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Saturday 21 January 2012

तू बेचैन होकर जब तक अपने पीहर पहुंचेगी

देख लेना उस पल तुम्हारी भर आएँगी आँखें
मेरे ना होने की जब तुम तक खबर पहुंचेगी

मेरी चीख सुनाई देगी तेरे ज़हन में हरसू
तुम्हारे कसूर तक जब तुम्हारी नजर पहुंचेगी

याद आएगी जब पथराई आँखों की बेबसी
इक आह तेरी रूह तक जाने जिगर पहुंचेगी

मैं तो शहर से क्या दुनिया से ही जा चुका हूँगा
बता तो फिर चाय पीने तू किसके घर पहुंचेगी

शर्त लगा ले तब तक पैदा हो जायेगा अफ़सोस
तू  बेचैन होकर जब तक अपने पीहर पहुंचेगी

चाहने वालों की तरह तू चाहकर तो देखता

तन्हाई में गजले मेरी गुनगुनाकर तो देखता
चाहने वालों की तरह तू चाहकर तो देखता

गिर जाता कोई न कोई आंसू तेरे दामन पर
मेरी याद में पलकें झिलमिलाकर तो देखता

मेरी दीवानगी से ही तू घबराता रहा सदा
मेरा प्यार अपने डर से टकराकर तो देखता

मैं उतना पागल नही हूँ तू जितना सोचता है
समझ जाता बात प्यार से समझाकर तो देखता

जुल्फों के साथ ख्याल भी तेरे उलझे रहे सदा
सुलझा देता बेचैन जिक्र उठा कर तो देखता

बच्चे की तरह पालूंगा ता-उम्र तुम्हारी याद

बच्चे की तरह पालूंगा ता-उम्र तुम्हारी याद
तुम ले जाना इसे बेशक जवान होने पर

तेरे इश्क ने ही सिखाया है मुझको सबक
पछताता है आदमी सच का ज्ञान होने पर

यकीन का नाम सुना है तो कर थोडा यकीन
बुरा भला बकता हूँ कुछ परेशान होने पर

मैं तो खुद पर इतरा रहा हूँ पाकर तुझको
तू भी कुछ गरूर कर मेरी जान होने पर

अगर नही मालूम तो बता देता हूँ  तुझको
मन शक पर शक धरता है बेईमान होने पर

तेरे प्यार की जरा सी मुझे हवा क्या लगी
खूब रोता हूँ कच्चे दिल का इंसान होने पर

मुझे लेकर बेचैन कोई किसलिए होगा भला
क्यूं याद रखेगा पहलू में आसमान होने पर