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Monday 9 January 2012

भूत बनकर डराती है यादें तुम्हारी

भूत बनकर डराती है यादें तुम्हारी
अंदर ही अंदर खाती है यादें तुम्हारी

जैसे तुम गई पैर पटक कर उस रोज
ऐसे क्यूं नही जाती है यादें तुम्हारी

सर्दी-गर्मी या बरसात का मौसम हो
कभी नही मुरझाती है यादें तुम्हारी

कई दफा तुम्हारी कसम रो पड़ता हूँ
जब सिसकियाँ सुनाती है यादें तुम्हारी

चेहरे से साफ झलक जाता है बेचैन हूँ
जब बिजलियाँ गिराती है यादें तुम्हारी

तेरी आँखें पढना छोड़ रहा हूँ

लो मैं तुमसे लड़ना छोड़ रहा हूँ
तेरी आँखें पढना छोड़ रहा हूँ

आज से खुशियाँ मनाओ जानेमन
अपनी जिद पर अड़ना छोड़ रहा हूँ

चुम्बन तंगदस्ती ना होगा माथे पर
मैं अब आगे बढना छोड़ रहा हूँ

कह दिया है मन ने तन्हाइयों को
दिन और रात झड़ना छोड़ रहा हूँ

जान गया प्यार पाप नही है बेचैन
अब मैं शर्म से गढना छोड़ रहा हूँ