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Sunday 30 October 2011

भीड़ पर भी यकीन हुआ पर

कसम खुदा की मैं रो पडूंगा
गर ना मुडके तू पास आया

नसीब में क्यूं मेरे ही यारों
गम में डूबा अहसास आया
दिखलाता मैं परवाज़ अपनी
पर ना हिस्से आकाश आया
भीड़ पर भी यकीन हुआ पर
ना रिश्तों पर विश्वास आया
सच कहूं इस जन्म में बेचैन
ना इश्क हमको रास आया

दुश्मन ही मेरा हिसाब रखते




मुझे मुनीमों की क्या जरूरत
दुश्मन ही मेरा हिसाब रखते

अपने जरूरी काम भूलकर भी
याद मेरा वो हर ख्वाब रखते
हो चाहे चुगली बनाम बेशक
वो चर्चा मेरी बेहिसाब रखते
नशे की हद तक गुजरते है वो
जो जाम के संग कबाब रखते
ना यादें इतना महकती उनकी
ना किताबों में जो गुलाब रखते
निहाल होते डूबकर दोनों बेचैन
जो नसीब में कोई चनाब रखते

Saturday 29 October 2011

जिन्हें मुकदर ना रास आया



खुदा करे वो भी रोये छिपकर
सुख के लम्हों को याद करके

हो इल्म उनको भी बेबसी का
पाकीज़ा उल्फत बर्बाद करके
तन्हाई दिल की करेगी बातें
देखिए खुद को नाशाद करके
ख़ुशी का दुगना मज़ा मिलेगा
देखो गम की फरियाद करके
ना छिप सकेगा असर उम्र का
जड़ी-बूटियों को इजाद करके
जिन्हें मुकदर ना रास आया
वो देखे मेहनत को याद करके
ना दे सकोगे फकीरों को कुछ
बेचैन दिल को फौलाद करके


Friday 28 October 2011

हां आज भी मैं गरीबी से प्यार करता हूँ



मुफलिसी मेरी माँ थी स्वीकार करता हूँ
हां आज भी मैं गरीबी से प्यार करता हूँ

ज्यादा बड़ा अब भी वजूद नही है मेरा
फिर भी छोटा होने का इकरार करता हूँ
औकात की बात आप न करो तो अच्छा
मैं हैसियत वालों पे कम एतबार करता हूँ
शोहरत और दौलत मेरी नौकरानी होगी
मैं मन ही मन दोस्तों इंतजार करता हूँ
लगाकर दिल काँटों से कभी कभी बेचैन
मैं फूलों को भी अक्सर शर्मसार करता हूँ

Thursday 27 October 2011

जमाना यहाँ बैंड बजा देगा कालिये तेरा



कसेंगे लोग अगर तंज़ तो मैं सह लूँगा
है बात तेरी बता क्या होगा कालिये तेरा

हूँ गब्बर सिंह मैं दिल का फ़िक्र ना कर
जमाना यहाँ बैंड बजा देगा कालिये तेरा
सभी को तुमने बसंती समझ कर घूरा है
आकर कोई भी रिमांड लेगा कालिये तेरा
लिहाज़ तो बेचकर तुम पहले ही खा चुके
दिल क्या क्या और बेचेगा कालिये तेरा
अब हाले दिल कौन पूछेगा कालिये तेरा

नहा कर ठंडे पानी से इश्क फरमा बेचैन
राहत गर्मी से मन पायेगा कालिये तेरा






दिमाग और दिल की बत्ती बुझा दूं मैं





कई बार सोचता हूँ तुझको भुला दूं मैं
दिमाग और दिल की बत्ती बुझा दूं मैं

जिक्र तक तुम्हारे पहुंचे न मुझ तलक
यादों के काफिले को रस्ता भुला दूं मैं
तन्हाई और महफ़िल से रिश्ता तोड़कर
जहाँ के रंजो गम में खुद को घुसा दूं मैं
कर दूंगा बाद में झुक कर तुम्हे सलाम
बुजदिल नही हूँ पहले सबको बता दूं मैं

