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Tuesday 11 December 2012

तुझे तरस नही आया बच्चे को छोड़ कर यहाँ

इतनी बड़ी दुनिया करोड़ो लोग और मैं तन्हा
तुझे तरस नही आया बच्चे को छोड़ कर यहाँ

क्यूं नही सोचा कौन कराएगा रोते हुवे को चुप
बता कौन थामेगा मेरी सुबकियों का कारवां

तू था तो दिल थोडा बहुत बचपना कर लेता था
तू नही है तो वजूद पड़ा है मकतल में बेज़ुबां

छा जाती है अँधेरी और जी घबरा जाता है
तेरी यादों का लगता है जब आँखों में धूंआ

कृष्ण कण-कण में था पर राधा के नसीब में ना था
क्या बेचैन के साथ भी दोहराई गई वो दास्तां

फिर रोजाना दर पे जाकर उसके सर क्यूं रखता है

वास्ता नही रखना तो फिर मुझपे नजर क्यूं रखता है
मैं किस हाल में जिंदा हूँ तू ये सब खबर क्यूं रखता है

बात अगर फूलों की कलियों की गुलशन की करता है
अपने लब्जों में फिर छिपाकर तू पत्थर क्यूं रखता है

गर कुनबा ही समझता है तू इस पूरी दुनिया को
फिर ज़हन के कोने में सदा अपना घर क्यूं रखता है

तू तो कहता है मैं दुखाता नही दिल किसी का भी
फिर खुदा तुम्हारी दुआओं को बेअसर क्यूं रखता है

किसी को जीतने की कोशिश तू करना नही चाहता
बता फिर हारने का मन में अपने डर क्यूं रखता है

इश्क इबादत है खुदा की जिसे तुमने ठुकरा दिया
फिर रोजाना दर पे जाकर उसके सर क्यूं रखता है

तू मुझको छोड़ तो सकता है पर भूला नही सकता
बता बेचैन मेरा वजूद तुझे मुख्तसर क्यूं लगता है