही भी रहे निगाहों की मुलाक़ात जरूरी है

वो मान जाये बेशक मेरी बात का बुरा
संग है महबूब तो वस्ल बिना रात अधूरी है

कितना बड़ा हो जाये किरदार तेरा बेचैन
सितमगर के बिना अब तो औकात अधूरी है

Thursday 22 December 2011

तुम शक पर शक जताओगे शायर से दिल लगाकर

कुछ भी नही पाओगे शायर से दिल लगाकर
देखना पछताओगे शायर से दिल लगाकर

जमाने की गिनती पहाड़े कम जानता है
तुम कैसे निभाओगे शायर से दिल लगाकर

तुझे रखेगा हर वक्त अहसास के जंगल में
बहुत डर जाओगे शायर से दिल लगाकर

तुझे हर गजल में लगेगा महबूब इक नया
तुम शक पर शक जताओगे शायर से दिल लगाकर

तेरी जुल्फों की तरह ख्याल भी उलझ जायेंगे
किसको सुलझाओगे शायर से दिल लगाकर

होना पड़ेगा आपको  बेचैन हर बात पर
कितनी कसम खाओगे शायर से दिल लगाकर

खुदा करे आप तरक्कीकी सीढ़ी चढ़ते जाये

खुशखबरी के झोंके आपसे अक्सर मिलने आये
खुदा करे आप तरक्कीकी सीढ़ी चढ़ते जाये

हरेक ख्वाब हकीकत बनकर चले आपके संग
मेहनत के लम्हे देवें  कामयाबी की दुआएं

घर में दोस्तों में और तमाम रिश्तेदारों में
आपके आसमान छूने की खूब चले चर्चाये

अव्वल तो कोई दर्द-ओ-गम ना मिले आपको
अगर मिलता है तो वो मेरी और सरक जाएँ

चेहरे की चमक बढ़े चांदनी सा बिखरे नाम
बेचैन मेरे महबूब के हक में चले हवाए


Tuesday 20 December 2011

तुम हदों को तोड़ने की तैयारी कर लो

मेरे भीतर के शैतान से यारी कर लो
तुम हदों को तोड़ने की तैयारी कर लो

चेहरा बोल देगा मन की हर एक बात
आखिर कितनी ही तो हुश्यारी कर लो

जो नसीब में नही है कभी नही मिलेगा
तुम कितनी ही दोस्त मारामारी कर लो

नही घेरते है जब तक मुझे ऐब रिश्तेदारों
कितनी ही मेरे घर पर बमबारी कर लो

चंदा लेने आ रही है सियासत आपके द्वार
बचना है तो खुद को खदरधारी कर लो

मन में छिपा शख्स बाहर जरुर झांकेगा
तुम कितनी भी बेचैन कलाकारी कर लो

Sunday 18 December 2011

होती मेरी माँ तो आज मुझे खूब धमकाती

होती मेरी माँ तो आज मुझे खूब धमकाती
दर्दे इश्क में पड़कर क्यूं खुदखुशी कर रहा है

खून के आंसू रुलायेगे तुझे तेरे ही असआर
शायरी में धंसकर क्यूं खुदखुशी कर रहा है

आसमां की और थूकोगे तो मुहं पर गिरेगा
दूसरो पर हंसकर क्यूं खुदखुशी कर रहा है

तेरी दीवानगी और पागलपन कौन सराहेगा
जिंदगी से बचकर क्यूं खुदखुशी कर रहा है

झटके में लगा दे होश ठिकाने जिंदगी के
टुकडो में बंटकर क्यूं खुदखुशी कर रहा है

कयामत तक कोई नही याद रखेगा तुझको
जमाने से कटकर क्यूं खुदखुशी कर रहा है

भूल जा बेचैन किसने क्या कहा था तुझको
बातों से लिपटकर क्यूं खुदखुशी कर रहा है






