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Sunday 27 November 2011

वो आराम से कुत्ते पालते है

हमसे तो शौक भी नही पलता
वो आराम से कुत्ते पालते है

सलामत रहे हौसला उनका
जो गम को गेंद सा उछालते है

उम्र भर पाते है वो लोग दुख
जो बात-बात पर बातें टालते हैं

सुना है उसे शौहरत मिलती है
मछलियों को जो दाना डालते है

पूछ ही लेते है दोस्त हाल बेचैन
रिश्तेदार भला कब सम्भालते है

पीने के बाद हनुमान बन जाता हूँ

  पीने के बाद हनुमान बन जाता हूँ
अपने मोहल्ले की शान बन जाता हूँ

मैं खूब खोलता हूँ पोल पड़ोसियों की
जब सच बोलने की खान बन जाता हूँ

जब लगाते है लोग शर्त मेरे होश पर
तब मैं गीता और कुरआन बन जाता हूँ

कर के देखो मुझसे किसी बात पर बहस
नशे में जहाँ भर का मैं ज्ञान बन जाता है

देता हूँ बेचैन ऊंचाई छोटे भाई को मैं
जाम लगाकर जब आसमान बन जाता हूँ

Friday 25 November 2011

बस उम्मीद ने ही जीना दुश्वार कर दिया

दुश्मनों की चालों का मैं तो दे दूंगा जवाब
क्या होगा गर दोस्तों ने भी वार कर दिया

अब तक तो यही सिखलाया है तजुर्बे ने
वही मुकरेगा जिसने इकरार कर दिया

वही जुबान कहलाएगी रसभरी दोस्तों
जिसने वादों का तीर दिल के पार कर दिया

महज़ एक वादा वफा करने की चाह में
क्यूं भरोसे का कत्ल तुमने यार कर दिया

बकाया तो सब कुछ काबू में है बेचैन
बस उम्मीद ने ही जीना दुश्वार कर दिया


Wednesday 23 November 2011

मेरे हिस्से की मुझको खैरात याद आई

तेरे लबों को देखकर इक बात याद आई
गुलाब को भी अपनी औकात याद आई

सरे बज्म खिलखिलाकर तुम क्या हंसे
मुझको चांदनी की वो बरसात याद आई

मैं यूं इतराया अपनी खुशनसीबी पर
कॉलेज के दिनों की मुलाक़ात याद आई

अनजाने में जब मिलाया उसने हाथ
मेरे हिस्से की मुझको खैरात याद आई

अपनी तरह बेचैन जब देखा इक यार
हमें महोब्बत में मिली वो मात याद आई

आज अपने सुदामा को पिला दे कृष्णा

होश  का गिरेबां पकड़ के हिला दे कृष्णा
आज अपने सुदामा को पिला दे कृष्णा

कह रहे है लोग तू मस्ती का मालिक है
फिर थोड़ी मेरे जाम में मिला दे कृष्णा

अपना घर बसाऊं या फिर शराब पिऊ
फैसला कोई मजबूत सा सुझा दे कृष्णा

इक बार मिलने से तो दिल ना भरेगा
मुलाक़ात का ख़ास सिलसिला दे कृष्णा

बेचैन रहूँ उम्र भर होश के लिए मैं
तू नशे का फूल ऐसा खिला दे कृष्णा



Monday 21 November 2011

काश कुछेक लोगों से रिश्तेदारी ना होती


वो दूर है इसलिए तो याद आता है अक्सर
होते एक ही शहर में तो बेकरारी ना होती

जीऊंगा जब तक ना मिट सकेगा ये धोखा
काश कुछेक लोगों से रिश्तेदारी ना होती

मिल ही जाता हाथों हाथ मेहनत का फल
गर मुझसे मेरे नसीब की पर्देदारी ना होती

ख़ाक खूब पीते है वो लोग जमाने में
सर पर जिसके किसी की उधारी ना होती

आ ही जाती समझ में अगर बात संतों की
फिर दुनिया में बेचैन मारा मारी ना होती

Sunday 20 November 2011

जंगल में सीधे पेड़ पहले काटे जाते है

 जंगल में सीधे पेड़ पहले काटे जाते है
लोग शरीफजादों को इसलिए सताते है

मैंने छुपकर सुनी है अमीरों की बातचीत
वो मुफलिसों को आदमी थोड़े बताते है

तू परदेश में कमाने मत भेज तकदीर
अभी तक मेरे नौनिहाल बहुत तुतलाते है

जड़ों की मिट्टी को ठुकराकर कुछ नही बचेगा
यारों बियाबा के पेड़ रोज़ ही बतियाते है

बस होशमंदों को थोडा होश रहे बेचैन
शराबी नशे में महज़ इसलिए बुदबुदाते है

Saturday 19 November 2011

वो सूदखोर नही तो मतलबी जरुर है

ज़हाज़ उड़ाने का उसे काम क्या आया
व्यवहार भी कमबख्त हवाई करता है

यूं तो मिलता है मुझसे भी मुस्कुराकर
मगर पीठ पीछे वो बुराई करता है

मैं मरूंगा जब तुम समझोगे छोटे
क्यूं फ़िक्र का सौदा बड़ा भाई करता है

अपनेपन की उससे उम्मीद ना रखिये
जो शख्स रिश्तों को तमाशाई करता है

वो सूदखोर नही तो मतलबी जरुर है
पैसे की औकात से नपाई करता है

 उसको ही बेवकूफ कहती है दुनिया
बिना सोचे जो शख्स भलाई करता है

जीते जी कभी भी खुल सकते है बेचैन
वक्त जिन जख्मो की तुरपाई करता है

मेरे भीतर की कस्तूरी मुझे भी तो पता लगे

 अल्लाह उसकी मजबूरी मुझे भी तो पता लगे
इंतजार के बीच की दूरी मुझे भी तो पता लगे

उलटे-सीधे ख्यालात दिल में पनाह ले रहे है
बेरहम वक्त की मंजूरी मुझे भी तो पता लगे

एक मुद्दत से खा रहा हूँ मैं ठोकरे दर-ब-बदर
मेरे भीतर की कस्तूरी मुझे भी तो पता लगे

महज़ अंदाज़े से उसे बेवफा करार कैसे दे दूं
आखिर दोस्तों बात पूरी मुझे भी तो पता लगे

सीखना पड़ता है बेचैन ये चमचागिरी का हुनर
करूं कितनी कहाँ जी हुजूरी मुझे भी तो पता लगे

