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Monday 5 October 2015

हमे महबूब से ज्यादा माँ की याद आती है

गुज़री हुई एक तिहाई जिंदगानी बताती है
हमे महबूब से ज्यादा माँ की याद आती है

खुदगर्ज़ी का अहसास जीवन की भागदौड़
हमसे आखरी साँस तक छूट नही पाती है

कौम मज़हब रबर के बने सियासती मुद्दे
इंसानियत इनमे चीखती है कुलबुलाती है

आंसूजल से पाक कोई भी दूसरा जल नही
जज्बात की नदियां अपना शोध बताती है

आरती किसी भी भी उतारो तो यूं उतारो
समझो बेचैन साँसे दीप है तो आँखे बाती है 

Wednesday 22 July 2015

वाक्यात फन के सफर में हैरतंगेज़ आते रहे

मैं करता रहा मेहनत लोग जुगाड़ भिड़ाते रहे
वाक्यात फन के सफर में हैरतंगेज़ आते रहे

 बेईमानी करती रही रेप रोज ईमानदारी का
लोग उसी को किस्मत का लिखा बताते रहे

हालांकि लहू लुहान रहा मेरा वज़ूद उम्र भर
मगर जीना था हम इसलिए मुस्कुराते रहे

जहर महज़ब का था उन दोनों के ही मन में
जो झूठी राम अल्लाह की कसम खाते रहे

एक दो यारो ने रखी लब्ज़े यारी की लाज
बाकि अहसास तो हमे मुह ही चिढ़ाते रहे

यही दुनिया है तो ये दुनिया कुछ भी नही
क्या मतलब हुआ लोग आते रहे जाते रहे

वही लोग है बेचैन आज जनाजे के साथ
हम जीते जी जिन पर उम्मीदे लुटाते रहे

Saturday 11 July 2015

फूलती सांसे करे इशारा जिस्म तो सबका मिट्टी है

रूहें लगा रही है नारा जिस्म तो सबका मिट्टी  है
क्या मेरा और क्या तुम्हारा जिस्म तो सबका मिटटी है

रिश्ते नाते प्यार महोब्बत और न जाने क्या क्या बंधन
लालच की हदो ने पुकारा जिस्म तो सबका मिट्टी है

दौलत शौहरत आदमी मौत पर काबू पा नही सकते
फूलती सांसे करे इशारा जिस्म तो सबका मिट्टी है

नाराजगी वक्त का नही नुक्सान जन्म का कर रही है
तू क्यूँ जिद्द करता है यारा जिस्म तो सबका मिट्टी है

कौन इतना दीवाना बेचैन मरे हुवो से लाड करे
जीते जी का झगड़ा सारा जिस्म तो सबका मिट्टी है
वी एम बेचैन भिवानी 9034741834