मेरी तकदीर में अल्लाह कैसा दौर आ गया

मैं उससे कभी मिलने की कोशिश ना करूंगा
कमबख्त ज़ज्बात में मुझसे हामी भरा गया

पानी की जगह शराब में मिला रहा हूँ आंसू
मेरी तकदीर में अल्लाह कैसा दौर आ गया

यही सोचकर कर लिया उसने मुझसे किनारा
कहाँ किस सरफिरे का उस पर दिल आ गया

जल्दी से आकर रख बेचैन हाथ मेरे दिल पर
आँखों के सामने यह कैसा अन्धेरा छा गया

उसकी चालाकी है या वक्त की नजाकत बेचैन
मुझसे बात बातों में ज़ालिम पीछा छुड़ा गया 

दिल का मसला तो मुझसे ही सुलझेगा

दिल का मसला तो मुझसे ही सुलझेगा
सत्संग में जाकर वक्त खराब ना कीजे

नसीब में लिखा है तो हो जायेगा मिलन
बैठ के बेकार जुदाई का हिसाब ना कीजे

सोचने से पहले लोग फसाना बना देंगे
मुझको देख कर आँखें पुर आब ना कीजे

आबरू और समाज पर पड़ जाए महंगी
कभी भी ऐसी हरकत मेरे जनाब ना कीजे

सब घड़ी भर की बेकरारी होती है बेचैन
आप अपने आपको इतना बेताब ना कीजे


Saturday 17 December 2011

आओ बुज़ुर्गवारों की तरह प्यार करते है

जोशे जवानी में ना तुम आओ ना हम आये
आओ बुज़ुर्गवारों की तरह प्यार करते है

कमीनी है दुनिया साथ साथ रहने नही देगी
चलो मन ही मन आपस में इजहार करते है

हम बिस्तर पकड़ लेंगे तो ख्याल खूब घेरेंगे
आज से थोडा थोडा खुद को बीमार करते है

इश्क में उन्ही के हिस्से में आती है शर्मिंदगी
जो खुद को हद से ज्यादा होशियार करते है

उनको हर हाल में होता है उनको घाटा बेचैन
अक्सर दिल लेने देने का जो व्यपार करते है




अपनी माँ को भी इतना ही चाहता था

अपनी माँ को भी इतना ही चाहता था
मैं जितना आज तुझसे प्यार करता हूँ

इससे पहले की लोग मुझे कहे दीवाना
मैं खुद सरे महफ़िल इकरार करता हूँ

तुम्ही कहो किसकी कसम खाकर कहू
मैं जन्मों से तुम्हारा इंतजार करता हूँ

डूब सा जाता हूँ आखों की गहराइयों में
तेरी तस्वीर का मैं जब दीदार करता हूँ

इसीलिए तो जीतूँगा दिल की बाज़ी बेचैन
खुद से जियादा तुम पर एतबार करता हूँ

Friday 16 December 2011

देखा जब से तुझे हंसते शमा सा पिंघलता हूँ

तेरी तस्वीर तकता हूँ और करवट बदलता हूँ
देखा जब से तुझे हंसते शमा सा पिंघलता हूँ

इससे और ज्यादा क्या कहू दीवानगी अपनी
तुम्हारा नाम ले लेकर मैं नींद में चलता हूँ

याद आती है जब तुमको न पाने की मजबूरी
कभी रोता हूँ सिसकी ले,कभी हाथ मलता हूँ

शहर में लौटने की तुमने जबसे बात बताई है
कैसी होगी मुलाक़ात सोचकर मैं मचलता हूँ

सदा यूं खाद पानी देते रहना प्यार की मुझको
तेरे दिल में भी मैं अगर पौधे सा पलता हूँ

बात कर लेते हो जिस दिन अपने बेचैन से तुम
मैं उस दिन बच्चों की तरह सारा दिन उछलता हूँ




