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Sunday 31 July 2011

मैं पीता नहीं हूँ मुझे पिलाते है लोग

मेरे पहलु में जाने क्यों आते है लोग
मैं पीता नहीं हूँ मुझे पिलाते है लोग
निकालने को अपना कोई भी काम
बोतले लेकर पहुच जाते है लोग
इससे पहले की खोलू मैं अपना मुह
मुझसे पहले खुदा की कसम खाते है लोग
मन से दिल से मैं सच्चा हूँ दोस्तों
फिर भी मुझे झूठा ठहराते है लोग
जो कहता सरेआम खुद को बेचैन
उसी से चैन की उम्मीद जताते है लोग

नशे की मां भी मर गई, अब क्यों ना सोया जाये

जो पी थी वो उतर गई, अब क्यों ना सोया जाये
नशे की मां भी मर गई, अब क्यों ना सोया जाये
मकसद हो ही गया पूरा पलके झिलमिलाने का
याद में आँख भी भर गई अब क्यों ना सोया जाये
देख लेना जफा से चिड उसे ता-उम्र रहेगी दोस्त
मेरी बातों से वो डर गई अब क्यों ना सोया जाये
जता दू शुक्रिया पर्वत दिगारे दो जहाँ वाले का
मेरी हरकते भी संवर गई अब क्यों ना सोया जाये
यही थी आरजू कब से लो अब वो पूरी हो ही गई
मुझे वो बेचैन भी कर गई अब क्यों ना सोया जाये

इश्क रोशन है यारों सितमगर के बाइस



वो मुरीद है मेरा, मेरे हुनर के बाइस
लोग शैदा होते है वरना जर के बाइस
कब का भूल गया होता घर गाँव का लेकिन
इक पहचान बाकि है सूखे शजर के बाइस
मैं सह नहीं सकता, नशा नींद का मगर
जाग सकता हूँ, बज्मे-सुखनवर के बाइस
कनखियों से मुझे घूर कर क्या देखा उसने
दिल हो गया बिस्मिल तेगे-नजर के बाइस
जर्फ़ वालों की कसौटी से निकला है जूमला
इश्क रोशन है यारों सितमगर के बाइस
बाप होने का हक अदा, यूं किया उसने
हो गया नीलाम लख्ते-जिगर के बाइस
आवारगी ने तो कोई कमी ना छोड़ी बेचैन
मगर ना हो सके आवारा घर के बाइस

मुरीद= प्रशंसक
बाइस=कारण
शैदा =आशिक
शजर = पेड़
बज्मे-सुखनवर= कवि सम्मेलन
जर्फ़=श्रेष्ठ,
कसौटी =अनुभव
लख्ते-जिगर= दिल का टुकड़ा ,
बिस्मिल= घायल
तेगे-नजर= निगाहों की तलवार

कहो जीने का क्या सामन आये इश्क के बलबूते पर


ना तो पेट भरे ना पहरान आये इश्क के बलबूते पर
कहो जीने का क्या सामन आये इश्क के बलबूते पर
बहुत पछताए मान कर दिल की बात इस जन्म में
ना कोई भी काम अरमान आये इश्क के बलबूते पर
महोब्बत में जमीं बनकर वस्ल के मारो सुन लो
ना झुका कही आसमान आये इश्क के बलबूते पर
लैला-मजनू हीर-ओ राँझा की तरह बर्बाद होवोगे
बस इतनी सी पहचान आये इश्क के बलबूते पर
अच्छा होगा इस ओर ना आओ नौसिखिये दिलदारो
वरना बे-इंतिहा तूफ़ान आये इश्क के बलबूते पर
बस इतना ही सीखा प्यारगिरी में पड़कर बेचैन
खुद में पागलो सा गुमान आये इश्क के बलबूते पर

हाँ मजे में जिंदगी है

दर्द है आंसू है बेबसी है
हाँ मजे में जिंदगी है
बाकि तो सब मिल गया
बस एक तेरी ही कमी है
झूठ किसलिए बोलू मैं
सच की जब बात चली है
गम की छोटी बहन है वो
नाम जिसका भी ख़ुशी है
देखना कल मस्ती लूटेगा वो
जिनके हिस्से आज बेकसी है
उम्र सिखाती है बेचैन
दुनिया कितनी मतलबी है

फिक्रमंद हूँ, महोब्बत को लेकर

दर्द जो भी बावस्ता है जिंदगी से
सच कहूं, तो मिला है तुझी से
वो हंसते है मुझपे, तो क्या हुआ 
मैं तो पेश आता हूँ, संजीदगी से
फिक्रमंद हूँ, महोब्बत को लेकर
कैसे कहूं ,दिल की बात किसी से
इतना याद रखो, मुझसे जुड़े लोगो
बेहद ही चिढ़ता हूँ, नामे-दोस्ती से
पहले वजूद का कत्ल, करना पड़ेगा
इसलिए भागता हूँ , दूर मयकशी से
सूरत तो महज़ इक बहाना है बेचैन
जोड़ती है सीरत आदमी को आदमी से