Thursday 17 November 2011

अब तो लड़ेंगे यारों आखरी दम तक


जब पहुँच गये है जिंदगी के खम तक
अब तो लड़ेंगे यारों आखरी दम तक

अपनी मौत को तो मौत आने से रही
आजमाकर तो देखे खुद को भ्रम तक

क्या बिगाड़ लेगी दुश्मन की तरकीब
कोई वार ही जब ना पहुंचेगा हम तक

मिटा देगी आदम ज़ात को मजहबी जंग
मत नफरत बिछाईएगा दैरो हरम तक

यूं ही नही खुल जाते जन्नत के दरवाजे
खुदा नापकर देखते है बेचैन करम तक

जिसने काटे हो कभी मुफलिसी के कुत्ते दिन

गरीबों का हमदर्द तो वही शख्स बन पायेगा
जिसने काटे हो कभी मुफलिसी के कुत्ते दिन

अर्श पर ले जाकर बेशक बैठा दो औकात
भूल कर तो दिखाओ जिंदगी के कुत्ते दिन

अपनी हस्ती पर दोस्त ना इतरा इस कदर
जाने कब आ जाएँ आदमी के कुत्ते दिन

मैंने भी महोब्बत करके देखी है दोस्तों
बहुत रुलाते है बेबसी के कुत्ते दिन

ध्यान से उठाना दुःख की तोहमत बेचैन
इतिहास बन जाते है गमी के कुत्ते दिन

Wednesday 16 November 2011

चुगली समझता हूँ मैल ख्यालात का

समझ गया हूँ खेल है सारा जज्बात का
अब नही मानता मैं बुरा किसी बात का

बेशक कितनी करें बुराई मेरी दुश्मन
चुगली समझता हूँ मैल ख्यालात का

दिन के उजाले में ही होता है सब कुछ
अब इंतजार नही करता कोई रात का

तंज़ कसने वालों से ही सवाल है मेरा
कितना कद होना चाहिए औकात का

कमीन हर हाल में कमीन कहलायेगा
बेशक लबादा ओढ़ता हो मेरी ज़ात का

वो कल क्या करेगा इसकी फ़िक्र छोडो
जमाना है आजकल नगद करामात का

अगली दफा वो ही बाज़ी मारेगा बेचैन
जिसके समझ आया मतलब मात का

Monday 14 November 2011

असली अंदाज़ में आकर मां-माँ कर दूं

सोचता हूँ आज पीकर हंगामा कर दूं
कई दिन हुवे मोहल्ले में ड्रामा कर दूं

दो-दो पैग देकर गली के सब बुढो को
मस्ती का पैदा एक कारनामा कर दूं

बहुत कान ऐंठे है बचपन से फूफा ने
क्यूं ना नशे में उसको मामा कर दूं

सच में अगर वो भी भूल गया है मुझे
खत्म यादों को खरामा-खरामा कर दूं

भूलके शर्म लिहाज़ पीने के बाद बेचैन
असली अंदाज़ में आकर मां-माँ  कर दूं


Sunday 13 November 2011

हमजुबां से खुदा मुझको मिलाता क्यूं नही


कोई मजबूरी है तो मुझे बताता क्यूं नही
वो मेरी तरह यारी में पेश आता क्यूं नही

शक है मुझे समझकर भी नही समझा वो
समझ गया तो ढंग से समझाता क्यूं नही

दांतों तले ऊँगली दबाना तो छुट गया पीछे
मुझको देखकर अब वो शरमाता क्यूं नही

डालकर ख़ाक मेरी बरसों की दीवानगी पर
मेरी हालत पर थोडा रहम खाता क्यूं नही

टकरा ही जाते है बेचैन हर बार दुसरे लोग
हमजुबां से खुदा मुझको मिलाता क्यूं नही


वो दोस्ती से पहले मुखबरी करता है

वो दोस्ती से पहले मुखबरी करता है
तब जाकर अपना शक बरी करता है

करके चिकनी चुपड़ी बातें कमबख्त