वो चाँद के जैसे शरमाता रहे

हंसकर मेरे ख़्वाबों में आता रहे
वो ता-उम्र यूं ही मुस्कुराता रहे

वो रहम मुझ पर ना खाए बेशक
मुफलिसों पर तरस खाता रहे

मजा आ रहा हैं प्यार करने का
वो मुझे रोजाना ही सताता रहे

देखकर लोग यूं ही तारीफे करे
वो चाँद के जैसे शरमाता रहे

हर जन्म में तुम्हारा बेचैन
वो महबूब ही विधाता रहे

इसीलिए शायद साफ़ दिल कहते है उसे

वो जवाब के साथ सवालात छोड़ देता हैं
सोचते ही रहो ऐसे ज़ज्बात छोड़ देता हैं

जाने कहाँ से लाया है महोब्बत की अदा
बिगाड़कर दिल के हालात छोड़ देता हैं

उसके सिवा तो खुदा ही जानता है उसे
काम की अधूरी हर बात छोड़ देता हैं

इसीलिए शायद साफ़ दिल कहते है उसे
कडवे विचारों को हाथों हाथ छोड़ देता हैं

सांप से भी खतरनाक है वो शख्स बेचैन
जो केचुली की तरह औकात छोड़ देता है

Thursday 15 December 2011

मुझसे मेरी जान यूं भागा मत कर

मुझसे मेरी जान यूं भागा मत कर
तेरे हक में उठती हुई दुआ हूँ मैं

टकटकी लगाकर देख तस्वीर मेरी
फिर बताइयेगा की कैसा हूँ मैं

अब जीते जी कैसे छुड़ाओगे पीछा
लहू बनकर तेरी रगों में रवां हूँ

ख़ुशी में बेशक मुझे याद ना कर
मगर गम की तेरे लिए दवा हूँ मैं

बेचैनी और शकुन दोनों मिलेंगे
आंसू का एक ऐसा कतरा हूँ मैं

बेवजह बेचैन मुझपर शक ना कर
रो पडूंगा बहुत ज्यादा दिलजला हूँ

Wednesday 14 December 2011

हर शख्स मुझको अब दीवाना कहता है

वो हवा बन करके सांसो में यूं बहता है
खुशबू का झोंका जैसे गुलों में रहता है

मेरी हरकतों में जाने ऐसा क्या हो गया
हर शख्स मुझको अब दीवाना कहता है

रखी गई हो जिस पर झूठ की बुनियाद
महोब्बत में वो किला बनते ही ढहता है

अबतक इसीलिए शायद धडक रहा है दिल
वो लहू बनकर रगों में हर वक्त बहता हैं

अपनापन तो उससे हो गया है बेचैन
बेगानों के नखरो को भला कौन सहता है

Tuesday 13 December 2011

ज़ज्बात का खरगोश निशाना था उसका

उम्र भर के साथ को तो गोली मारो
वो हमसे दो दिन में ही खफा हो गये

मुद्दत से भर रहा था जिनमे में रंग
झटके में ख्वाब सारे सफा हो गये

ज़ज्बात का खरगोश निशाना था उसका
कमबख्त करके शिकार दफा हो गये

यह खूब रही इश्क ने राख कर डाला
जलाकर मुझे कमबख्त धुंआ हो गये

गम का जश्न मना बोतल खोल ले बेचैन
सब वादे महोब्बत के जफा होग गये

तुमको पाया तो लगा इंतज़ार अच्छा था

इकरार से सौ गुना इनकार अच्छा था
तुमको पाया तो लगा इंतज़ार अच्छा था

तारे गिनने का क्या काम सौंपा तुने इश्क
आशिक बनने से पहले बेकार अच्छा था

छोड़ दिया उसने मेरा हाल चाल पूछना
ठीक होने से तो मैं बीमार अच्छा था

अब बेचैन रहता हूँ जबसे जवानी आई है
पहले यारों बचपन वाला करार अच्छा था

दोस्ती के नाते सही हंसकर तो बोलते थे
इस बेरुखी से तो उसका प्यार अच्छा था





Monday 12 December 2011

उसने छोड़ने की धमकी दी है

उसने छोड़ने की धमकी दी है
दिल को तोड़ने की धमकी दी है

मेरी रातें तन्हाइयों के साथ
फिर से जोड़ने की धमकी दी है

कशमकश में हूँ क्या करूं उसने
गुमनामी ओढने की धमकी दी है

वो जनता है मैं चल नही सकता
उसने दौड़ने की धमकी दी है

करके बहाना जमाने का बेचैन
दिल को मोड़ने की धमकी दी है

होश वालों से पूछो उन्हें कब शर्म आती है

शौक नही है पीने का मजबूरी पिलाती है
मूड़ बनता है तब जब उसकी याद आती है

दर्दे-दिल बर्दाश्त करना सबके बस का नही
इसे वो समझेगा लोहे की जिसकी छाती है

दगा देता है जब यार प्यार और रिश्तेदार
दवा के भेष में शराब ही साथ निभाती है

उस दिन तो दोस्तों हर हाल में जाम लगाता हूँ
जब लड़ाई के अंदेशे से बाई आँख फडफडाती है

