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Sunday 27 April 2014

शर्म और लिहाज़ से जितना भरा होगा
व्यवहार में वो सख्स उतना खरा होगा

इक दफा रोज निहारता है वो पैर खुद के
इन पर जरूर किसी ने सर धरा होगा

अहसास में जुदाई मायने नही रखती
देख लो जिक्र छेड़कर जख्म हरा होगा

तस्वीरें यार देगी उसी की आँख को ठंडक
आंसू बनकर जिसका भी दर्द झरा होगा

दोगलेपन से वही पेश आएगा बेचैन
जिस भी इंसान का जमीर मरा होगा
यारब उसी की सोच थर्ड क्लास निकली वरना
हमने उसे कभी कलेक्टर से कम नही समझा

समझकर छोड़ा फिर उसको बेईमान सोच ने
हमदम को कभी जिसने हमदम नही समझा

क्या ख़ाक सुलझाएगा वो जमाने के मसलो को
जिस सख्स ने कभी हालात का खम नही समझा

रिश्तो के मुआमले में वक्त ने ठग लिया उसको
जिसने दूसरो की वफ़ा में कभी दम नही समझा

माँ बाप तक खो चुका हूँ खोने के मामले में बेचैन
इसलिए महबूब के गम को कभी गम नही समझा