बेचैन रहना हर घड़ी छुट जायेगा शायद
आईना हाँ इक दिन खुद को दिखा दूं मैं

Wednesday 26 October 2011

जानता हूँ दीवाने और क्या करते है

जानता हूँ दीवाने और क्या करते है
महबूब की यादों का नशा करते है

किसी भी बहाने सज़ा मिलती ह
महोब्बत में जो लोग दगा करते है
मंदिरों में जाकर माथा रगड़ने वाले
वजूद की पत्थरों से चुगलियाँ करते है
जंग के साये कम से कम सयाने लोग
अमन और सलामती की दुआ करते है
ता-उम्र दुःख पाते हैं बेचैन वो लोग
हर किसी पर जो भरोसा करते है

बेशक रहे ख्वाब अधूरे रात मगर ये रात रहे

दिल में किसी यारी का शोर ना हो तो अच्छा है
करम दोस्तों के अब और ना हो तो अच्छा है
ना सजे महफ़िलें और ना कही मैं शेर कहू
झूठी वाह-सुनने का दौर ना हो तो अच्छा है
झूठी है तो झूठ रहे होठों की मुस्कान मगर
धडकनों पे किसी का गौर ना हो तो अच्छा है
बेशक रहे ख्वाब अधूरे रात मगर ये रात रहे
शबनम की कातिल भोर ना हो तो अच्छा है

देखा है परख कर  बेचैन , गैर-गैर ही निकले
अब दिल का कोई चितचोर ना हो तो अच्छा है

Tuesday 25 October 2011

दिवाली पे तोहफा सबको ख़ास मिले



रौशनी,खुशखबरी और मिठास मिले
दिवाली पे तोहफा सबको ख़ास मिले

दुआ है हर आंगन में उतरें खुशियाँ
हर घर में मस्ती का अहसास मिले
किसी चीज़ को ना तरसे कभी कोई
अपने हिस्से का सबको आकाश मिले
खुलेगा पिटारा शोहरत और दौलत का
लक्ष्मी की और से सबको विश्वास मिले
इस्तकबाल करे कामयाबी हर काम में
दिक्कतों को सदा खातिर बनवास मिले

शौक बेशक सर चढ़कर कुछ बोले बेचैन
पर मजबूरी में ना किसी का उपवास मिले



Sunday 23 October 2011

अब के दिवाली पर इक काम कीजिये

अब के दिवाली पर इक काम कीजिये
कुछ खर्चा मुफलिसों के नाम कीजिये

तकदीर समझ बैठे है जो अंधरों को
आप रौशनी का वहाँ इंतजाम कीजिये
कोरी मुबारकबाद में कुछ नही हासिल
थोडा सा मीठे का भी एहतराम कीजिये
महसूस करोगे सुकून मन में दोस्तों
पैर छूकर बुजुर्गों को प्रणाम कीजिये
दौडाके नजर अपने अपने इलाकों में
जरुरतमंदों की यादगार शाम कीजिये
गुप्त दान करने का जमाना जा चुका
जो आपको करना है सरेआम कीजिये
ता- उम्र काम आएगी समझ ले बेचैन
ना ख्वाइशों का खुद को गुलाम कीजिये

राम जाने किधर गया एक उल्लू का पठा



दिल लेके मुकर गया एक उल्लू का पठा
हाय कबाड़ा कर गया एक उल्लू का पठा
मेरी वजह से तन्हाइयों में बैठकर रोता है
इल्जाम सर धर गया एक उल्लू का पठा
आज चौपाल में बैठे लोग बतिया रहे थे
सुबह सवेरे मर गया एक उल्लू का पठा
वक्त ओ-नसीब ने थोडा साथ क्या दिया
कुछ ज्यादा संवर गया एक उल्लू का पठा
करके वादा ता-उम्र साथ देने का बेचैन
राम जाने किधर गया एक उल्लू का पठा