खूब लिहाज़ बरतता हूँ पीने के बाद बेचैन
होश वालों से पूछो उन्हें कब शर्म आती है


अच्छे अच्छे तन्हाई के हवाले किए है

इश्क तूने खूब गडबड घोटाले किए है
अच्छे अच्छे तन्हाई के हवाले किए है

कर दिया साबित पल में दिल को बच्चा
प्यार ने पैदा ऐसे ऐसे दिलवाले किए है

जां छिडकने को मजबूर हुवे है परवाने
शमा ने जब भी दोस्तों उजाले किए है

सरे बज्म की है जिसने चुगली किसी की
उसकी जुबान पर वक्त ने छाले किए है

बढ़ी है जिन धडकनों की रफ्तार बेचैन
उस दिल ने काम सबसे ही निराले किए है

Sunday 11 December 2011

अहसास के पलों की हिफाजत करेंगे हम

जिंदगी भर आपकी इबादत करेंगे हम
अहसास के पलों की हिफाजत करेंगे हम

हरगिज़ ना आंसू आने देंगे आपको कभी
आयेंगे तो पीने की आदत करेंगे हम

होगा वजूद दुनिया में बेशक खुदाओं का
तुम मिल गये हो सबकी खिलाफत करेंगे हम

जीते जी आम होगा ना रिश्ता रूहानियत
लोगों से जिक्र करके क्यूं आफत करेंगे हम

कभी आजमाके देखना अपने बेचैन को
चाहोगे जितना उतनी महोब्बत करेंगे हम




नही समझ पाया हूँ कमबख्त को मैं

वो बारहा जिक्र जमाने का उठाते है
क्या हमको लोग समझ नही आते है

खुदा जाने  वो कैसा दिमाग रखते है
जहाँ से शुरू होते है वही आ जाते है

कहते है वो मेरी खुशियों में खुश है
मगर मिलते ही मौक़ा खूब सताते है

करते है जब वो घुमा फिराकर बात
अपने तो दोस्तों तोते उड़ जाते है

नही समझ पाया हूँ कमबख्त को मैं
अक्सर बेचैन करके प्यार जताते है

इश्क दरिया-ए-अंगार है सम्भल कर मेरी जान

ये अहसास का व्यपार है सम्भल कर मेरी जान
इश्क दरिया-ए-अंगार है सम्भल कर मेरी जान

हम मर्दों का क्या है हम तो होते है अफलातून
औरतों पर शक हजार है सम्भल कर मेरी जान

अच्छा ही होगा अपनी-अपनी हदें बाँट ले हम
दोनों के पीछे परिवार है सम्भल कर मेरी जान

तुम बेशक कर लो दिल की सौदेबाजी मुझसे
अगर खुद पर एतबार है, सम्भल कर मेरी जान

नही होता जिनके दिल पर दिमाग की पहरेदारी
बेचैन वो लोग शर्मसार है सम्भलकर मेरी जान

Saturday 10 December 2011

मेरी बुढ़ी भी पठा कहती है



"आज तुमको गुलाब देता है "
 इक महकता ख्वाब देता हूँ

लो देख लो अपना चेहरा
मैं आँखे पुर आब देता हूँ

मुझे हिज्र कहते वस्ल धारी
जब हालत इज़्तिराब देता हूँ

हंसी है जब मुझे देख तन्हाई
बदले में उसको शराब देता हूँ

ना बुरा मानिएगा आदत का
मैं तो यूं ही जवाब देता हूँ

मेरी बुढ़ी भी पठा कहती है
जब बालों में हिजाब देता हूँ

बेचैन समझ माफ़ कर देना
गर मैं गजले खराब देता हूँ

वो भी शादीशुदा निकली मेरे भी दो साले है

खुदा जाने क्या होगा बड़े गडबड घोटाले है
वो भी शादीशुदा निकली मेरे भी दो साले है

उम्र के इस दोराहे पर ख़ाक इकरार कर ले हम
ज़िम्मेदारी के दोनों ने गले में पट्टे डाले है

गिरे है सर के बल यारों अब तक तो वो लोग
बुढ़ापे में आशिकी के जिसने भी पर निकाले है

ज़ुल्फ़ को रंग देने से रंगने से कभी उम्र नही घटती
अलग महफ़िल में दीखते है जिनके बाल काले है

बुरा मत मानना मेरे महबूब मेरे दोस्त
आज हम जैसो के कारण दोस्ती में उजाले है

कही भी दिल लगा लूं मैं झट से टांग अदा देंगे
एक बीवी और दो बच्चे मेरे ऐसे घरवाले है

उन्हें बेचैन मत करना जो मुझको चाहते है मौला
बड़ी मुश्किल से यारों ने एक दो यार सम्भाले है


Friday 9 December 2011

सबके टकराते है बरतन ना झूठ बोलिए

चेहरा है मन का दरपन ना झूठ बोलिए
तेज़ हो जाएगी धडकन ना झूठ बोलिए

मियाँ-बीवी की तकरार पे शर्मिंदगी कैसी
सबके टकराते है बरतन ना झूठ बोलिए

मुमकिन नही जो बात उसका वादा ना करो
कर दोगे सब कुछ अरपन ना झूठ बोलिए

जब देखते है आप मुझे मुस्कुराकर हुजुर
बढती है दिल की तडफन ना झूठ बोलिए


बेचैन जमाने में पूछ लीजिये किसी से भी
याद आता है सबको बचपन ना झूठ बोलिए

अहसास की औकात हो पर रूबरू नही

 चाहता हूँ मुलाकात हो पर रूबरू नही
रोजाना उनसे बात हो पर रूबरू नही

इक दूजे को समझाने और कुछ बताने में
चाहे जख्मी ख्यालात हो पर रूबरू नही

बनकर भ्रम उनकी मैं रूह से चिपक जाऊ
इक ऐसी करामात हो पर रूबरू नही

हम जिम्मेदारियों को भी हरगिज़ दगा ना दे
अहसास की औकात हो पर रूबरू नही

वो प्यार करे जिस भी पल अपने आप से
मेरे हिस्से भी खैरात हो पर रूबरू नही

होकर बेचैन मुझको महसूस वो करें
uske दिल पे  मेरे हाथ हो पर रूबरू नही 

Wednesday 7 December 2011

उनसे कोई ख्वाइश अब और ना करूंगा

अहसास की नुमाइश अब और ना करूंगा
उनसे कोई ख्वाइश अब और ना करूंगा

उसने भी थोडा बहुत महसूस किया होगा
समझाने की गुंजाइश अब और ना करूंगा

पहले ही उसने मुझे बहुत कुछ दिया है
मैं कोई भी फरमाइश अब और ना करूंगा

जगह बना ली है उसने अब मेरे दिल में
फालतू की सताइश अब और ना करूंगा

वो कितने ही बेचैन होकर करे मुझसे बात
ज़ज्बात की पैमाइश अब और ना करूंगा
सताइश--प्रशंसा