मौका मिलते ही वो जादूगरी करता है

हर कदम हर रिश्ते से फरेब मिला है
वो इसलिए बात खोटी-खरी करता हैं

माँ का दर्दे दिल महसूस नही है जिसे
बेटा फिर बेकार ही अफसरी करता है


वो उतना ही शातिर निकलेगा बेचैन
जो जितनी जुबान रसभरी करता है

Saturday 12 November 2011

ख्वाबों को बच्चे समझ पालता ही रहा

मेरा सब्र गेंद की तरह उछालता ही रहा
कल के नाम पर वो मुझे टालता ही रहा

न मालूम था नही हो पाएंगे कभी जवां
ख्वाबों को बच्चे समझ पालता ही रहा

दुबारा टूटे तमाम भ्रम एक-एक करके
दोस्ती में इस बार भी मुगालता ही रहा

इससे ज्यादा ना और कुछ कर सका मैं
बस गजलों पर भडास निकालता ही रहा

जवां होते ही मिला था जो दर्द यारों से
मुझको उमर भर बेचैन सालता ही रहा

Friday 11 November 2011

आंसू न मेरी तरह किसी के तेज़ाब हो


इतना भी ना सोचो की दिमाग खराब हो
सवाल उलझते-उलझते लाजवाब हो

रोजाना खुदा से दुआ ये मांगता हूँ मैं
ना मेरे हाथों आज कोई भी अजाब हो

दिवार बटवारे की अगर नही चाहते हो
भाई से भाई का ना कोई हिसाब हो

आँखों की नमी दिलजला देती है बना
आंसू न मेरी तरह किसी के तेज़ाब हो

इतनी मेहर करना खुदा हम दीवानों पर
हालत ना इश्क में कभी भी इज़्तिराब हो

बेटी ही महकाती है घर और आंगन को
बेचैन ऐसा सबके हिस्से में गुलाब हो

Thursday 10 November 2011

आग और पानी का किसको शौक है

होश औकात ना भूले इसलिए पीता हूँ
वरना खारे पानी का किसको शौक है

वो तो व्यापार में शर्त होती है वरना
अक्सर बेईमानी का किसको शौक है

बात मेरी नही किसी से भी पूछ लीजे
झूठी मेहरबानी का किसको शौक है

अय्यासी के मारे ही बतायेंगे यह सब
ना मुराद जवानी का किसको शौक है

छिपी नही बुजुर्गों से यह बात बेचैन
आग और पानी का किसको शौक है

भीड़ के कंधे चढ़ इन्कलाब कोई मत देखना

मरने से पहले माँ मुझे समझा कर गई थी
रिश्तेदारों के भरोसे ख्वाब कोई मत देखना

करना हो कभी जो, अपने बूते पर ही करना
भीड़ के कंधे चढ़ इन्कलाब कोई मत देखना

आँखों में ही नही दिल भी दिक्कत में होगा
एकटक कभी भी आफताब कोई मत देखना

वो शादीशुदा है बडेपन का भ्रम ना रखेगा
कभी छोटे भाई से हिसाब कोई मत देखना

अच्छी आदतें देखेगा तो सुख पायेगा बेचैन
दोस्तों की अदा कभी खराब कोई मत देखना

Wednesday 9 November 2011

रोजाना माँ के पैरों में सर झुका लेता हूँ

बचूंगा तो नही फिर भी आजमा लेता हूँ
सितमगर के नाम पर ज़हर खा लेता हूँ

जब भी आया है कोई ख़ास चेहरा सामने
एक बारगी देखकर आँखे झुका लेता हूँ

यारों की महोब्बत का कमाल है वरना
मैं तो नही मानता मैं अच्छा गा लेता हूँ

यूं करता हूँ इबादत की रस्म अदायगी
रोजाना माँ के पैरों में सर झुका लेता हूँ

नही मालूम कब बनती है अच्छी गजल