BECHAIN MAN JYA PAKISTAN

Saturday 22 October 2011

जाके दरिया में गिरूंगा मैं नदी हूँ यारों



लोग कहते हैं मैं दीवाना कवि हूँ यारों
जाके दरिया में गिरूंगा मैं नदी हूँ यारों

हादसा हो या कोई बात भूलती ही नही
मैं तो इतिहास की यादगार कड़ी हूँ यारों
नही हो पा रही बंद मैं ऐसी फाइल हो गया
रोजाना तारीखों पर आके मैं खड़ी हूँ यारों
मैं अमीरों की भूख हूँ जो मिटती ही नही
गिद्ध की नजरों सी रुपयों पे गढ़ी हूँ यारों
मुझको समझेंगे वही जो भी बेचैन यहाँ
चैन वालों के लिए मैं अजनबी हूँ यारों



Friday 21 October 2011

दिमाग पर यादों का भारी कैसे पलड़ा है



पूछूँगा खुदा मुझको गर मिल गये कभी
तदवीर और तकदीर में से कौन बड़ा हैं
क्यूं ता-उम्र सफर में ही रहता हैं आदमी
महफ़िल में होके भी कोई कैसे तनहा है
सीने में दिल,दिल में धडकने है लेकिन
रग रग में कोई बनके लहू क्यूं दौड़ता हैं
पलकों की मुंडेरों पे जुगनू बैठते है क्यूं
दिमाग पर यादों का भारी कैसे पलड़ा है
मालूम हो किसी को तो बताना हमें जरुर
क्यूं बेचैन जफा का हुश्न से गहरा नाता हैं

Thursday 20 October 2011

मुझसे मिलना है तो मेरी बस्ती में आइए



ना हूजुर आप मतलब परस्ती में आइए
छोड़ कर गर्ज़ थोड़ी सी मस्ती में आइए
मैं कमल हूँ मिलूंगा कीचड़ में तुझको
मुझसे मिलना है तो मेरी बस्ती में आइए
दिलजले जाने क्या पूछ बैठेंगे तुझसे
हाय महफ़िल में ना तंगदस्ती में आइए
जान हैं तो जहाँ हैं बाद में होता रूतबा
बात को समझकर मेरी कश्ती में आइए
कुछ उम्र का भी तकाजा होता हैं बेचैन
इतनी जल्दी बड़ों की ना हस्ती में आइए

Wednesday 19 October 2011

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अपने दिमाग का खुद रकीब हूँ



सच पूछिए तो मैं बेहद गरीब हूँ
हालात से लड़ता हुआ नसीब हूँ
हर फैसला दिल पर छोड़ देता हूँ
अपने दिमाग का खुद रकीब हूँ
तन्हाई में खुद से बात करता हूँ
इसलिए मैं दूसरों से अजीब हूँ
निकलवा ही लेते हैं मुझसे काम
जिनके लिए मैं एक तरकीब हूँ
पसंद नही बकवासमंदो को बेचैन
उनके सर पर मैं लटकती सलीब हूँ

Tuesday 18 October 2011

हमें तो हमारा ज़ज्बात खा गया



दिल के मामले में मात खा गया
हमें तो हमारा ज़ज्बात खा गया
इस कदर चालाक हैं महबूब मेरा
मिला तो काम की बात खा गया
सफर में एक छतरी थी दोनों पे
ना बरसा मौसम बरसात खा गया
करके बहाना फुर्सत न मिलने का
मेरे हिस्से की मुलाक़ात खा गया
हराम का उसे खाने की आदत थी
इसलिए वो मेरे ख्यालात खा गया
हद की भी हद होती हैं बेचैन
वो कैसे अपनी औकात खा गया

धडकन पर सबके पहरा मिलेगा



जख्म दिल का गहरा मिलेगा
हर आँख में इक चेहरा मिलेगा
ये अलग बात है कोई हाँ ना भरे
धडकन पर सबके पहरा मिलेगा
रूह खिल उठेगी जनाबे आली
जीत का जिस पल सेहरा मिलेगा
खुद पर ही भरोसा नही जिसका
उस शख्स का वक्त ठहरा मिलेगा
ना सोचा था दुआ के वक्त बेचैन
इस दौर का खुदा बहरा मिलेगा

