मत पूछो इश्क में क्या क्या दिक्कत उठानी पडती है
एक ही बात कमबख्त को रोज समझानी पडती है
तब जाकर आता है उसको बड़ी मुश्किल से यकीन
छोटी छोटी बातों पर हमें कसम खानी पडती है
नाज़ जरूरत से ज्यादा रोज उठा कर उसके
जान छिडकने की हमको यूं रस्म निभानी पडती है
इसलिए बदलता है मौसम जैसे मिजाज उसका
नाराज होने की उसकी आदत पुरानी पडती है
फीका पड़ जाता है चाँद बदली का भी बेचैन
रुखसार पर जब उसकी चुनर धानी पडती है
एक ही बात कमबख्त को रोज समझानी पडती है
तब जाकर आता है उसको बड़ी मुश्किल से यकीन
छोटी छोटी बातों पर हमें कसम खानी पडती है
नाज़ जरूरत से ज्यादा रोज उठा कर उसके
जान छिडकने की हमको यूं रस्म निभानी पडती है
इसलिए बदलता है मौसम जैसे मिजाज उसका
नाराज होने की उसकी आदत पुरानी पडती है
फीका पड़ जाता है चाँद बदली का भी बेचैन
रुखसार पर जब उसकी चुनर धानी पडती है