Thursday 9 July 2015

रंजिशें साथ में रहकर भी तो कर सकते थे

रंजिशें साथ में रहकर भी तो कर सकते थे
हम मांगते प्यार और तुम मुकर सकते थे

तुम अगर चाहते तो आज के सड़ते ज़ख्म
नासूर नही बनते उन्ही दिनों भर सकते थे

जब हमारा वज़ूद तलक तेरे पास गिरवी था
करके कलम कदमो में सर भी धर सकते थे

इतना मुश्किल भी नही था बैठकर आपस में
हम गलतफहमियों के दौर से उभर सकते थे

लिखते तुम भी अगर बेचैन किताबे महोब्बत
तुम्हारे हमारी तरह जज्बात निखर सकते थे 

Tuesday 7 July 2015

मैं उन्ही को चाहता हूँ जो मुझको चाहते है

मैं उन्ही को चाहता हूँ जो मुझको चाहते है
वरना बाकी लोग तो जानकारों में आते है

रिश्ते हो या पौधे हम लगाकर छोड़ दे तो
न संभालने की सूरत में वो सूख जाते है

किरदार की फालतू नुमाइश ना कर दोस्त
आप क्या है ये आपके संस्कार बताते है

क़र्ज़ मांगते है हमसे जो पिछले जन्म का
वो किसी न किसी बहाने जरूर टकराते है

आधी रात को मदद का दावा करने वाले
दिन के उजालो में मज़बूरियां गिनवाते है

मत परदेश में कमाने भेज मुझे तकदीर
बच्चे मेरे अभी बहुत जियादा तुतलाते है

इबादत हो जाती है जिनकी महोब्बत बेचैन
वो जीते जी किसी को भूल नही पाते है

Monday 6 July 2015

झूठी हां में हां कभी मिलाता नही हूँ



झूठी हां में हां कभी मिलाता नही हूँ 
मैं इसलिए हर एक को भाता नही हूँ 

लड़ाईयां क्यूँ लड़ूं मैं हरेक तबके की 
आदमी हूँ अदना सा विधाता नही हूँ 

ख़ामोशी से लगा हूँ अपने मकसद में 
ये करूंगा वो करूंगा चिल्लाता नही हूँ 

आज बेशक बिरादरी संग नही है मेरे 
यह अफ़सोस मैं कभी मनाता नही हूँ 

जिनपे बहस का कोई अर्थ नही होता  
मैं मसले वो कभी भी उठाता नही हूँ 

जो दिल में भी एक दिमाग रखते है 
मैं उन लोगो के समझ आता नही हूँ 

हाँ थोड़ा बहुत बेचैन कमीना हूँ मैं भी 
नाता ख़ुदग़र्ज़ो के संग निभाता नही हूँ 

Sunday 5 July 2015

यूं सबके दर्द को अपनी आह ना दो

यूं सबके दर्द को अपनी आह ना दो
पछताओगे बिन मांगे सलाह ना दो

वक्त के साथ मिटती है तो मिटने दो
धुंधली यादों को ज्यादा पनाह ना दो

अब तो ख्यालों की चोरी खूब होती है
हर शेर पर नए शायर को वाह ना दो

कुछ वज़ूद के लिए भी बचाकर रखो
अपने मन की कभी सारी थाह ना दो

जैसे की अधेड़ उम्र की महोब्बत बेचैन
कदमो को बिन मंज़िल की राह ना दो

Thursday 2 July 2015

कुचलकर रिश्तों को लगे है दौलत कमान में

किसी का बुरा नही करता कभी खुदा जमाने में
वो तो लगा है आदमी ही आदमी को मिटाने में

ये कैसी भूख सवार हो गई है हमारे जहन पर
कुचलकर रिश्तों को लगे है दौलत कमान में

उसी दिन से हो गया था बनवास संबधो को
बेटा बैठने लगा था बाप के जबसे सिरहाने में

जबकि मौत सबको आनी है हो राजा या रंक
फिर क्यूँ लगे है एक दूजे को नीचा दिखाने में

गुज़रती उमर पर सोचो कभी बैठ तन्हाई में
रहेंगे याद किस किसको हम किस बहाने में

कोई अपना है तो इशारो में ही समझ जायेगा
ऊर्जा मत गँवाओ फालतू चीखने चिल्लाने में

जिन्दा है तो जिन्दा है मरे तो मर ही जायेंगे
बात छोटी बेचैन बड़ी है समझने समझाने में






कदर वक्त पर न तो हुनर अपाहिज हो जाता है

ये सच है देर सवेर मेहनत रंग लाती है लेकिन
कदर वक्त पर न तो हुनर अपाहिज हो जाता है

बड़ी बड़ी बातें ही होती है बड़े काम नही होते है
टकरा कर हकीकत से जरूरतमंद चिल्लाता है

