Friends

Friday 30 November 2012

मेरे ज़ज्बात को तुमने सहलाया क्यूं था

दूर ही जाना था तो पास में आया क्यूं था
मेरे ज़ज्बात को तुमने सहलाया क्यूं था

मैं बेहद खुश था छोटी सी अपनी दुनिया में
तुमने दुनिया से मुझे बाहर बुलाया क्यूं था

मारना ही था तमाचा तो मुह पे मार देता
तुमने अहसास को हथियार बनाया क्यूं था

दर्द के रिश्ते से बढ़कर नही है रिश्ता कोई
बांधकर हाथ में घड़ी तुमने बताया क्यूं था

रोने देता मुझे मुलाकात पर समझकर पागल
पौछ्कर आंसू मेरे चुप ही कराया क्यूं था

झूठ था सब कुछ तो फिर वो मुलाकात क्या थी 
पहरों मुझको गोद में तुमने सुलाया क्यूं था

सच यही है मैं चैन मरकर भी नही पाऊंगा
मेरे अल्लाह मुझे दुनिया ही लाया क्यूं था

Thursday 29 November 2012

कांप उठता हूँ तेरा जब भी नाम लेता हूँ

कांप उठता हूँ तेरा जब भी नाम लेता हूँ
मुहं को आते हुवे कलेजे को थाम लेता हूँ

हाँ इस तरह मैंने नशीली हयात कर डाली
कभी अश्को के तो कभी मय के जाम लेता हूँ

तू मेरे खुदा इश्क का था और रहेगा सदा
इसलिए नाम तेरा सुबह-ओ-शाम लेता हूँ

मन की हालत चेहरे पर उभर ही जाती है
कहने को तो मैं समझदारी से काम लेता हूँ

अपने बेचैन के खातिर तू लौटकर आजा
लो मैं अपने सर सारे ही इल्जाम लेता हूँ

Wednesday 28 November 2012

देता है कौन साथ उमर भर किसी का

देता है कौन साथ उमर भर किसी का
बोझ खुद ही उठाना पड़ेगा जिंदगी का

अहसास रिश्ते नाते कदम भर ही चलेंगे
हाँ सदियों से तजुर्बा रहा है आदमी का

ज़ज्बात की बारिश है वादे और कुछ नही
यारो ये  दौर होता है फ़क्त संजीदगी का

समझ जाना असर रूह पर भी हो गया है
आँखों में नमी भर दे जो लम्हा ख़ुशी का

मिलेगा हर हाल में अगर किस्मत में है वो
बस बेचैन यही है इलाज़ बेकसी का



सब कुछ तुम्हारा है कही भी करिये बसेरा

ये दिल है ये दिमाग है ये जहन है मेरा
सब कुछ तुम्हारा है कही भी करिये बसेरा

कब्जा था इस रूह पर मुद्दत से किसी का
छुडवाया है मुश्किल से कर जादू का घेरा

आँखों में रहो सांसो में या धडकनों में तुम
लहू बन रगों में दौड़ने का हक़ है तेरा

ना जाने कितनी रातों से मैं मुन्तजिर था
मेरे दाता शुक्रिया किया जो तुमने सवेरा

वैसे भी जाने वालों को किसने रोका है
बेचैन आना जाना कुदरत का है फेरा

Tuesday 27 November 2012

अल्लाह उसे जहाँ भर का सकून देना

अल्लाह उसे जहाँ भर का सकून देना
कभी जरूरत पड़े तो मेरा खून देना

देना उलझनों को मेरे घर का पता
उसे कभी ना कोई उधेड़बून देना

जिंदगी भर उसी के हक में फैंसला हो
अ कुदरत उसे ऐसा कानून देना

उसको खूब चाहने वाले मिले मगर
कभी मुझसा ना कोई अफलातून देना

जिसको पढकर रूह झूम उठे बेचैन
उसको खतों में ऐसा मज़मून देना

Monday 26 November 2012

तुझसे तो कही बेहतर अंगूर की बेटी निकली

तुझसे तो कही बेहतर अंगूर की बेटी निकली
ढलते ही शाम देखकर मुझको मुस्कुरा देती है

