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Monday 5 December 2011

कोई माँ जैसा नही खुली चुनौती है

रिश्तों के समन्दर में बहुत से मोती है
कोई माँ जैसा नही खुली चुनौती है

बज्म की असली जान तो वो बन बैठा
चुगली जिस शख्स के नाम पर होती है

जीते जी ना कम होगा यह खजाना
दर्द की दिल के पास तगड़ी फिरौती है


सुबकियों की भाषा तो वही समझेगा
अन्देरे में जिसकी आँखे नूर खोती है

सोचकर देखो मेरे नौजवान यारों
नई पीढ़ी औलाद खातिर क्या बोती है

होगा तेरा भी नाम इक दिन बेचैन
शेरों-सुखन किसके बाप की बपौती है

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