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Tuesday 13 December 2011

ज़ज्बात का खरगोश निशाना था उसका

उम्र भर के साथ को तो गोली मारो
वो हमसे दो दिन में ही खफा हो गये

मुद्दत से भर रहा था जिनमे में रंग
झटके में ख्वाब सारे सफा हो गये

ज़ज्बात का खरगोश निशाना था उसका
कमबख्त करके शिकार दफा हो गये

यह खूब रही इश्क ने राख कर डाला
जलाकर मुझे कमबख्त धुंआ हो गये

गम का जश्न मना बोतल खोल ले बेचैन
सब वादे महोब्बत के जफा होग गये

तुमको पाया तो लगा इंतज़ार अच्छा था

इकरार से सौ गुना इनकार अच्छा था
तुमको पाया तो लगा इंतज़ार अच्छा था

तारे गिनने का क्या काम सौंपा तुने इश्क
आशिक बनने से पहले बेकार अच्छा था

छोड़ दिया उसने मेरा हाल चाल पूछना
ठीक होने से तो मैं बीमार अच्छा था

अब बेचैन रहता हूँ जबसे जवानी आई है
पहले यारों बचपन वाला करार अच्छा था

दोस्ती के नाते सही हंसकर तो बोलते थे
इस बेरुखी से तो उसका प्यार अच्छा था