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Friday 2 September 2011

घर की टूटी दिवार की चिंता कर


छोड़ दे शौक घरबार की चिंता कर
नादां ना बन व्यपार की चिंता कर
क्या हासिल हवाई किले बनाने से
घर की टूटी दिवार की चिंता कर
जवानी के भ्रम तो पछतावे देंगे
तू जिंदगी के सार की चिंता कर
खुदगर्जी में उम्र कैसे गुजरेगी
मन में छिपे विचार की चिंता कर
गजल का क्या बन ही जाएगी
अ सुखनवर असआर की चिंता कर
जो रहता है बेचैन तुझे पाने के लिए
कभी तो उस तलबगार की चिंता कर


1 comment:

G.bankar said...

Wah! bechain sahab kamal ki Ghazal hai Jawani ke bhram to pachhatave dege kya line ..........