जितना भी अहसान मानू कम है तन्हाइयों का
खूब रोने के बाद अश्को को सूखा देती है

दोस्तों बचपन से नफरत थी मुझको मयकशी से
उसकी याद मगर नफरतों को भूला देती है

आज मेरी तरफ है तो कल उसकी ओर होगा
यादें नम्बर से रोने का सिलसिला देती है

मैंने देखी है सच्ची महोब्बत में वो ताकत
तडफ तो वजूद की जडो तक को हिला देती है

इतनी पी ले बेचैन की हद की हद हो जाए
सुना है बेहोशी में मौत अपना बना लेती है



Sunday 25 November 2012

शायद ज्यादा पी ली है आज शराब दोस्तों

शायद ज्यादा पी ली है आज शराब दोस्तों
कमबख्त हो रही हालत कुछ खराब दोस्तों

क्यूं टिक नही रहे है साले पैर जमीन पर
मुझको जाना है करने कुछ हिसाब दोस्तों

सांसो की तरह जुबा भी लडखडा उठी है
सुबह दूंगा सब सवालों का जवाब दोस्तों

उसकी खूबियों का जिक्र अब क्या करू भला
उसका पसीना था खुशबू-ए-गुलाब दोस्तों

रहने लगेगी हर घड़ी आँखे सुर्ख तुम्हारी
मत देखना कभी महोब्बत में ख्वाब दोस्तों

दम कल निकलता बेचैन अब ही निकल जाये
नही चाहिए लम्बी उम्र का खिताब दोस्तों 

उस पर लिखे एक एक शेर हमे रुलाते है

दिल में यादों के नश्तर कुछ यूं सुई चुभाते है
उस पर लिखे एक एक शेर हमे रुलाते है

अश्क नही आँखों से अब लहू टपकने लगा है
क्या होगा हम बिगडती हालत से घबराते है

रकीब को भी ना मिले ऐसी तडफ-ओ-बेबसी
हम सजदे में दिन रात यही दुआ फरमाते है

मुझको तो इल्म नही है अपनी हालत का मगर
मुश्किल बचेगा देखने वाले ही बताते है

इश्क है तो बुरे ख्याल भी आयेंगे बेचैन
मानता नही जबकि मन को खूब समझाते है

Saturday 24 November 2012

या तो शराब में तैरकर तेरा गम निकलेगा


या तो शराब में तैरकर तेरा गम निकलेगा
वरना तब तक पीऊंगा ना जब तक दम निकलेगा

मेरे बाद, जमाने के साथ तुम भी देखोगे
फिर कभी ना तेरी जुल्फों-सोच का खम निकलेगा

इसलिए बैठ गया हूँ साँझ ढलते ही पीने
आखरी जाम के साथ में रंजो-अलम निकलेगा

आज काबू से बाहर हो चला है दर्दे बेबसी
शायद इस दिल के धडकने का भ्रम निकलेगा

बेचैन रूह को चाँद सी ठंडक बख्शने वाले
नही सोचा था तेरा लहजा यूं गरम निकलेगा

खम= उलझन

बहर-ओ-वजन में ख्याल कम तोलता हूँ

आज मेरे एक शायर दोस्त के चेले से तीखी गुफ्तगू हुई तो लिखने पर मजबूर हुआ ..........

बहर-ओ-वजन में ख्याल कम तोलता हूँ
मैं तो सीधे सीधे मन की बात बोलता हूँ

रखकर गुरेज हर्फों की जादूगरी से
सादगी का शेरो में रंग घोलता हूँ

कुछ भी तो नही रखता दिल में छिपाकर
ज़ज्बात की गाँठ सरेआम खोलता हूँ

उस्तादों सी संजीदगी नही है मुझमे
मैं शागिर्दों की तरह मस्त डोलता हूँ

छेड़ता हूँ बेचैन फक्त दिलजलो को
खुशहालों का कलेजा कम छोलता हूँ


Thursday 22 November 2012

तू कितना घटिया था ख्याल दिल से मरने नही दूंगा

तेरी  बेवफाई के जख्मो को कभी भरने नही दूंगा
तू कितना घटिया था ख्याल दिल से मरने नही दूंगा

थूकता रहूँगा सुबह और शाम तेरी तस्वीर पर
तेरी इबादत अब धडकनों को करने नही दूंगा

ले लेकर तेरा नाम बहुत रो चुका बिलख-बिलखकर
आइन्दा आंसुओ को दिन रात झरने नही दूंगा

निकाह मौत से करना पड़ा तो कर लूँगा चुपचाप
अब दर्द-ए-जुदाई को जियादा निखरने नही दूंगा

बेचैन तेरे साथ गुज़ारे हुवे लम्हों की कसम
तुम्हारी यादों को कदम ज़हन में धरने नही दूंगा

Wednesday 21 November 2012

वो घटियापन की सब हदों को पार किये बैठा था

मेरा दिल जिस शख्स का इंतजार किये बैठा था
वो घटियापन की सब हदों को पार किये बैठा था

समझता था मैं जिसको जमाने में सबसे जुदा
बदलकर नाम अपने दर्जनों यार किये बैठा था

बेवकूफी में बहाए जिस बदजात के लिए अश्क
ना जाने मुझसे कितनो को बीमार किये बैठा था

मन झूमता रहता था जिस अहसास के आंगन में
उस दर्द के रिश्ते को वो शर्मसार किये बैठा था

शुक्र है मिल गई रिहाई वक्त के रहते हुवे बेचैन
वरना झूठ से रूह को गिरफ्तार किये बैठा था

Tuesday 20 November 2012

उधर देश के इधर दिल के हालात बिगड़े है

उधर देश के इधर दिल के हालात बिगड़े है
खुदा जाने क्या होगा दिन और रात बिगड़े है

देश को नेताओ ने दिल को सितमगर ने लूटा
फ़िक्र किसकी करू बुरी तरह ज़ज्बात बिगड़े है

चुटकला बनके रह गई है लगभग जिंदगी सबकी
आखिर किसलिए ज़िंदादिली के ख्यालात बिगड़े है

जवाब देने वाला क्या ऐसी तैसी करवाएगा
जब पूछने वाले के ही सवालात बिगड़े है

वक्त कैसे अच्छा आएगा उस शख्स का बेचैन
चोट खाकर जिसके मौजूदा लम्हात बिगड़े है

Saturday 17 November 2012

पहली बार मन से बददुआ है तुम्हारे लिए बेचैन

तडफ में डूबे तेरे तोहफे पास रखता किसलिए
दे आया मौलवी को ताबीज-ए-ख़ास के बदले

यकीनन वो तन्हाई में एक रोज सुबकियां भरेंगे
जो ज़हर पिलाते है किसी को विश्वास के बदले

चलो छोडो अब ख़ाक डालों किसके साथ क्या हुआ
मैं ही जानता हूँ क्या मिला मुझे अहसास के बदले

यही मेहरबानी मांगी है दो जहाँ के मालिक से
मुझको दुश्मन दे देना ऐसे गम शनास के बदले

पहली बार मन से बददुआ है तुम्हारे लिए बेचैन
तुझको भी आंसू मिले सबसे इखलास के बदले

Friday 16 November 2012

आशिक और नेता में कोई फर्क नही

आदमी पर जब वक्त बुरा आता है
ऊंट पर बैठे को कुता काट खाता है

आशिक और नेता में कोई फर्क नही
दोनों का दिल हारकर पछताता है

दौलत से बढ़कर एक और नशा है
शोहरत का जिसे भूत कहा जाता है

अक्ल तो धक्के खाने से आएगी
बादाम दिमाग थोड़े ही चलाता है

जिसकी रगों में है बेचैन गंदा खून
माल हराम का उसी को भाता है

सजधज कर मेरी जान जब पटाखा बन जाती है

सजधज कर मेरी जान जब पटाखा बन जाती है
अनार सी चलती है फुलझड़ी सी खिलखिलाती है

मैं फुस्स की आवाज के साथ खामोश हो जाता हूँ
मुझे बम की तरह गुस्से में जब वो धमकाती है

...
नाराजगी की सौ बात पर हकीकत तो यही है
मैं दीया हूँ उसका तो वो मेरी बाती है

मन में अँधेरा ना रहने का यही सबब है यारो
वो चिराग बन दिल की मुंडेरो पर झिलमिलाती है