Monday 17 October 2011

मत पूछो कलाकारी ने छिना है क्या हमारा



कभी तालियों ने लूटा कभी शाबाशी ने मारा
मत पूछो कलाकारी ने छिना है क्या हमारा

शोहरत मैं मानता हूँ मिल ही गई हैं लेकिन
खाली नाम के ही दम पर होता नही गुज़ारा
तकलीफ दूसरों की हुआ देखकर दुखी पर
ज़ज्बातों में बहकर मिला फायदा क्या यारा
दुनिया है ये उसी की जो लूटे इसको हर पल
रखें ठोकरों के ऊपर सदा ईमान का पिटारा
वे जानता है पक्के गम और ख़ुशी की भाषा
जो चख चुके हैं यारों अश्कों का स्वाद खारा
कहने को हैं आसां करना हैं कितना मुश्किल
बस तूफानों से लड़ें वो चाहते हैं जो किनारा
बेचैन की गुज़ारिश हैं अगले जन्म में दाता
दिल सीने में ना देना होगा अहसान तुम्हारा

Sunday 16 October 2011

करेंगे अब खुलासा करेंगे अब खुलासा



खैर नहीं सुन लो तुम्हारी भ्रस्त्ताचारियों
लड़ने की हो गई हैं तैयारी भ्रस्त्ताचारियों
करेंगे अब खुलासा करेंगे अब खुलासा ............................

भूखमरी खुदगर्जी जो तुमने फैलाई हैं
रिस्प्त्खोरी की जो तुमने हवा चलाई हैं
उस हवा पर नजर हमारी भ्रस्त्ताचारियों
करेंगे अब खुलासा, करेंगे अब खुलासा ............................

सबके सपने सच होंगे सबकी होगी जीत
रोज खुलासे होने से गूंजेंगे प्यार के गीत
 होगी छवि देश की न्यारी भ्रस्ताचारियों
करेंगे अब खुलासा, करेंगे अब खुलासा ............................

वसुधैव कुटुम्बकम का नारा सब लाओ
अन्ना जी की राह पकड देश के हो जाओ
अब जाग गई जनता सारी भ्रस्ताचारियों
करेंगे अब खुलासा, करेंगे अब खुलासा ............................

आओ शहीदों के सपनों को पूरा हम कर दें
भारत माँ की दुःख तकलीफें सारी ही हर दें
बेचैन होने की तुम्हारी बारी भ्र्स्ताचारियों
करेंगे अब खुलासा, करेंगे अब खुलासा ............................



एक प्यार स्कूली को खड़ा सामने पाता हूँ



बचपन से जवानी तक जब नजरें दौड़ाता हूँ
एक प्यार स्कूली को खड़ा सामने पाता हूँ

नही भूला हूँ दोनों ही हम उमर के कच्चे थे
अहसास में पर यारों हम बिलकुल सच्चे थे
बंद करता हूँ जब आँखें कही खो सा जाता हूँ
एक प्यार स्कूली को..................

उस जैसी सादगी और मुस्कान नही देखी
कहने को तो दुनिया में खूब निगाह फेंकी
हाय उसकी नजाकत पर सर को झुकाता हूँ
एक प्यार स्कूली को..................

रातों को उठ उठ कर मैंने रोकर भी देखा हैं
तन्हाइयों में सिसकी का होकर भी देखा हैं
नहीं कुछ भी हुआ हासिल यारों पछताता हूँ
एक प्यार स्कूली को..................

कितना ही मेरे दाता मेरे हिस्से कयामत दे
याददाश्त को भी बेशक कोई भी आफत दे
पर पाठ महोब्बत का नही भूलना चाहता हूँ
एक प्यार स्कूली को..................

नही बात अकेले की मैं सबकी करता हूँ
इल्जाम महोब्बत का हर सर पे धरता हूँ
यहाँ बेचैन हैं हर कोई सरेआम बताता हूँ
एक प्यार स्कूली को..................


