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Friday 22 February 2013

सब कुछ है मगर तेरी कमी रहती है


अब हर वक्त आँखों में नमी रहती है
सब कुछ है मगर तेरी कमी रहती है

मैं कितनी ही गरम आहे भर लूं मगर
फिर भी सांसे जमी की जमी रहती है

गुम अंधेरो में इसलिए न हो पाया
जहन में यादों की रौशनी रहती है

दफन करके चले सब तो मुर्दे ने कहा
अपनेपन की बू जीते जी रहती है

वक्त रहते सुलझा लो वरना ता-उम्र
गलतफहमी तो गलतफहमी रहती है

हंसकर भी रोकर भी हामी भरता हूँ
हाँ दर्द में इन दिनों जिंदगी रहती है

तस्वीरों में दिखती है रौनक मुह पर
मगर नब्ज़ तो बेचैन थमी रहती है