सबके हिस्से में है भाई एक कमीना रिश्तेदार

बर्बादी की है परछाई एक कमीना रिश्तेदार
सबके हिस्से में है भाई एक कमीना रिश्तेदार

गुड और शहद सी मिठास रखता है जुबां में
आदमी है या मिठाई एक कमीना रिश्तेदार

चुगली और साजिस का बनकर ख़ास हिस्सा
आएगा देने सफाई एक कमीना रिश्तेदार

खुश होकर महफ़िल में झुमने वालो सुन लो
बांटता फिरे है तन्हाई एक कमीना रिश्तेदार

घर का झगड़ा सुलझाएगा नही, देखेगा
है बहुत बड़ा तमाशाई एक कमीना रिश्तेदार

फंसकर ही समझोगे तुम बात को बेचैन
कितना बड़ा है कसाई एक कमीना रिश्तेदार

कुछेक रिश्तेदारों को तो वाकई छोड़ देता

वो बेशर्मी से आंचल की बात करते है
जिसको चुनरी तक भी नही ओढना आता

मार नही खाते फिर कभी दुनियादारी में
काश हमें झूठ का निम्बू निचोड़ना आता

कुछेक रिश्तेदारों को तो वाकई छोड़ देता
सचमुच मुझको अगर साथ छोड़ना आता

अफ़सोस कम हो जाता गरीबी का खुदा
मेरे नसीब को गर थोडा तेज़ दौड़ना आता

ना होता घाटा दुकानदारी में बेचैन
यारों के खातों गर हिसाब जोड़ना आता
http://bechainkigazleblogspotcom.blogspot.com/2011/12/blog-post_07.html