अफ़सोस से कही ज्यादा उनपे हैरत हो रही है
समाज सेवा से जिनका आज सीधा नाता है

सियासत-ओ-कलाकारी ही फ़क्त ऐसे फिल्ड है
उम्र के साथ साथ ही जिसमे निखार आता है

आज दौलत के बूते पर सब कुछ तो हो रहा है
हो खुदा का या सरकारी निज़ाम आंसू बहाता है

मनोरंजन की आड़ में संस्कृति से रेप हो रहा है
आज का गीत संगीत युवाओ को बरगलाता है

ना मोदी खरा उतरा न फेयर लवली खरी उतरी
बेचैन कई जुमलों पर आवाम ठहाके लगाता है


Tuesday 30 June 2015

जिंदगी क्या है ये तो वक्त ही समझाता है

संबधों का निचोड़ तभी निकलकर आता है
आदमी जब हर एक तरफ से घिर जाता है

किसी के समझाने से समझ नही आती है
जिंदगी क्या है ये तो वक्त ही समझाता है

जहाँ हौंसले से बड़ा कद ख्वाईश का होगा
नाकामी का अंदेशा वही पर मुह उठाता है

सुरक्षा चक्र दुआओ का उन्हें घेरे रखता है
जिन लोगो के जिन्दा पिता और माता है

उसके व्यवहार में झूठ का तड़का मिलेगा
बात बात पर जो आदमी कसमे खाता है

मेहनत से कतराया हुआ नाकारा मुफ़लिस
अक्सर बाप दादाओ की दौलत गिरवाता है

ना होती तवायफें तो सुखनवर भी ना होते
आपस में मेल इनका दर्द-ओ-फन खाता है

सब ले रहे है अपने अपने हिस्से की सांसे
बेचैन कौन किसका यहाँ भाग्य विधाता है 

Sunday 21 June 2015

फादर्स डे पर मेरी और से ,,,



मुझे अपनी और जमाने की औकात समझ में आ गई
बाउजी क्या गए दुनिया से कायनात समझ में आ गई

मैं अब अनसुनी नही करता हूँ हो बात कोई भी बाउजी
क्यूँ पाँव दबाते वक्त मारी थी वो लात समझ में आ गई

देने लगी है जब से पहरा मेरे सिरहाने पर जिम्मेदारियां
सचमुच कितनी लम्बी होती है रात समझ में आ गई

मेरा इससे जियादा ज्ञान बताओ क्या बढ़ेगा दुनिया का
यार प्यार और रिश्तेदारो की भी जात समझ में आ गई

अच्छे बुरे की समझ बेचैन लगभग आने लगी है क्यूकी
अब बाउजी की झिड़कियों भरी हर बात समझ में आ गई

Saturday 20 June 2015

आदमी जब तक सच को निंगलता नही है

आदमी जब तक सच को निंगलता नही है
उसके भरम का हिमालय पिंघलता नही है

बुज़ुर्गो की दुआ और राय बेहद लाज़मी है
वरना सकूँ का पौधा फूलता फलता नही है

बस इतना ही पढ़ा देखा आज तलक मैंने
असर मुफ़लिस की हाय का टलता नही है

मानो तो दामाद बेटो से बढ़कर चैन देता है
किसने कहा बेटियो से वंश चलता नही है

टाइमपास होता है जिनके प्यार का टोटल
उनका जुदाई में कभी मन मचलता नही है

जब तक न पहुंचे जरुरतमंदो तक रौशनी
अपनी मर्ज़ी से आफताब भी ढलता नही है

जिंदगानी धोखा नही देती सुख से मरता है
जो आदमी रिश्तो को कभी छलता नही है

कमीनेपन का कोर्स पूरा होता नही बेचैन
लीडर जब तलक पार्टिया बदलता नही है



Wednesday 17 June 2015

अपना अपना राग अपना अपना व्यवहार है सबका
मैं क्यूँ परेशान होऊँ अपना अपना विचार है सबका

कोई पैदल तो कोई गाडी में कोई जहाज में चलता है
वक्त और मौके के मुताबिक़ जीवन रफ़्तार है सबका

मैं अव्वल तो किसी को अपना रकीब मानता ही नही
कोई मुझे माने तो माने सोच का अधिकार है सबका

खीज अपनी नाकामी की किसलिए उतारूँ किसी पर
किसी से शिकायत नही व्यवहारिक प्यार है सबका

कोई क्यूँ माने तुम्हारी महोब्बत ही पाक महोब्बत है
खुद की नज़र में दुनिया से अलग दिलदार है सबका

हर एक शख्स बंधा हुआ है अपने संबधो के दायरे में
दोस्तों दखल ना करो अपना अपना संसार है सबका

एक हद तक तो साथ निभाएगा निभाने वाला बेचैन
उसके बाद नही यहाँ अपना अपना परिवार है सबका 

