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Thursday 2 July 2015

कुचलकर रिश्तों को लगे है दौलत कमान में

किसी का बुरा नही करता कभी खुदा जमाने में
वो तो लगा है आदमी ही आदमी को मिटाने में

ये कैसी भूख सवार हो गई है हमारे जहन पर
कुचलकर रिश्तों को लगे है दौलत कमान में

उसी दिन से हो गया था बनवास संबधो को
बेटा बैठने लगा था बाप के जबसे सिरहाने में

जबकि मौत सबको आनी है हो राजा या रंक
फिर क्यूँ लगे है एक दूजे को नीचा दिखाने में

गुज़रती उमर पर सोचो कभी बैठ तन्हाई में
रहेंगे याद किस किसको हम किस बहाने में

कोई अपना है तो इशारो में ही समझ जायेगा
ऊर्जा मत गँवाओ फालतू चीखने चिल्लाने में

जिन्दा है तो जिन्दा है मरे तो मर ही जायेंगे
बात छोटी बेचैन बड़ी है समझने समझाने में






कदर वक्त पर न तो हुनर अपाहिज हो जाता है

ये सच है देर सवेर मेहनत रंग लाती है लेकिन
कदर वक्त पर न तो हुनर अपाहिज हो जाता है

बड़ी बड़ी बातें ही होती है बड़े काम नही होते है
टकरा कर हकीकत से जरूरतमंद चिल्लाता है

अफ़सोस से कही ज्यादा उनपे हैरत हो रही है
समाज सेवा से जिनका आज सीधा नाता है

सियासत-ओ-कलाकारी ही फ़क्त ऐसे फिल्ड है
उम्र के साथ साथ ही जिसमे निखार आता है

आज दौलत के बूते पर सब कुछ तो हो रहा है
हो खुदा का या सरकारी निज़ाम आंसू बहाता है

मनोरंजन की आड़ में संस्कृति से रेप हो रहा है
आज का गीत संगीत युवाओ को बरगलाता है

ना मोदी खरा उतरा न फेयर लवली खरी उतरी
बेचैन कई जुमलों पर आवाम ठहाके लगाता है