Saturday 15 October 2011

वो आता हैं याद चाहे बुढ़ापे में आये


रूह से चिपक जाता हैं उतरता नहीं हैं
इश्कियां भूत जीते जी मरता नहीं हैं
कितना ही पुराना हो जख्मे-महोब्बत
पूरी तरह से यह कभी भरता नहीं हैं
लफ्जों से झलक जाता हैं हाले-दिल
चेहरा आइना हैं कभी मुकरता नहीं हैं
वो आता हैं याद चाहे बुढ़ापे में आये
यादों का नश्तर रहम करता नहीं हैं
हर आँख में हैं मौत का खौफ बेचैन
किसने कहा की वो कभी डरता नही हैं

दाम्पत्य में सुखी जीवन का साधारण सा राज़...............................

खुद को शेर समझो...
........................और.................
......................बीवी को......................................................................................................................................................................................................................................................................................................................................................................................................................................................................................................................................
.........
शेरोंवाली .....हैप्पी करवा चौथ.....

तेरी आँख में तस्वीर अपनी क्या देखी



तन भीगने से तुमने बचा लिया बेशक
मन भिगों गई बरसात क्या करूं बता
रह रहकर ख्याल तुम्हारा ही आ रहा हैं
मेरे बस में नही ज़ज्बात क्या करूं बता
कह तो दिया तुम बिन अब जीना क्या
तुम समझते नही बात क्या करूं बता
तेरी आँख में तस्वीर अपनी क्या देखी
छुट गया आईने का साथ क्या करूं बता
तुम दे दो जवाब तो बन जाएँ लाजवाब
वरना हैं वही सवालात क्या करूं बता
इश्क लडाना आता तो बेचैन ना होता
यही पर खाता हूँ मात क्या करूं बता


Friday 14 October 2011

CHAND UGA HAIN ZMI PE YAA AASMAAN PE करवा चौथ पर आप सबके लिए वी एम बेचैन द्वारा लिखा गया एक पैरोडी गीत

एक दिल हम सीने में एक घर छोड़ते है





यूं तो पत्नी पर इल्जाम ना लगाओ यारो
उनसा कोई ओर है तो सामने लाओ यारो

एक दिल हम सीने में एक घर छोड़ते है
यदि में गलत हूँ तो गलत ठहराओ यारो
तुम्हरे बच्चे पाल दिए घर सम्भाल लिया
मेहरबानी ये मिटटी में ना मिलाओ यारो

अब भी गर भ्रम है तो तलाक देकर देखो
फिर रसोई के रस्ते मैदान में आओ यारो
ढूंढते हो जिस महबूब की आँखों में प्यार
उस प्यार पर चिल्लाकर तो दिखाओ यारो

पत्नी से बड़ी माँ तो कोई होती नही बेचैन
अपनी नही तो बच्चो की तो बनाओ यारो

हिज्र ना किसी के लिए तेज़ाब बने



इधर उधर बिखरे हैं यादों के पन्ने
मिलें तुम्हारा साथ तो किताब बने
काश महोब्बत में सारे दर्दे दिल का
परचून जैसा अपना भी हिसाब बने
सोहनी को लेकर फिक्रमंद हूँ इतना
डूब जाऊं गर अश्कों की चनाब बने
रूह तक जलाकर ख़ाक कर देता हैं
हिज्र ना किसी के लिए तेज़ाब बने
दौर कैसा भी आये इश्क में बेचैन
ना किसी की हालत इज़्तिराब बने 










शक्ल देखकर कोई भ्रम ना पाल



पहले जैसा अब जमाना नही हैं
मुकरने का कोई बहाना नहीं हैं
किसी भी बात से फिर सकते हो
जुबां सच्चाई का पैमाना नहीं हैं
दिल में सभी के होती हैं हलचल
इक शख्स बता जो दीवाना नहीं हैं
ओरों की तफ्तीश वो क्या करेगा
खुद को जिसने पहचाना नहीं हैं
जाम से नहीं तो आँखों से पी लो
दूर तुमसे कोई मयखाना नहीं हैं
शक्ल देखकर कोई भ्रम ना पाल
मिजाज मेरा आशिकाना नहीं हैं
बारहा आईने आगे वो जाएँ बेचैन
जिसका का भी चेहरा पुराना नहीं हैं