Monday 15 June 2015

जरूरत बड़े से बड़े को भी झुका देती है


जिंदगी भरम का जब पर्दा उठा देती है
जरूरत बड़े से बड़े को भी झुका देती है  

मैंने देखी है संबधो की गहराई नापकर 
उम्मीदों का मज़बूरी बहम मिटा देती है 

सदा रखना चाहिए याद चुगलखोरों को 
इक जरा सी चिंगारी आग लगा देती है 

रिश्तो की फ़ौज भी उतना दे नही सकती 
जितना प्यार औलाद को एक माँ देती है 

यकीन नही होता जिनको खुदी पर बेचैन 
उन सवारों को कश्तियाँ खुद डूबा देती है 















Saturday 13 June 2015

उसूलो की बात तो करना बहुत आसान है

उसूलो की बात तो करना बहुत आसान है
निभाओ तो जानो खुद में कितनी जान है

अपनी बर्बादी की झूठी खबर फैलाकर देखे
अपनेपन का रिश्तेदारो पर जिसे गुमान है

यकीं है मेरे वज़ूद पर तो चली आ मंज़िल
मेरा बंद गली में एक कच्चा सा मकान है

बात तो जब है जब जनून को दिशा मिले
वरना तो हर सख्स के सीने में तूफ़ान है

नादान ना-समझ जिसे अहसास बोलते है
उसी वजह सैकड़ो जिंदगानियां हलकान है

अपनी दिक़्क़तों पर इतना दुखी मत होवो
हर सख्स किसी न किसी कारण परेशान है

हर शै से भारी बोझ है जेब का खाली होना
मन बेचैन हलका रखना पैसे को वरदान है


Wednesday 10 June 2015

मुमकिन नही कामयाबी बुरे दौर के बिना



ज़िंदगी खामोश है ख्वाबो के शोर के बिना 
मुमकिन नही कामयाबी बुरे दौर के बिना

अपने जहन में बिठा लो ये बात नौजवानो 
बशर कुछ भी नही साहस की डोर के बिना 

तू फ़िज़ूल बहस मत कर दिल के चौकीदार 
चोरी हो नही सकती कही भी चोर के बिना 

मालूम है अंधेरो को इसलिए तो गरूर में है 
दिन निकल नही सकता कभी भोर के बिना 

जहाँ भर की ख़ाक छानकर मैं लौट आता हूँ 
दिल लगता नही बेचैन मेरा इंदौर के बिना 


Sunday 7 June 2015

तीन पैग तक तो उदासी महबूबा को बुलाती है

तीन पैग तक तो उदासी महबूबा को बुलाती है
उसके बाद केवल दिवंगत माँ की याद आती है

हदें पहचानते है मेरे पीने की शहर के ठेकेदार
इसलिए तो मयखानों में पर्चियां चल जाती है

शराबखोरी से मुझको बचपन से ही नफरत है
बोतल देखते ही रूह खत्म करो बुदबुदाती है

करोड़ो का कर्ज़ा मगर फिर भी मौज मस्तियाँ
समझ नही पाया कुछ लोगो की कैसी छाती है

किस मंडी में ले जाऊं अपनी बेबसी के गुलाब
यहाँ हर दुकान से खुदगर्ज़ी की बू ही बू आती है

ख़ुदकुशी की कोशिश वज़ूद ने कई बार की है पर
मेरे संस्कारो की सीख अक्सर आड़े आ जाती है

दीदार की भूख ने जिनको भिखारी बना दिया है
वो जानते है रूह अनाज नही अहसास खाती है

कही और जाकर बोलता है मेरी रगो का नशा
बेचैन तन्हाईयाँ मेरी इसीलिए तो मुस्कुराती है 

