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Friday 6 January 2012

कभी मौका लगे तो नाचता मोर देखना

इश्क में आयेंगे क्या क्या दौर देखना
जिक्रे-शराफत में खुद को चोर देखना

तुम खुद महसूस करोगी फर्क चेहरे में
बस इक बार जरा आइना और देखना

क्यूं रोता हूँ हंसते हंसते जान जाओगी
कभी मौका लगे तो नाचता मोर देखना

बैठकर तन्हाई में बंद करके दोनों आँखे
मेरी तडफ का धडकनों में शोर देखना

बेचैन होकर पहले मेरी आरज़ू तो कर
फिर उसके बाद तकदीर का जोर देखना





जरा सी बात कितनी बार समझेगी

तू खुद को जब तलक शिकार समझेगी
नही लगता है मेरा प्यार समझेगी

बिछड़ते ही तुमसे दम तोड़ दूंगा
जरा सी बात कितनी बार समझेगी

मुझ पर हो जाएगा उसी दिन यकीन
जिस दिन खुद पर एतबार समझेगी

कैसे होगी मेरे दर्द से मुलाक़ात
आंसुओ को जब तक बेकार समझेगी

जन्म भर फिर तो बेचैन ही रहोगी
अपने अहसास जब तक भार समझोगी


क्या खोजती हो रोजाना मुझ फकीर में

मैं जकड़ा हुआ हूँ हालात की जंजीर में
क्या खोजती हो रोजाना मुझ फकीर में

मैं जिंदगी के सर्कस का जोकर हूँ जान
नही लिखवाकर लाया हंसना तकदीर में

मैं नही हूँ तुम्हारे ख्वाबो का शहजादा
मत बर्बाद कीजियेगा वक्त इस कबीर में

कैसे लूं तुझे बाँहों में भरने का ख्वाब
जब दिख नही रही तुम हाथों की लकीर में

होकर बेचैन दम तोड़ता है तो तोड़ने दो
मत तरस खाना अपनी जुल्फों के असीर में
असीर= कैदी