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Saturday 8 September 2012

ये हीरा चाटकर मर जाऊ रब की कसम

ज़हर से बुझे हुवे तुम्हारे लब की कसम
ये हीरा चाटकर मर जाऊ रब की कसम

हुश्न-ए- बला आगे फीके पड़ गये शेर
हां मुझे मेरी शायरी के ढब की कसम

कुदरत की पहली नेमत है तेरा हुश्न
ये पेड़ पर्वत नदिया इन सब की कसम

तुझ पर कर सकता हूँ उम्र भर शायरी
उर्दू के उस्तादों की अदब की कसम

तू जिसे देखे हंसकर बेचैन हो जाये
बेहद खूब है जो उसी गजब की कसम

अल्लाह मेरी जानम को गुलफाम कर दो

मैंने कब कहा चाहत अपनी आम कर दो
ये रूतबा-ओ-आबरू मेरे नाम कर दो

तुम्हारी सोच ही तुम्हारी दुश्मन बनी है
बस ढंग से तुम इसका एहतराम कर दो

मैं दिल में नही तो दिमाग में तो रहूँगा
बस अपनी नफरत का मुझको गुलाम कर दो

तेरे घर आगे से हो रही गुजर आखरी
तुम अब तो मुझे आखरी इक सलाम कर दो

मेरे दामन में भर दो चाहे तमाम खार
अल्लाह मेरी जानम को गुलफाम कर दो

मिल जाये उसे शायद शकून-ए-दौलत
बेचैन मुझे वक्त के हाथो नीलाम कर दो