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Monday 12 December 2011

होश वालों से पूछो उन्हें कब शर्म आती है

शौक नही है पीने का मजबूरी पिलाती है
मूड़ बनता है तब जब उसकी याद आती है

दर्दे-दिल बर्दाश्त करना सबके बस का नही
इसे वो समझेगा लोहे की जिसकी छाती है

दगा देता है जब यार प्यार और रिश्तेदार
दवा के भेष में शराब ही साथ निभाती है

उस दिन तो दोस्तों हर हाल में जाम लगाता हूँ
जब लड़ाई के अंदेशे से बाई आँख फडफडाती है

खूब लिहाज़ बरतता हूँ पीने के बाद बेचैन
होश वालों से पूछो उन्हें कब शर्म आती है


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