रूह की बुनियाद हिला देगी ये लम्बी उदासी

तू सचमुच जुड़ा है गर मेरी जिंदगी के साथ
तो कबूल कर मुझको मेरी हर कमी के साथ

रूह की बुनियाद हिला देगी ये लम्बी उदासी
हमेशा मत रहा कर आँखों की नमी के साथ

इससे ज्यादा यकीं बाप क्या करे रिश्तो पर
बेटी विदा कर देता है एक अजनबी के साथ

बाऊं जी मरने से पहले मुझे बताकर गए थे
समय शतरंज खेलता है हर आदमी के साथ

परेशान मत हो बेचैन इश्क और तिज़ारत में
जीते जी पेश आती है दिक्क़ते सभी के साथ







Saturday 6 June 2015

सचमुच मैगी जैसी ही तो थी उसकी महोब्बत

सचमुच मैगी जैसी ही तो थी उसकी महोब्बत
कैरियर की सेहत जिसने बिगाड़ी बरसो तक

मौके हज़ार दिए उसके मिजाज ने हकीकत के
मगर रहे हम भी अनाड़ी के अनाड़ी बरसो तक

जिस रुट पर हो हर एक जंक्शन जफ़ाओ का
कोई कितना खींचे वफ़ा की गाडी बरसो तक

सरकार-ओ-मौसम की साज़िश ने खदेड़ दिया
वरना खूब की थी हमने खेतीबाड़ी बरसो तक

जिम्मेदारियों ने घेर लिया हमको हरसू वरना
हम भी रहे है अहसास के खिलाड़ी बरसो तक

कैसे भूल पायेगा खंडहर जिंदगानी का बेचैन
जिसने ईंटे मेरे भरोसे की उखाड़ी बरसो तक 

पेड़ के जैसी जिंदगी किरदार में लाओ दोस्तों



हर साल अपना जन्मदिन यूं मनाओ दोस्तों
कम से कम एक पौधा जरूर लगाओ दोस्तों

सब आने वाली पीढ़िया सेहतमंद हो जाएगी
पेड़ के जैसी जिंदगी किरदार में लाओ दोस्तों

शौक है अगर गाड़ियां छाँव में खड़ी करने का
सूख रहे पेड़ पौधों तक पानी पहुँचाओ दोस्तों

हुआ हरा भरा पर्यावरण तो पंछी दुआएं देंगे
इसलिए कहता हूँ दुआ मत ठुकराओ दोस्तों

बेशक तुलसी लगा लो तुम आँगन में बेचैन
जंगली झाड़ यानी केक्टस मत उगाओ दोस्तों 

Friday 5 June 2015

जब भी अपनी जड़ो से कोई पेड़ दूर हो जाता है

जब भी अपनी जड़ो से कोई पेड़ दूर हो जाता है
शाख का हर पत्ता सूखने पर मज़बूर हो जाता है

सबसे पहले माँ बाप की निगाहो में खटकता है
अपनी जवानी पर जब बेटे को गरूर हो जाता है

किसी वक्त भी कर सकती है गलतफहमी वार
दो लोगो के बीच प्यार जब भरपूर हो जाता है

हार न माने जिद्द पर अड़ा रहे अगर मेहनतकश
फिर मुकदर को भी दोस्त सब मंज़ूर हो जाता है

छोड़ ही देना चाहिए उनको उनके हाल पर बेचैन
जिनके दिमाग में बे वजह का फ़ितूर हो जाता है




Wednesday 3 June 2015

पकड़ी जानी थी कभी तो कलाकारी उसकी








अव्वल तो कुछ हम दोनों के बीच था ही नही
कुछ था तो उसे समेट ले गई हुश्यारी उसकी

जबकि दोस्ती में ही इतनी तकलीफ दे गया
फिर क्या करता मैं पाकर रिश्तेदारी उसकी

फिल्म दो घंटे की होती है दो साल की नही
पकड़ी जानी थी कभी तो कलाकारी उसकी

तज़ुर्बो की फेहरिस्त में ये तज़ुर्बा और सही
ना हज़म हुई ना भुला सकूँगा यारी उसकी

मेरी सादा मिजाजी से कही मेल नही खाती
आदतें समझ गया हूँ मैं बेचैन सारी उसकी 

असमंजस का दौर है और मैं आहे भर रहा हूँ

इन दिनों दर्द की तलहटी से होके गुज़र रहा हूँ
नमालूम मैं बिखर रहा हूँ या की निखर रहा हूँ