Tuesday 6 December 2011

जो हमारे बीच में अहसास है

जो हमारे बीच में अहसास है
बड़े बड़े रिश्तों से भी ख़ास है

मेरे व्यवहार पर शक ना करना
खुद पर आपको गर विश्वास है

किसको फुरसत है इश्कबाजी करें
अब तो दिल बहलाने का प्रयास है

लोग जिसे प्यार कह रहे है आज
मेरी नजर में कतई बकवास है

नही जानता बेचैन सचमुच में
उसको लेकर किस किसको आस है

Monday 5 December 2011

आशु श्योराण के जन्मदिन पर विशेष

जन्मदिन पर कबूल करो मेरी दुआएं
आज से ख़ुशी आपकी गुलाम हो जाये


तंदरुस्ती पर आपका हो जाये कब्जा
फूलों की तरह आप हमेशा मुस्कुराए

दौलत-ओ-शोहरत इतनी मिले आपको
जीते जी कोई भी हिसाब ही न लग पाए

कम से कम सौ मुरादे मन की पूरी हो
ख़्वाबों ख्यालों की दुनिया संवरती जाये

बेचैन है जो आपके नाज़ ओ अंदाज़ से
खुदा उनको चैन कभी भी ना मिल पाए

कोई माँ जैसा नही खुली चुनौती है

रिश्तों के समन्दर में बहुत से मोती है
कोई माँ जैसा नही खुली चुनौती है

बज्म की असली जान तो वो बन बैठा
चुगली जिस शख्स के नाम पर होती है

जीते जी ना कम होगा यह खजाना
दर्द की दिल के पास तगड़ी फिरौती है


सुबकियों की भाषा तो वही समझेगा
अन्देरे में जिसकी आँखे नूर खोती है

सोचकर देखो मेरे नौजवान यारों
नई पीढ़ी औलाद खातिर क्या बोती है

होगा तेरा भी नाम इक दिन बेचैन
शेरों-सुखन किसके बाप की बपौती है

Sunday 4 December 2011

क्या करू बताओ...सुलझे हुवे आशिकों

दिल में उसका गम है पहलु में बोतल
क्या करू बताओ...सुलझे हुवे आशिकों

अव्वल दर्जे की बकवास निकली महोब्बत
मेरी जां बचाओ .सुलझे हुवे आशिकों

नीलाम ना हो जाये माँ बाप की इज्जत
मुझे राह दिखाओ .सुलझे हुवे आशिकों

तुमको भी कसम है अपने अपने प्यार की
मुझे मुर्ख ना बनाओ सुलझे हुवे आशिकों

क्यूं हो जाता है बेचैन दिल लगाकर इंसा
बात से पर्दा उठाओ सुलझे हुवे आशिकों

Saturday 3 December 2011

काश रिश्तेदार सारे एक नाव में हो

काश रिश्तेदार सारे एक नाव में हो
डूब जाये सभी चर्चा पूरे गाँव में हो

मैं आज इससे बड़ी बददुआ क्या दू
रकीब मेरे सभी द्रोपदी से दाँव में हो

ख्याल रखना मौला मेरे मुरीदो का सदा
ना छाला उनके कभी दिल-ओ-पाँव में हो

न औरों को कभी जिसने तवज्जो दिया
उनका जिक्र भी कौवों सी कांव-कांव में हो

कभी मिला खुदा तो यही करूंगा जिक्र
बेचैन ख्वाबों ख्यालों की सभी छांव में हो





प्यार इक बार ही होता है बार-बार नही

प्यार इक बार ही होता है बार-बार नही
ये तो अहसास है यारों कोई व्यपार नही

आइना देखने की जिसपे है फुर्सत बाकि
दीवानगी का वो पूरी तरह हकदार नही

दवाब मिलने का महबूब पर जो डालता है
किसी नजर से आशिक वो समझदार नही

नही है दूध से धुला हुआ कोई शख्स यहाँ
ज़ुल्फ़ की जंजीरों में कौन गिरफ्तार नही

चैन उड़ता है सभी का ही बेचैन देर सवेर
आज अपना भी उड़ा है मुझे इनकार नही

Friday 2 December 2011

अपना तो यारी से भरोसा उठ सा गया

कल जिसे ऊँगली पकड़ चलना सिखाया था
आज हमसे ही दौड़ने की शर्त लगा गया

अहसान फरामोशों की बढ़ रही है तादाद
मेरे अल्लाह जमी पर ये कैसा वक्त आ गया

उस दिन समझा औलाद की समझदारी
जब बेटा अपने बाप को नादान बता गया

वो कुत्ते पर जितना आये रोज खर्चता है
गरीब का कुनबा उतने में महिना चला गया

जिस अदा से किया है मुझे बेचैन उसने
अपना तो यारी से भरोसा  उठ सा गया

Thursday 1 December 2011

बहुत बड़ा कमबख्त इंतजार है वो

वादा खिलाफी में हुशियार है वो
इसलिए तो यारों का यार है वो

सबको नही हासिल आसानी से
बहुत बड़ा कमबख्त इंतजार है वो

मैं ही सोचा विचारी में फसां हुआ हूँ
अपने किये पर कहाँ शर्मसार है वो

ता-उम्र शुमार होगा मेरे अजीजों में
फक्त इसलिए की मेरा इकरार है वो

इसलिए नही बनी उसकी आबरू पर
मेरा गलती से बेचैन रिश्तेदार है वो

Sunday 27 November 2011

वो आराम से कुत्ते पालते है

हमसे तो शौक भी नही पलता
वो आराम से कुत्ते पालते है

सलामत रहे हौसला उनका
जो गम को गेंद सा उछालते है

उम्र भर पाते है वो लोग दुख
जो बात-बात पर बातें टालते हैं

सुना है उसे शौहरत मिलती है
मछलियों को जो दाना डालते है

पूछ ही लेते है दोस्त हाल बेचैन
