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Sunday 11 December 2011

अहसास के पलों की हिफाजत करेंगे हम

जिंदगी भर आपकी इबादत करेंगे हम
अहसास के पलों की हिफाजत करेंगे हम

हरगिज़ ना आंसू आने देंगे आपको कभी
आयेंगे तो पीने की आदत करेंगे हम

होगा वजूद दुनिया में बेशक खुदाओं का
तुम मिल गये हो सबकी खिलाफत करेंगे हम

जीते जी आम होगा ना रिश्ता रूहानियत
लोगों से जिक्र करके क्यूं आफत करेंगे हम

कभी आजमाके देखना अपने बेचैन को
चाहोगे जितना उतनी महोब्बत करेंगे हम




नही समझ पाया हूँ कमबख्त को मैं

वो बारहा जिक्र जमाने का उठाते है
क्या हमको लोग समझ नही आते है

खुदा जाने  वो कैसा दिमाग रखते है
जहाँ से शुरू होते है वही आ जाते है

कहते है वो मेरी खुशियों में खुश है
मगर मिलते ही मौक़ा खूब सताते है

करते है जब वो घुमा फिराकर बात
अपने तो दोस्तों तोते उड़ जाते है

नही समझ पाया हूँ कमबख्त को मैं
अक्सर बेचैन करके प्यार जताते है

इश्क दरिया-ए-अंगार है सम्भल कर मेरी जान

ये अहसास का व्यपार है सम्भल कर मेरी जान
इश्क दरिया-ए-अंगार है सम्भल कर मेरी जान

हम मर्दों का क्या है हम तो होते है अफलातून
औरतों पर शक हजार है सम्भल कर मेरी जान

अच्छा ही होगा अपनी-अपनी हदें बाँट ले हम
दोनों के पीछे परिवार है सम्भल कर मेरी जान

तुम बेशक कर लो दिल की सौदेबाजी मुझसे
अगर खुद पर एतबार है, सम्भल कर मेरी जान

नही होता जिनके दिल पर दिमाग की पहरेदारी
बेचैन वो लोग शर्मसार है सम्भलकर मेरी जान