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Thursday 19 July 2012

क्यूं रोया मैं तेरे वास्ते ज़हन निचोड़ के

तुमने अच्छा नही किया मुझसे मुख मोड़ के
मैं रख रहा हूँ अपने ही दिल को तोड़ के

ढूंढें नही मिलूंगा तुझे आज के मैं बाद
गुमनामियों में जा रहा हूँ यादें ओढ़ के

सब मेरी ही भूल थी हां सब मेरा कसूर था
क्यूं रोया मैं तेरे वास्ते ज़हन निचोड़ के

और बातें सारी झूठी सच्ची एक बात
वो लौटते नही है जो जाते है छोड़ के

तेरी चाहतो से सौ गुना मैं प्यार दे चला
कभी देखना फुरसत में तू हिसाब जोड़ के

तन्हाइयों ने निगला है उनको ही दोस्तों
जो देखते नही कभी खुद को झंझोड़ के

तू खुद ही कर गया मुझे अपाहिज बेचैन
अब मुमकिन नही आऊँ तेरे पास दौड़ के