मंज़िल मेरे करीब है या मेरे बहम का कोहरा
असमंजस का दौर है और मैं आहे भर रहा हूँ

फिर भी शक भरी निगाहो से लोग देख रहे है
जबकि ईमानदारी से अपना कर्म कर रहा हूँ

शोहरत जान ना ले कही मज़दूर का बेटा हूँ
मददगारों के साथ से इसलिए भी डर रहा हूँ

अजीब सा धोखा है जीने की आरज़ू में बेचैन
रोजाना एक दिन का हिसाब करके मर रहा हूँ

आदतें समझ गया हूँ मैं बेचैन सारी उसकी

अव्वल तो कुछ हम दोनों के बीच था ही नही
कुछ था तो उसे समेट ले गई हुश्यारी उसकी

जबकि दोस्ती में ही इतनी तकलीफ दे गया
फिर क्या करता मैं पाकर रिश्तेदारी उसकी

फिल्म दो घंटे की होती है दो साल की नही
पकड़ी जानी थी कभी तो कलाकारी उसकी

तज़ुर्बो की फेहरिस्त में ये तज़ुर्बा और सही
ना हज़म हुई ना भुला सकूँगा यारी उसकी

मेरी सादा मिजाजी से कही मेल नही खाती
आदतें समझ गया हूँ मैं बेचैन सारी उसकी

Monday 1 June 2015

ढल जाएगी एक दिन जिंदगी ख़ाक में

दो जून की रोटी कमाने की फिराक में
ढल जाएगी एक दिन जिंदगी ख़ाक में

रिश्ता कोई भी हो तार रूह से जुड़ते है
अहसास को कोई भी ना ले मज़ाक में

लब्ज़ो की धमक दिमाग से टकराती है
बोलता है जो भी कोई आदमी नाक में

उफ़ तरक्की में डूबे नए युग के हादसे
गिद्ध की तरह रहते है हरदम ताक में

सब हर्फो की जादूगरी है वरना बेचैन
कोई फर्क नही बेशर्म और बेवाक में

Friday 29 May 2015

कभी हरियाणा में आ प्यार सिखाऊंगा तुझे

मर्दानी मह्बूबाओ से रूबरू करवाऊंगा तुझे
कभी हरियाणा में आ प्यार सिखाऊंगा तुझे

स्वीट डिश की परिभाषा समझ आ जाएगी
गुलगुले माँ के बनाये जब खिलाऊंगा तुझे

इश्क में सबकुछ जायज़ यहाँ क्यूँ नही होता
मर्यादाओ की एक फेहरिस्त दिखाऊंगा तुझे

लट्ठ गड़ने के पीछे जो दास्ताँ है मेरी जान
किसी रोज फुरसत में वो भी सुनाऊंगा तुझे

हरियाणवी पॉप जिसने मुंबई में भी बजवाया
आ उस के डी सिंगर से भी मिलवाऊंगा तुझे

ना मुराद को संदेश इतना है बस मेरी ओर से
मैं तो मरने के बाद भी मेरी जान चाहूंगा तुझे

जब तक नही सुलझती उलझने जिंदगानी की
बेचैन शायद ही अपना वक्त भी दे पाऊंगा तुझे

















Thursday 28 May 2015

अगले जन्म देखूँगा बकाया प्यार के कसमे वादों को

अगले जन्म देखूँगा बकाया प्यार के कसमे वादों को
फिलहाल जानने में उलझा हूँ मैं जिंदगी के इरादों को

बे- इज़ाज़त बे-मतलब कही पर भी तो चली आती है
सोच में रहता हूँ मैं दिन भर गोली मार दूँ यादों को

सामने वाले को खुद जैसा समझने की खता करते है
लोग इसलिए सताया करते है मासूम शरीफजादो को

मेरे सामने पैरवी शराफत की कोई न करे तो अच्छा है
मैं पिंघलते देख चूका हूँ  न जाने कितने फौलादो को

मुझमे इक यही बस सबसे बड़ी खामी छिपी है बेचैन
चाहते हुवे भी दबा नही पाता अहसास के उन्मादों को

Monday 25 May 2015

चूजे अन्डो से निकलते ही उड़ान रखने लगे है

उफ़..अपनी उम्र से बढ़कर ज्ञान रखने लगे है
चूजे अन्डो से निकलते ही उड़ान रखने लगे है

क्या ऐसी तैसी करवाये तज़ुर्बो में लिपटे लोग
गली गली में नौसिखिये पहचान रखने लगे है

जो ज्ञान कच्ची उम्र में खतरे से खाली नही है
बच्चे उन्ही बातों पर अपने कान रखने लगे है