मैं कलम तो बेचैन रोजाना चला लेता हूँ

अब नही निकलते चिरागों से जिन्न

 माँ और गरीबी को जिसने भुलाया है
बुलंदी से वो शख्स जमीं पर आया है

खूब खाता है रिश्तेदारों से गालियाँ
औकात को जिसने कच्चा चबाया है

निखरी है और भी उसकी कामयाबी
बुजुर्गों से जिसने आशीर्वाद पाया है

वक्त के इंतिहान में मार गया बाज़ी
नसीब को जिसने आइना दिखाया है

अब नही निकलते चिरागों से जिन्न
जो जान गया उसने कमाकर खाया है

वो संस्कारों को पटरी से उतरें है बेचैन
औलाद को जिसने सर पर चढ़ाया है



Monday 7 November 2011

पीके होश वालो की चुगली खाता हूँ

अक्सर नशे का मजा यूं उठाता हूँ
पीके होश वालो की चुगली खाता हूँ

कर देता हूँ खाली एक घूँट में जाम
चुश्कियों के झंझट से जी चुराता हूँ

काम तो करना है जिंदगी भर दोस्तों
छुटी के दिन सिर्फ आराम फरमाता हूँ

बहुत से लोगों का मैं दुश्मन हूँ मगर
नही जानता मैं किस किसको भाता हूँ

सीने में इक दर्द सा महसूस करता हूँ 
जब कभी तुम्हारी यादों से टकराता हूँ

मौत से टकराने का हौशला है तो मगर
अपने आप से यारों मैं बेहद घबराता हूँ

ब्याज तक डकारता हूँ व्यपार में मगर
झूठी कसम मैं बेचैन कभी नही खाता हूँ


कुनबा भी बनेगा पाप का चश्मदीद

सच में गर चाहते हो खुदा का दीद
बकरा काट कर ना बनाओ बकरीद

मस्जिद की जगह घर में मकतल
कैसे हो भाई तुम मजहब के मुरीद

मारकर बेकसूर को खुद तो फसोगे
कुनबा भी बनेगा पाप का चश्मदीद


मांस की जगह सबको मिठाई बांटो
फिर कहो आपस में मुबारक हो ईद


दुखाकर किसी गरीब का दिल बेचैन
ना पीढ़ियों के लिए तकलीफें खरीद

Sunday 6 November 2011

मजदूर का बेटा बेरोज़गार निकला

वो उम्मीद की हदों से पार निकला
मेरे रकीबों का पक्का यार निकला

देता रहा दिलासे पर दिलासा मुझे
वो बहानेबाजों का सरदार निकला

खबरें सम्पादक के दिल से गुजरी
जब भी छप कर अखबार निकला
दर्द आंसू और बेबसी का जानकार
आदमी नही एक कलाकार निकला

गरीबी के कंधे चढ़कर पढने पर भी
मजदूर का बेटा बेरोज़गार निकला



मुझे देखे बिना बेचैन होने वाले का
अहसास ही बाद में व्यपार निकला

Saturday 5 November 2011

वो दौलत के इलावा कुछ कमाता नही है

औकात भूलकर भी वो शरमाता नही है
अजब शख्स है वजूद से घबराता नही है

खा खाकर झूठी कसमें सेहत बना गया
रोटी पे कमबख्त कभी ललचाता नही है

मिलते ही बताता है ख्यालात बड़े- बड़े
गरीबी के दिनों का जिक्र उठाता नही है

खबरों में उसने होने का यूं जिक्र किया
जैसे अखबार मेरे घर कभी आता नही है

अब समझा उसके व्यवहार की कंगाली
वो दौलत के इलावा कुछ कमाता नही है

वो तो पिछली सदी की शुरुआत थी यारों
आजकल अच्छे इन्सां खुदा बनाता नही है

सब तदबीर-ओ-तकदीर का खेल है बेचैन
जगत में कोई किसी का भी विधाता नही है