Wednesday 12 October 2011

जल्दी में तो बोतल भी नही खोलता




कहते हैं लोग पीकर ड्रामा करता हूँ
दो पैग लगाते ही हंगामा करता हूँ
यूं ही गिनते हैं मुझे पीने वालों में
मैं तो शराब से रामा रामा करता हूँ
ढलते ही साँझ दोस्त खौफ खाते हैं
इल्जाम है की कारनामा करता हूँ
जल्दी में तो बोतल भी नही खोलता
जो करना हैं खरामा खरमा करता हूँ
ये तो बे-इंतिहा पिलाने वाले जाने
क्यूं बेचैन नशे में मां मां करता हूँ

Monday 10 October 2011

गजल गायक जगजीत सिंह के निधन पर एक गजल दर्द का आभास छूट गया हमसे



मखमली अहसास छूट गया हमसे
शख्स कोई खास छूट गया हमसे
ग़ज़लें दुल्हन हैं तो दुल्हा था वो
मन का विश्वास छूट गया हमसे
जब भी सुनते थे मिलता था चैन
दर्द का आभास छूट गया हमसे
कौन मिलवायेगा दिल को दिल से
रिश्तों का "पास" छूट गया हमसे
कैसे गुजरेगी जिंदगी अब बेचैन
सच्चा इखलास छूट गया हमसे







Sunday 9 October 2011

सितमगर से यारी हैं इन दिनों



मन थोडा सा भारी हैं इन दिनों
सितमगर से यारी हैं इन दिनों
कहने को तो सब ठीक हैं मगर
हल्की सी बेकरारी हैं इन दिनों
हार जीत की बात करते हैं सभी
हरेक शख्स जुआरी हैं इन दिनों
अपना तो जिक्र उठता ही नही
चर्चाए ही तुम्हारी हैं इन दिनों
फरेब से कोई बचकर दिखाए
हर तरफ कलाकारी हैं इन दिनों
काम पड़ने पर गधा बाप बना लो
यही तो दुनियादारी हैं इन दिनों
चैन नही बेचैन उसके बिना अब
अपनी यही लाचारी हैं इन दिनों

यहाँ क्या मैं ही बेचैन हूँ



शर्मिंदा हूँ किसी बात से
नही सोया हूँ कई रात से
हुआ जाने कैसे हादसा
अनचाही सी मुलाक़ात से
वो जवाब ऐसा ही दे गये
डरता हूँ अब सवालात से
रह जाता हूँ बस कांप कर
हाय इश्क के ख्यालात से
तुझे जीते जी मरवा देगा
नही यारी रख ज़ज्बात से

वो किसकी जुल्फें संवारेगा
जो उलझ रहा हो हालात से
यहाँ क्या मैं ही  बेचैन हूँ
कोई पूछ दे कायनात से

अनछुए ज़ज्बात है अभी



साधारण सी बात है अभी
कच्ची मुलाकात है अभी
दिल का हाल कैसे कह दूं
अनछुए ज़ज्बात है अभी
कैसे आयें इक छतरी नीचे
हल्की सी बरसात है अभी
वो होंगे धुरंधर इश्क में
मेरी तो शुरुआत है अभी
पकड़ हाथ सीने पर रखूं
मेरी कहाँ औकात है अभी
जवाब मिलते ही बताऊंगा
जिंदगी सवालात है अभी 
दिन ही तो गुज़रा है बेचैन
पहाड़ सी बाकि रात है अभी

दिल के इलावा चैन भी खोकर तो देखिये



शर्मिंदगी को माफ़ी से धोकर तो देखिये
मिलेगा शकुं तन्हाई में रोकर तो देखिये
पाने का छोड़कर लालच कभी मेरे हूजुर
दिल के इलावा चैन भी खोकर तो देखिये
मिल जायेंगे सवालों के सारे जवाब भी
अहसास के जंगल से भी होकर तो देखिये
हंसने का जब मन करे बिन बात आपका
तस्वीर मेरी में कोई भी जोकर तो देखिये
मेरी तरह से आप भी दिल ही दिल में
सपना कोई भी पहले संजोकर तो देखिये
हर वक्त जागे जागे ना रहा करो बेचैन जी
ख्वाबों में आऊंगा कभी सोकर तो देखिये



