Friends

Sunday 30 October 2011

दुश्मन ही मेरा हिसाब रखते




मुझे मुनीमों की क्या जरूरत
दुश्मन ही मेरा हिसाब रखते

अपने जरूरी काम भूलकर भी
याद मेरा वो हर ख्वाब रखते
हो चाहे चुगली बनाम बेशक
वो चर्चा मेरी बेहिसाब रखते
नशे की हद तक गुजरते है वो
जो जाम के संग कबाब रखते
ना यादें इतना महकती उनकी
ना किताबों में जो गुलाब रखते
निहाल होते डूबकर दोनों बेचैन
जो नसीब में कोई चनाब रखते

No comments: