जब भी रसोई की तरफ मैंने निहारा है
महंगाई ने हाँ जोर का चांटा मारा है
तनख्वा को कभी जरुरतो को देखता हूँ
नही समझ पाता जिंदगी का क्या इशारा है
कई बार सोचा गुस्सा बीवी का है जायज़
हाँ ख्वाबो के जिसके सूली पर उतारा है
दर्द बेकारी का पहले ही कुछ कम ना था
मुझे ऊपर से महोब्बत ने चाबुक मारा है
ये सारी ऐसी तैसी नेताओ की हुई है
खौफ आम आदमी का जिसने निखारा है
शायद मिठास ज्यादा है तेरे अहसास का
मेरे अश्को का स्वाद इसलिए खारा है
बेचैन रिश्तेदारो की फ़िक्र नही करता
महबूब उसका उसके लिए ध्रुव तारा है
महंगाई ने हाँ जोर का चांटा मारा है
तनख्वा को कभी जरुरतो को देखता हूँ
नही समझ पाता जिंदगी का क्या इशारा है
कई बार सोचा गुस्सा बीवी का है जायज़
हाँ ख्वाबो के जिसके सूली पर उतारा है
दर्द बेकारी का पहले ही कुछ कम ना था
मुझे ऊपर से महोब्बत ने चाबुक मारा है
ये सारी ऐसी तैसी नेताओ की हुई है
खौफ आम आदमी का जिसने निखारा है
शायद मिठास ज्यादा है तेरे अहसास का
मेरे अश्को का स्वाद इसलिए खारा है
बेचैन रिश्तेदारो की फ़िक्र नही करता
महबूब उसका उसके लिए ध्रुव तारा है