रिश्तेदार भला कब सम्भालते है

पीने के बाद हनुमान बन जाता हूँ

  पीने के बाद हनुमान बन जाता हूँ
अपने मोहल्ले की शान बन जाता हूँ

मैं खूब खोलता हूँ पोल पड़ोसियों की
जब सच बोलने की खान बन जाता हूँ

जब लगाते है लोग शर्त मेरे होश पर
तब मैं गीता और कुरआन बन जाता हूँ

कर के देखो मुझसे किसी बात पर बहस
नशे में जहाँ भर का मैं ज्ञान बन जाता है

देता हूँ बेचैन ऊंचाई छोटे भाई को मैं
जाम लगाकर जब आसमान बन जाता हूँ

Friday 25 November 2011

बस उम्मीद ने ही जीना दुश्वार कर दिया

दुश्मनों की चालों का मैं तो दे दूंगा जवाब
क्या होगा गर दोस्तों ने भी वार कर दिया

अब तक तो यही सिखलाया है तजुर्बे ने
वही मुकरेगा जिसने इकरार कर दिया

वही जुबान कहलाएगी रसभरी दोस्तों
जिसने वादों का तीर दिल के पार कर दिया

महज़ एक वादा वफा करने की चाह में
क्यूं भरोसे का कत्ल तुमने यार कर दिया

बकाया तो सब कुछ काबू में है बेचैन
बस उम्मीद ने ही जीना दुश्वार कर दिया


Wednesday 23 November 2011

मेरे हिस्से की मुझको खैरात याद आई

तेरे लबों को देखकर इक बात याद आई
गुलाब को भी अपनी औकात याद आई

सरे बज्म खिलखिलाकर तुम क्या हंसे
मुझको चांदनी की वो बरसात याद आई

मैं यूं इतराया अपनी खुशनसीबी पर
कॉलेज के दिनों की मुलाक़ात याद आई

अनजाने में जब मिलाया उसने हाथ
मेरे हिस्से की मुझको खैरात याद आई

अपनी तरह बेचैन जब देखा इक यार
हमें महोब्बत में मिली वो मात याद आई

आज अपने सुदामा को पिला दे कृष्णा

होश  का गिरेबां पकड़ के हिला दे कृष्णा
आज अपने सुदामा को पिला दे कृष्णा

कह रहे है लोग तू मस्ती का मालिक है
फिर थोड़ी मेरे जाम में मिला दे कृष्णा

अपना घर बसाऊं या फिर शराब पिऊ
फैसला कोई मजबूत सा सुझा दे कृष्णा

इक बार मिलने से तो दिल ना भरेगा
मुलाक़ात का ख़ास सिलसिला दे कृष्णा

बेचैन रहूँ उम्र भर होश के लिए मैं
तू नशे का फूल ऐसा खिला दे कृष्णा



Monday 21 November 2011

काश कुछेक लोगों से रिश्तेदारी ना होती


वो दूर है इसलिए तो याद आता है अक्सर
होते एक ही शहर में तो बेकरारी ना होती

जीऊंगा जब तक ना मिट सकेगा ये धोखा
काश कुछेक लोगों से रिश्तेदारी ना होती

मिल ही जाता हाथों हाथ मेहनत का फल
गर मुझसे मेरे नसीब की पर्देदारी ना होती

ख़ाक खूब पीते है वो लोग जमाने में
सर पर जिसके किसी की उधारी ना होती

आ ही जाती समझ में अगर बात संतों की
फिर दुनिया में बेचैन मारा मारी ना होती

Sunday 20 November 2011

जंगल में सीधे पेड़ पहले काटे जाते है

 जंगल में सीधे पेड़ पहले काटे जाते है
लोग शरीफजादों को इसलिए सताते है

मैंने छुपकर सुनी है अमीरों की बातचीत
वो मुफलिसों को आदमी थोड़े बताते है

तू परदेश में कमाने मत भेज तकदीर
अभी तक मेरे नौनिहाल बहुत तुतलाते है

जड़ों की मिट्टी को ठुकराकर कुछ नही बचेगा
यारों बियाबा के पेड़ रोज़ ही बतियाते है

बस होशमंदों को थोडा होश रहे बेचैन
शराबी नशे में महज़ इसलिए बुदबुदाते है

Saturday 19 November 2011

वो सूदखोर नही तो मतलबी जरुर है

ज़हाज़ उड़ाने का उसे काम क्या आया
व्यवहार भी कमबख्त हवाई करता है

यूं तो मिलता है मुझसे भी मुस्कुराकर
मगर पीठ पीछे वो बुराई करता है

मैं मरूंगा जब तुम समझोगे छोटे
क्यूं फ़िक्र का सौदा बड़ा भाई करता है

अपनेपन की उससे उम्मीद ना रखिये
जो शख्स रिश्तों को तमाशाई करता है

वो सूदखोर नही तो मतलबी जरुर है
पैसे की औकात से नपाई करता है

 उसको ही बेवकूफ कहती है दुनिया
बिना सोचे जो शख्स भलाई करता है

जीते जी कभी भी खुल सकते है बेचैन
वक्त जिन जख्मो की तुरपाई करता है

मेरे भीतर की कस्तूरी मुझे भी तो पता लगे

 अल्लाह उसकी मजबूरी मुझे भी तो पता लगे
इंतजार के बीच की दूरी मुझे भी तो पता लगे

उलटे-सीधे ख्यालात दिल में पनाह ले रहे है
बेरहम वक्त की मंजूरी मुझे भी तो पता लगे

एक मुद्दत से खा रहा हूँ मैं ठोकरे दर-ब-बदर
मेरे भीतर की कस्तूरी मुझे भी तो पता लगे

महज़ अंदाज़े से उसे बेवफा करार कैसे दे दूं
आखिर दोस्तों बात पूरी मुझे भी तो पता लगे

सीखना पड़ता है बेचैन ये चमचागिरी का हुनर
करूं कितनी कहाँ जी हुजूरी मुझे भी तो पता लगे

