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Saturday 1 December 2012

ऐसी क्या चीज़ थी जो उसको नही दे पाया

मेरे हर हाल पर रखता है वो नजर यारो
करता हूँ क्या मैं उसे होती है खबर यारों

वो जानबूझ कर फिर इतना सताता क्यूं है
क्या वो चाहता है रोता रहू उमर भर यारो

ऐसी क्या चीज़ थी जो उसको नही दे पाया
जब दे चुका वजूद तक का करके कलम सर यारो

हां कूच दुनिया से कब का कर जाता मैं लेकिन
वो तन्हा रह जायेगा रोके है यही डर यारो

मैं होकर बेचैन सोचता हूँ उसने आखिर
छिपा के फूलों में मारे है क्यूं पत्थर यारों



ये दिन ही दिखाना था तो ना आता हयात में

हाय क्यूं सेंध लगाई तुमने मेरे ज़ज्बात में
ये दिन ही दिखाना था तो ना आता हयात में 

मैं ढूंढता रहता हूँ शक्ल खुद की रात-ओ-दिन
चेहरे पर उगती ढाढ़ी के इस जंगलात में

फिर बैठकर अफ़सोस ही जताना तुम उमर भर
दम निकलेगा मेरा किसी दिन बातों ही बात में

कोई ढंग से जानता हो तो बतला दो दोस्तों
इबादत का समर दोजख है क्यूं कायनात में

मैं कब का भूला देता उस शख्स को बेचैन
रिहायश नही करता वो अगर ख्यालात में