पल पल जीते जी मारा है खुद को
तब जाके मैदान में उतारा है खुद को
डूबोने वालों ने तो कोई कमी न छोड़ी
बड़ी ही मुश्किल से उभारा है खुद को
छोडके कुछेक लोग सब कमजर्फ थे
जाने कहाँ-कहाँ से गुज़ारा है खुद को
अच्छे बुरे की समझ कोई नही देगा
अपना तो यह इशारा है खुद को
छट गए बेचैन मुश्किलात के बादल
ख़ामोशी से जब पुकारा है खुद को