Thursday 17 November 2011

अब तो लड़ेंगे यारों आखरी दम तक


जब पहुँच गये है जिंदगी के खम तक
अब तो लड़ेंगे यारों आखरी दम तक

अपनी मौत को तो मौत आने से रही
आजमाकर तो देखे खुद को भ्रम तक

क्या बिगाड़ लेगी दुश्मन की तरकीब
कोई वार ही जब ना पहुंचेगा हम तक

मिटा देगी आदम ज़ात को मजहबी जंग
मत नफरत बिछाईएगा दैरो हरम तक

यूं ही नही खुल जाते जन्नत के दरवाजे
खुदा नापकर देखते है बेचैन करम तक

जिसने काटे हो कभी मुफलिसी के कुत्ते दिन

गरीबों का हमदर्द तो वही शख्स बन पायेगा
जिसने काटे हो कभी मुफलिसी के कुत्ते दिन

अर्श पर ले जाकर बेशक बैठा दो औकात
भूल कर तो दिखाओ जिंदगी के कुत्ते दिन

अपनी हस्ती पर दोस्त ना इतरा इस कदर
जाने कब आ जाएँ आदमी के कुत्ते दिन

मैंने भी महोब्बत करके देखी है दोस्तों
बहुत रुलाते है बेबसी के कुत्ते दिन

ध्यान से उठाना दुःख की तोहमत बेचैन
इतिहास बन जाते है गमी के कुत्ते दिन

Wednesday 16 November 2011

चुगली समझता हूँ मैल ख्यालात का

समझ गया हूँ खेल है सारा जज्बात का
अब नही मानता मैं बुरा किसी बात का

बेशक कितनी करें बुराई मेरी दुश्मन
चुगली समझता हूँ मैल ख्यालात का

दिन के उजाले में ही होता है सब कुछ
अब इंतजार नही करता कोई रात का

तंज़ कसने वालों से ही सवाल है मेरा
कितना कद होना चाहिए औकात का

कमीन हर हाल में कमीन कहलायेगा
बेशक लबादा ओढ़ता हो मेरी ज़ात का

वो कल क्या करेगा इसकी फ़िक्र छोडो
जमाना है आजकल नगद करामात का

अगली दफा वो ही बाज़ी मारेगा बेचैन
जिसके समझ आया मतलब मात का

Monday 14 November 2011

असली अंदाज़ में आकर मां-माँ कर दूं

सोचता हूँ आज पीकर हंगामा कर दूं
कई दिन हुवे मोहल्ले में ड्रामा कर दूं

दो-दो पैग देकर गली के सब बुढो को
मस्ती का पैदा एक कारनामा कर दूं

बहुत कान ऐंठे है बचपन से फूफा ने
क्यूं ना नशे में उसको मामा कर दूं

सच में अगर वो भी भूल गया है मुझे
खत्म यादों को खरामा-खरामा कर दूं

भूलके शर्म लिहाज़ पीने के बाद बेचैन
असली अंदाज़ में आकर मां-माँ  कर दूं


Sunday 13 November 2011

हमजुबां से खुदा मुझको मिलाता क्यूं नही


कोई मजबूरी है तो मुझे बताता क्यूं नही
वो मेरी तरह यारी में पेश आता क्यूं नही

शक है मुझे समझकर भी नही समझा वो
समझ गया तो ढंग से समझाता क्यूं नही

दांतों तले ऊँगली दबाना तो छुट गया पीछे
मुझको देखकर अब वो शरमाता क्यूं नही

डालकर ख़ाक मेरी बरसों की दीवानगी पर
मेरी हालत पर थोडा रहम खाता क्यूं नही

टकरा ही जाते है बेचैन हर बार दुसरे लोग
हमजुबां से खुदा मुझको मिलाता क्यूं नही


वो दोस्ती से पहले मुखबरी करता है

वो दोस्ती से पहले मुखबरी करता है
तब जाकर अपना शक बरी करता है

करके चिकनी चुपड़ी बातें कमबख्त
मौका मिलते ही वो जादूगरी करता है

हर कदम हर रिश्ते से फरेब मिला है
वो इसलिए बात खोटी-खरी करता हैं

माँ का दर्दे दिल महसूस नही है जिसे
बेटा फिर बेकार ही अफसरी करता है


वो उतना ही शातिर निकलेगा बेचैन
जो जितनी जुबान रसभरी करता है

Saturday 12 November 2011

ख्वाबों को बच्चे समझ पालता ही रहा

मेरा सब्र गेंद की तरह उछालता ही रहा
कल के नाम पर वो मुझे टालता ही रहा

न मालूम था नही हो पाएंगे कभी जवां
ख्वाबों को बच्चे समझ पालता ही रहा

दुबारा टूटे तमाम भ्रम एक-एक करके
दोस्ती में इस बार भी मुगालता ही रहा

इससे ज्यादा ना और कुछ कर सका मैं
बस गजलों पर भडास निकालता ही रहा

जवां होते ही मिला था जो दर्द यारों से
मुझको उमर भर बेचैन सालता ही रहा