Saturday 8 October 2011

उम्र को भी पछाड़ के रख दिया



हर अदा में छिपे हैं सौ-सौ राज
क्या लगाऊं अदाओं का अंदाज़
एक दफा जो भी मिल लें तुझसे
हो जाये है उसका दिल दगाबाज़
असर है तेरी खिलखिलाहट का
नींद में सुनता हूँ हंसी की आवाज़ 
उम्र को भी पछाड़ के रख दिया
बता तो दीजियेगा क्या है राज़
जिसे देखो वो ही बेचैन हुआ है
मान गये तुझको वाह मुमताज़

Wednesday 5 October 2011

गुलों की खुशबू जिस्म में पुरजोर लाये हो



इतनी  सादगी कहाँ से बटोर लायें हो
लगता है खुदा के यहाँ से चोर लाये हो
शर्मों-हया से पलकें झुका कर चलना
हंसने की अदा काबिले गौर लाये हो
क्यूंकर ना परेशां हो देखकर वो चाँद
जुल्फों के साए में चेहरा चकोर लाये हो
देखकर महफ़िल में हर कोई कह रहा है
जुल्फें नही ज़ालिम रेशम की डोर लाये हो
सुनते ही लगे झूमने लोग होकर दीवाने
सावन के महीने का पायल में शोर लाये हो
हर कोई तुम्हारी और खिंचा जा रहा है
गुलों की खुशबू जिस्म में पुरजोर लाये हो
क्यूंकर ना बढ़े धडकने देखकर बेचैन
तवज्जो आज अपना मेरी ओर लाये हो

Monday 3 October 2011

मन्दिरों में जाकर कभी माथा नही रगड़ता



मैं बहुत कम लोगों से मुलाक़ात करता हूँ
जिनसे याराना हो उन्ही से बात करता हूँ
कहने को तो आती है मुझे जादूगरी मगर
ना दोस्तों के साथ कोई करामात करता हूँ
बस सीख ही नही पाया टालने की आदत
सब फैंसले मैं दोस्तों हाथों हाथ करता हूँ
मन्दिरों में जाकर कभी माथा नही रगड़ता
अपनी तदबीर से ही मैं सवालात करता हूँ
नही ला पाया उस्तादों सा पैनापन हुनर में
तुकबंदियों के सहारे पेश ज़ज्बात करता हूँ
शायद इसी लिए लोग मुझे जानने  लगे है
आये रोज़ कोई ना कोई खुरापात करता हूँ
खुदा जाने हो जाते है क्यूं कमजोर बेचैन
मैं तो बारहा मजबूत अपने हालात करता हूँ


शाही अंदाज़ हूँ मैं नवाबों में मिलूँगा



मरने के बाद मैं ख्वाबों में मिलूँगा
ढूँढना गजलों की किताबों में मिलूँगा
कर सको तो करना महसूस मुझको
खुशबू बनकर मैं गुलाबों में मिलूँगा
यूं भीड़ में बेकार तलाश ना कीजिये
शाही अंदाज़  हूँ मैं नवाबों में मिलूँगा
जो असल की भेंट चढ़ा था वो सूद हूँ
मैं साहूकार के हिसाबों में मिलूँगा 
अधुरा हूँ मुकम्मल होकर भी बेचैन
मैं सवालात बनके जवाबों में मिलूँगा

Sunday 2 October 2011

सच कहूं मैं बहुत बड़े दिलदार से मिला




जो ऑनलाइन पनपा उस प्यार से मिला
आज फेसबुक के अपने इक यार से मिला
मिलते ही बिछा दी धडकने स्वागत में
सच कहूं मैं बहुत बड़े दिलदार से मिला
बहुत दूर थी बनावटीपन से बातें उसकी
मैं साफ़ सुथरे सच्चे व्यवहार से मिला
यही कहूँगा इस मुलाकात को लेकर के
एक कलमकार एक कलाकार से मिला
 लोहा है जिसकी अदाकारी का जहाँ में
बेचैन आज उस लाठर सरकार से मिला