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Thursday 17 November 2011

अब तो लड़ेंगे यारों आखरी दम तक


जब पहुँच गये है जिंदगी के खम तक
अब तो लड़ेंगे यारों आखरी दम तक

अपनी मौत को तो मौत आने से रही
आजमाकर तो देखे खुद को भ्रम तक

क्या बिगाड़ लेगी दुश्मन की तरकीब
कोई वार ही जब ना पहुंचेगा हम तक

मिटा देगी आदम ज़ात को मजहबी जंग
मत नफरत बिछाईएगा दैरो हरम तक

यूं ही नही खुल जाते जन्नत के दरवाजे
खुदा नापकर देखते है बेचैन करम तक

जिसने काटे हो कभी मुफलिसी के कुत्ते दिन

गरीबों का हमदर्द तो वही शख्स बन पायेगा
जिसने काटे हो कभी मुफलिसी के कुत्ते दिन

अर्श पर ले जाकर बेशक बैठा दो औकात
भूल कर तो दिखाओ जिंदगी के कुत्ते दिन

अपनी हस्ती पर दोस्त ना इतरा इस कदर
जाने कब आ जाएँ आदमी के कुत्ते दिन

मैंने भी महोब्बत करके देखी है दोस्तों
बहुत रुलाते है बेबसी के कुत्ते दिन

ध्यान से उठाना दुःख की तोहमत बेचैन
इतिहास बन जाते है गमी के कुत्ते दिन