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Sunday 9 October 2011

सितमगर से यारी हैं इन दिनों



मन थोडा सा भारी हैं इन दिनों
सितमगर से यारी हैं इन दिनों
कहने को तो सब ठीक हैं मगर
हल्की सी बेकरारी हैं इन दिनों
हार जीत की बात करते हैं सभी
हरेक शख्स जुआरी हैं इन दिनों
अपना तो जिक्र उठता ही नही
चर्चाए ही तुम्हारी हैं इन दिनों
फरेब से कोई बचकर दिखाए
हर तरफ कलाकारी हैं इन दिनों
काम पड़ने पर गधा बाप बना लो
यही तो दुनियादारी हैं इन दिनों
चैन नही बेचैन उसके बिना अब
अपनी यही लाचारी हैं इन दिनों

यहाँ क्या मैं ही बेचैन हूँ



शर्मिंदा हूँ किसी बात से
नही सोया हूँ कई रात से
हुआ जाने कैसे हादसा
अनचाही सी मुलाक़ात से
वो जवाब ऐसा ही दे गये
डरता हूँ अब सवालात से
रह जाता हूँ बस कांप कर
हाय इश्क के ख्यालात से
तुझे जीते जी मरवा देगा
नही यारी रख ज़ज्बात से

वो किसकी जुल्फें संवारेगा
जो उलझ रहा हो हालात से
यहाँ क्या मैं ही  बेचैन हूँ
कोई पूछ दे कायनात से

अनछुए ज़ज्बात है अभी



साधारण सी बात है अभी
कच्ची मुलाकात है अभी
दिल का हाल कैसे कह दूं
अनछुए ज़ज्बात है अभी
कैसे आयें इक छतरी नीचे
हल्की सी बरसात है अभी
वो होंगे धुरंधर इश्क में
मेरी तो शुरुआत है अभी
पकड़ हाथ सीने पर रखूं
मेरी कहाँ औकात है अभी
जवाब मिलते ही बताऊंगा
जिंदगी सवालात है अभी 
दिन ही तो गुज़रा है बेचैन
पहाड़ सी बाकि रात है अभी

दिल के इलावा चैन भी खोकर तो देखिये



शर्मिंदगी को माफ़ी से धोकर तो देखिये
मिलेगा शकुं तन्हाई में रोकर तो देखिये
पाने का छोड़कर लालच कभी मेरे हूजुर
दिल के इलावा चैन भी खोकर तो देखिये
मिल जायेंगे सवालों के सारे जवाब भी
अहसास के जंगल से भी होकर तो देखिये
हंसने का जब मन करे बिन बात आपका
तस्वीर मेरी में कोई भी जोकर तो देखिये
मेरी तरह से आप भी दिल ही दिल में
सपना कोई भी पहले संजोकर तो देखिये
हर वक्त जागे जागे ना रहा करो बेचैन जी
ख्वाबों में आऊंगा कभी सोकर तो देखिये