Friends

Sunday 4 September 2011

यही सीखा उसने बरबाद होकर



बहुत पछताया हो वो सैयाद होकर
जब नही उडा पंछी आज़ाद होकर
जमाना साज़ियो से बावस्ता निकला
हुश्यारी दिखाई उसने उस्ताद होकर
भरोसा भी भरोसे के जितना करो
यही सीखा उसने बरबाद होकर
हंसी से कुछ तो मयस्सर हो शायद
कुछ नही पाओगे नाशाद होकर
मौत के रूबरू हुआ तो कांपने लगा
जो मकतल में रहा था जल्लाद होकर
बेचैन होकर बस मुझे देखने लगा
ना ले सका वो नाम मेरा याद होकर

चुपके-चुपके आहें निकालना सीखा दिया



दर्दे-दिल को हर्फों में ढालना सीखा दिया
शुक्रिया मुर्शिद गम पालना सीखा दिया
टूट जाता वरना, मैं तो दो कदम चलकर
बोझ जिंदगी का संभालना सीखा दिया
किस जुबान से कहूं क्या क्या सीखा दिया
चुटकियो में बुरा वक्त टालना सीखा दिया
परख अपने-बेगानों की बताने के साथ
मुदा सरे बज्म उछालना सीखा दिया
लबों को भी खबर ना हो, कब निकली
चुपके-चुपके आहें निकालना सीखा दिया
फंस जाये गर कभी तन्हाई के हाथों
खामोशी को हथियार डालना सीखा दिया
गजल की बारीकिय समझने के लिए
ज़ज्बात को बेचैन उबलना सीखा दिया 
 

मस्ती इनकी नौकरानी


देखो -देखो तीन तिलंगे
मन कर्म से एकदम चंगे
दुःख चिंता,सोच फ़िक्र के
ये नही लेते बिलकुल पंगे
सत प्रतिशत पवित्र है ये
बोल उठी ये माता गंगे
मस्ती इनकी नौकरानी
ये मनमर्जी के है  पतंगे
चैन की पुडिया है ये बेचैन
बेशक हो शहर में दंगे