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Tuesday 27 September 2011

कभी गया ही नही कोई आसमां झुकाने



ना आई नींद रात को किसी भी बहाने
रह रह कर तेरी याद आ बैठती सिरहाने
करवटें सैकड़ों बदली दिले-बेताब ने लेकिन
गूंजते रहे कानों में तेरे बोल अनजाने
महोब्बत के सिवा और भी किस्से है कई
क्यूं कुरेदते हो यारों वो जख्म पुराने
ज़ज्बात मुझसे अपने दबाए ना जायेंगे
कभी चल पड़ी जो मौज कोई तुफां उठाने
छोटी से तमन्ना के लिए जान की बाज़ी
क्या सोचकर बनाए खुदा तुमने परवाने
कौन सा काम है जो इंसां कर नही सकता
कभी गया ही नही कोई आसमां झुकाने
बुरा लगता गर उन्हें यूं मेरा करीब आना
ना जायेगा बेचैन किसी का दिल दुखाने