Friends

Sunday 9 December 2012

तुम्हारी तस्वीर तक नही इबादत करूंगा कैसे

मैं दर्दे जुदाई की ता-उम्र हिफाजत करूंगा कैसे
तुम्हारी तस्वीर तक नही इबादत करूंगा कैसे

कलेजा नोच रही है यादें हरेक लम्हा हर घड़ी
ऐसे में ज़िंदा रहने की मैं आदत करूंगा कैसे

मैं चला भी जाऊ बेशक बज्मे इशरत में लेकिन
तेरे ना होने के गम की खिलाफत करूंगा कैसे

लगा नही पाऊंगा रोक ज़हन की बदमाशियों पर
ओरों की छोडो खुद से ही शराफत करूंगा कैसे

गुस्से की सौ बात मगर तुझे तो हकीकत मालूम है
बेचैन मैं अपने अक्स से अदावत करूंगा कैसे

दम निकलने को है आके जिंदगी दे दे

धडकनों को सकून लबो को हंसी दे दे
दम निकलने को है आके जिंदगी दे दे

कम न थी पहले ही हालात की उलझन
ऊपर से हिज्र दाता हयात से मुक्ति दे दे

ले चुका है मुझको आगोश में अँधेरा
मेरे हिस्से की मुझे कोई रौशनी दे दे

वादा है उम्र भर उफ़ तक ना करूंगा
तू बैठकर पास चाहे बेरुखी दे दे

वरना मरकर भी बेचैन रूह भटकेगी
तोड़ दूं चैन से दम इतनी ख़ुशी दे दे