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Friday 9 September 2011

इश्क में दोनों का भला हो तो निपट ले



अकेले दिल का मामला हो तो निपट ले
इश्क में दोनों का भला हो तो निपट ले
जिक्र है दिमाग में मचती खलबली का
हिज्र कोई मामूली बला हो तो निपट ले
वही होता है जो भी तकदीर में लिखा है
कभी वार होनी का टला हो तो निपट ले
इश्क तो कर लेता है अब समझोते मगर
हुशन भी तजुर्बों में ढला हो तो निपट ले
इसलिए बेचैन हूँ मंजिल को लेकर दोस्त
मेरे पीछे कोई काफिला हो तो निपट ले

मेरे मित्र अरिहंत जैन के जन्मदिवस पर विशेष व्यापार हो या इश्क मुनाफा मिले बेचैन



खुशियाँ झूमे और आप सदा मुस्कुराये
जन्मदिन पर कोई शुभ संदेश घर आये
रंगीनी मिले बचपन से देखे ख्वाबों को
मन की मुराद हर हाल में पूरी हो जाये
मस्ती के सागर में गोते लगाये जिंदगी
कभी चाहके भी ना गम आपको छू पाए
कोई शख्स या कोई बात आँख में न चुभे
बस आपका भला चाहे वे अपने हो पराये 
व्यापार हो या इश्क मुनाफा मिले बेचैन
दुनिया में आप बेशक कही पर भी जाएँ

चुगली उसके जाने के बाद ना कर


बहाकर आंसू वक्त बर्बाद ना कर
भूलने वाले को तू भी याद ना कर
सौ फीसदी गूंगे बहरों का दौर है
बेकार किसी से फरियाद ना कर
बहाने उसके संजीदगी से लेकर
दर्द नया आये दिन इजाद ना कर
सरे बज्म कह दे जो भी कहना है
चुगली उसके जाने के बाद ना कर
हक मेरे हुनर का मुझे दे दे बेचैन
बेशक मेरी तू कोई इमदाद ना कर