मेरे हिस्से की खुशियाँ भी उसे ही मिले बेचैन
काश दिवाली पर दुआ अगर कबूल हो जाती है
See More

हो सके तो मुझे अब बिखरने मत दे

मैं टूटने की हद तक टूट चुका हूँ
हो सके तो मुझे अब बिखरने मत दे

एक ही बार बनता है दर्द का रिश्ता
इस रिश्ते को बेमौत मरने मत दे

दूरिया बढाती है गलतफहमियाँ
गलतफहमी को ज्यादा निखरने मत दे

सूख जायेगा आंसुओ का समन्दर
इन आँखों को इतना झरने मत दे

पहले ही है खौफजदा जिंदगानी
और मुझको अब बेचैन डरने मत दे

Sunday 11 November 2012

मार डालेगा मुझको शोर बम और पटाखों का

दिवाली बिन तेरे कैसे मनाऊंगा बता तो दे
क्या रोने से खुद को रोक पाऊंगा बता तो दे

मार डालेगा मुझको शोर बम और पटाखों का
मैं ऐसे में कहाँ खुद को छिपाऊंगा बता तो दे

...
नोचे है कलेजे को तेरा गम लम्हा दर लम्हा
मिठाइयां क्या सोचकर मैं खाऊंगा बता तो दे

दिखाना था यही दिन तो क्यूं नजदीक आया था
सचमुच कसूर अपना समझ जाऊंगा बता तो दे

तुझे नही भूल पाया हूँ मुझे अ भूलने वाले
क्या उम्र भर ना मैं याद आऊंगा बता तो दे

चैन बेचैन ने माँगा था कोई दौलत नही मांगी
क्या ढंग से मैं कभी मुस्कुराऊंगा बता तो दे

लो जिंदगी मैं तो चला आज मिलने कज़ा से

अपना रस्ता अपनी मंजिल मुबारक हो तुझे
लो जिंदगी मैं तो चला आज मिलने कज़ा से

और ज्यादा सहन करना मेरे बस का नही
तंग आ गया हूँ तुम्हारी नखरीली अदा से

मिली इबादत के बदले में नरक की सजा
क्या कसूर था पूछूँगा मैं जाकर खुदा से 

उसकी बेरुखी तो बाद में असर करती
दामन जला बैठा मैं अपनी ही वफा से 

धरा रह गया जिंदादिली का ज़ज्बा बेचैन
लो हार गया मैं साँसे जिंदगी की जुआ से

Wednesday 7 November 2012

आह कलेजे से निकली हाय हाय हाय

नहा धोकर जब उसने बाल बिखराए
आह कलेजे से निकली हाय हाय हाय

सांसो में बर्फ सी जम गई आँखों के रस्ते
मुझे देखकर उसने  जब होठ दबाए

जिस्म के पुर्जे पुर्जे में हथियार छिपे थे
उफ़ कत्ल खुद का क्यूं नही करवा पाए

नजर उतनी ही गहरी धंसती गई मन में
मेरी ओर देखकर वो जितना मुस्कुराए

यकीन हो ही गया आज सचमुच बेचैन
दिल झूठ से लगाकर हम बहुत पछताए





Friday 2 November 2012

मुझे माँ के बाद उसी बीवी ने सम्भाला है

मेरे घर में मेरे जहन में जिससे उजाला है
मुझे माँ के बाद उसी बीवी ने सम्भाला है

शुक्र है बच्चों की माँ रूह में उतर गई वरना
साला हरेक रिश्तेदार मेरा देखा भाला है

इसलिए नही रखता मैं इश्कबाजी में यकीन
दिलो दिमाग पर लगा मोहतरमा का ताला है

सिवाय कमाने के मैं और करता भी क्या हूँ
सब बीवी ने जिम्मेवारी का बोझ सम्भाला है 

कहो उससे बढ़कर मेरा कौन होगा गमख्वार
जिसके दिलो दिमाग में मेरी फ़िक्र का छाला है

वक्त के रहते पा लो अपने पाप से छुटकारा
दोस्तों मन तुम्हारा अगर कही से भी काला है

कैसे जीते जी भूलूँ  उसका अहसान बेचैन
मिटाकर खुद को जिसने मेरे रंग में ढाला है