दो लोगो ने मोहल्ले भर में तारीफ़ क्या कर दी
सीखना छोड़ कई लोग योगदान रखने लगे है

उम्रदराज अपने महबूब को क्या कहेगा बेचैन
जब बच्चियों का नाम बच्चे जान रखने लगे है







Wednesday 20 May 2015

कुत्ते भोकते रहते है हाथी निकल जाते है

मोबाइल हो या रिश्ते नेटवर्क लाज़मी है
वरना लोग गेम खेलना शुरू हो जाते है

नए युग के अहसास का इतना टोटल है
लोग हालात तोलने के बाद बतियाते है

जो भुगतभोगी है वो अच्छे से जानते है
कलाकारों के खेमे कैसे जलवे दिखाते है

लाख मीठा बोले लेकिन पकड़े ही जाते है
जो तल्ख़िया को अपने मन में छिपाते है

बरपते हंगामे पर बेचैन इतना ही कहूँगा
कुत्ते भोकते रहते है हाथी निकल जाते है


Sunday 17 May 2015

मुझे जानते है वो जिनकी आँखों में शर्म है

उनकी तादाद में दम है मेरे जज्बे में दम है
अब देखना है ईमानदारी किस ओर कम है

कोरी हवाबाजी से मंज़िल पा लेंगे एक दिन
पैसा फूंकने वालो को ना जाने क्यूँ भरम है

तंज़ सुनकर मैं इसलिए निराश नही होता
मुझे जानते है वो जिनकी आँखों में शर्म है

ये परेशानिया ये दिक्क़ते ये बेवजह तनाव
कहो किसकी जिंदगी में नही पेचो खम है

साज़िसे मेरा कुछ भी बिगाड़ नही सकती
दोस्तों जब तक मेरे इन हाथों में कलम है

आखरी सांस तक फिर भी लड़ूंगा वक्त से
जबकि जानता हूँ मेरी परिस्थियाँ विषम है

जिन्हे होना चाहिए संग वही साथ नही है
यही सोचकर बेचैन आँखे थोड़ी सी नम है






नेता नादानों की भीड़ से प्रोफाइल बनाते है

वो जो सियासत में अपना हुनर दिखाते है 
सब कलाकारों से लोग उन्हें बड़ा बताते है 


थोड़ा सा सावधान रहना अक्लमंद दोस्तों 
नेता नादानों की भीड़ से प्रोफाइल बनाते है 

सड़क के साइन बोर्ड की लिखावट झूठ नही 
इक जरा सी चूक होते ही हादसे हो जाते है 

कटी उंगली के दर्द का जिन्हे अहसास नही 
वो हार्ट आपरेशन के गज़ब नुस्खे सुझाते है 

मुझको अफ़सोस है तो बस इतना है बेचैन 
कुछ बड़े बुज़ुर्ग कुछ बच्चों को बरगलाते है  











Saturday 16 May 2015

कुछ रिश्तों को इस जन्म में फिर नही मिलूंगा

जब से भीड़ बढ़ी है यारो की तन्हा हो गया हूँ
जैसे ज़ख्मी अहसास के रूबरू खड़ा हो गया हूँ

नामालूम कैसी कसक है नए युग के रिश्तों में
सोच सोचकर मन में ही पागल सा हो गया हूँ

साया माँ बाप का जिस रोज से उठा है सर से
दरअसल उसी रोज से मैं कुछ बड़ा हो गया हूँ

मिली है जिस रोज से अच्छे लोगो की सोहबत
जियादा नही थोड़ा बहुत मैं भी भला हो गया हूँ

कुछ रिश्तों को इस जन्म में फिर नही मिलूंगा
बेचैन उनके खातिर मैं सचमुच फना हो गया हूँ

Friday 8 May 2015

प्यार में वफ़ा ज्यादा गज़ब की अच्छी बात नही

हरेक वक्त दीवानगी मज़हब की अच्छी बात नही
खिल्ली उड़ाना किसी के रब की अच्छी बात नही

ईमानदारी के चक्कर में मुह की खानी पड़ती है
प्यार में वफ़ा ज्यादा गज़ब की अच्छी बात नही

शेर को सवा शेर ही टकराये है इतिहास गवाह है
हर बात पे टाँगे खींचना सबकी अच्छी बात नही 

कमी है तो बता वरना उसे वक्त जरूर बताएगा
कलाकार को देना झूठी थपकी अच्छी बात नही

मस्ती खोदकर जड़ो को उनमे आलस भर देगी
बेचैन आदत ये रोजाना पब की अच्छी बात नही

Friday 13 March 2015

इस युग का लछमन कहाँ राम का होता है

वक्त पर काम आये तो काम का होता है
वरना पैसा और रिश्ता नाम का होता है

ये मैं नही कहता तज़ुर्बेकारो ने कहा है
अफसर केवल भूखा सलाम का होता है

बिके तो महोब्बत में नही करोड़ो कम है
किसने कहा कलाकार दाम का होता है

बेटा प्यार की गुठली जब मन करे चूस
अब तो हर एक सीज़न आम का होता है

इतना कहके भर आई बड़े भाई की आँखे
इस युग का लछमन कहाँ राम का होता है

उसकी हंसी का मन पर उतना ही असर है
दर्द पर जितना असर झंडूबाम का होता है

तकलीफ जिसको दे भर भर पैग बेचैन
वो बताएगा क्या मज़ा जाम का होता है