रंजिशें साथ में रहकर भी तो कर सकते थे
हम मांगते प्यार और तुम मुकर सकते थे
तुम अगर चाहते तो आज के सड़ते ज़ख्म
नासूर नही बनते उन्ही दिनों भर सकते थे
जब हमारा वज़ूद तलक तेरे पास गिरवी था
करके कलम कदमो में सर भी धर सकते थे
इतना मुश्किल भी नही था बैठकर आपस में
हम गलतफहमियों के दौर से उभर सकते थे
लिखते तुम भी अगर बेचैन किताबे महोब्बत
तुम्हारे हमारी तरह जज्बात निखर सकते थे
हम मांगते प्यार और तुम मुकर सकते थे
तुम अगर चाहते तो आज के सड़ते ज़ख्म
नासूर नही बनते उन्ही दिनों भर सकते थे
जब हमारा वज़ूद तलक तेरे पास गिरवी था
करके कलम कदमो में सर भी धर सकते थे
इतना मुश्किल भी नही था बैठकर आपस में
हम गलतफहमियों के दौर से उभर सकते थे
लिखते तुम भी अगर बेचैन किताबे महोब्बत
तुम्हारे हमारी तरह जज्बात निखर सकते थे