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Monday 17 October 2011

मत पूछो कलाकारी ने छिना है क्या हमारा



कभी तालियों ने लूटा कभी शाबाशी ने मारा
मत पूछो कलाकारी ने छिना है क्या हमारा

शोहरत मैं मानता हूँ मिल ही गई हैं लेकिन
खाली नाम के ही दम पर होता नही गुज़ारा
तकलीफ दूसरों की हुआ देखकर दुखी पर
ज़ज्बातों में बहकर मिला फायदा क्या यारा
दुनिया है ये उसी की जो लूटे इसको हर पल
रखें ठोकरों के ऊपर सदा ईमान का पिटारा
वे जानता है पक्के गम और ख़ुशी की भाषा
जो चख चुके हैं यारों अश्कों का स्वाद खारा
कहने को हैं आसां करना हैं कितना मुश्किल
बस तूफानों से लड़ें वो चाहते हैं जो किनारा
बेचैन की गुज़ारिश हैं अगले जन्म में दाता
दिल सीने में ना देना होगा अहसान तुम्हारा