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Tuesday, 27 November 2012
Monday, 26 November 2012
तुझसे तो कही बेहतर अंगूर की बेटी निकली
तुझसे तो कही बेहतर अंगूर की बेटी निकली
ढलते ही शाम देखकर मुझको मुस्कुरा देती है
जितना भी अहसान मानू कम है तन्हाइयों का
खूब रोने के बाद अश्को को सूखा देती है
दोस्तों बचपन से नफरत थी मुझको मयकशी से
उसकी याद मगर नफरतों को भूला देती है
आज मेरी तरफ है तो कल उसकी ओर होगा
यादें नम्बर से रोने का सिलसिला देती है
मैंने देखी है सच्ची महोब्बत में वो ताकत
तडफ तो वजूद की जडो तक को हिला देती है
इतनी पी ले बेचैन की हद की हद हो जाए
सुना है बेहोशी में मौत अपना बना लेती है
ढलते ही शाम देखकर मुझको मुस्कुरा देती है
जितना भी अहसान मानू कम है तन्हाइयों का
खूब रोने के बाद अश्को को सूखा देती है
दोस्तों बचपन से नफरत थी मुझको मयकशी से
उसकी याद मगर नफरतों को भूला देती है
आज मेरी तरफ है तो कल उसकी ओर होगा
यादें नम्बर से रोने का सिलसिला देती है
मैंने देखी है सच्ची महोब्बत में वो ताकत
तडफ तो वजूद की जडो तक को हिला देती है
इतनी पी ले बेचैन की हद की हद हो जाए
सुना है बेहोशी में मौत अपना बना लेती है
Sunday, 25 November 2012
शायद ज्यादा पी ली है आज शराब दोस्तों
शायद ज्यादा पी ली है आज शराब दोस्तों
कमबख्त हो रही हालत कुछ खराब दोस्तों
क्यूं टिक नही रहे है साले पैर जमीन पर
मुझको जाना है करने कुछ हिसाब दोस्तों
सांसो की तरह जुबा भी लडखडा उठी है
सुबह दूंगा सब सवालों का जवाब दोस्तों
उसकी खूबियों का जिक्र अब क्या करू भला
उसका पसीना था खुशबू-ए-गुलाब दोस्तों
रहने लगेगी हर घड़ी आँखे सुर्ख तुम्हारी
मत देखना कभी महोब्बत में ख्वाब दोस्तों
दम कल निकलता बेचैन अब ही निकल जाये
नही चाहिए लम्बी उम्र का खिताब दोस्तों
कमबख्त हो रही हालत कुछ खराब दोस्तों
क्यूं टिक नही रहे है साले पैर जमीन पर
मुझको जाना है करने कुछ हिसाब दोस्तों
सांसो की तरह जुबा भी लडखडा उठी है
सुबह दूंगा सब सवालों का जवाब दोस्तों
उसकी खूबियों का जिक्र अब क्या करू भला
उसका पसीना था खुशबू-ए-गुलाब दोस्तों
रहने लगेगी हर घड़ी आँखे सुर्ख तुम्हारी
मत देखना कभी महोब्बत में ख्वाब दोस्तों
दम कल निकलता बेचैन अब ही निकल जाये
नही चाहिए लम्बी उम्र का खिताब दोस्तों
उस पर लिखे एक एक शेर हमे रुलाते है
दिल में यादों के नश्तर कुछ यूं सुई चुभाते है
उस पर लिखे एक एक शेर हमे रुलाते है
अश्क नही आँखों से अब लहू टपकने लगा है
क्या होगा हम बिगडती हालत से घबराते है
रकीब को भी ना मिले ऐसी तडफ-ओ-बेबसी
हम सजदे में दिन रात यही दुआ फरमाते है
मुझको तो इल्म नही है अपनी हालत का मगर
मुश्किल बचेगा देखने वाले ही बताते है
इश्क है तो बुरे ख्याल भी आयेंगे बेचैन
मानता नही जबकि मन को खूब समझाते है
उस पर लिखे एक एक शेर हमे रुलाते है
अश्क नही आँखों से अब लहू टपकने लगा है
क्या होगा हम बिगडती हालत से घबराते है
रकीब को भी ना मिले ऐसी तडफ-ओ-बेबसी
हम सजदे में दिन रात यही दुआ फरमाते है
मुझको तो इल्म नही है अपनी हालत का मगर
मुश्किल बचेगा देखने वाले ही बताते है
इश्क है तो बुरे ख्याल भी आयेंगे बेचैन
मानता नही जबकि मन को खूब समझाते है
Saturday, 24 November 2012
या तो शराब में तैरकर तेरा गम निकलेगा
या तो शराब में तैरकर तेरा गम निकलेगा
वरना तब तक पीऊंगा ना जब तक दम निकलेगा
मेरे बाद, जमाने के साथ तुम भी देखोगे
फिर कभी ना तेरी जुल्फों-सोच का खम निकलेगा
—वरना तब तक पीऊंगा ना जब तक दम निकलेगा
मेरे बाद, जमाने के साथ तुम भी देखोगे
फिर कभी ना तेरी जुल्फों-सोच का खम निकलेगा
इसलिए बैठ गया हूँ साँझ ढलते ही पीने
आखरी जाम के साथ में रंजो-अलम निकलेगा
आज काबू से बाहर हो चला है दर्दे बेबसी
शायद इस दिल के धडकने का भ्रम निकलेगा
बेचैन रूह को चाँद सी ठंडक बख्शने वाले
नही सोचा था तेरा लहजा यूं गरम निकलेगा
खम= उलझन
आखरी जाम के साथ में रंजो-अलम निकलेगा
आज काबू से बाहर हो चला है दर्दे बेबसी
शायद इस दिल के धडकने का भ्रम निकलेगा
बेचैन रूह को चाँद सी ठंडक बख्शने वाले
नही सोचा था तेरा लहजा यूं गरम निकलेगा
खम= उलझन
बहर-ओ-वजन में ख्याल कम तोलता हूँ
आज मेरे एक शायर दोस्त के चेले से तीखी गुफ्तगू हुई तो लिखने पर मजबूर हुआ ..........
बहर-ओ-वजन में ख्याल कम तोलता हूँ
मैं तो सीधे सीधे मन की बात बोलता हूँ
रखकर गुरेज हर्फों की जादूगरी से
सादगी का शेरो में रंग घोलता हूँ
कुछ भी तो नही रखता दिल में छिपाकर
ज़ज्बात की गाँठ सरेआम खोलता हूँ
उस्तादों सी संजीदगी नही है मुझमे
मैं शागिर्दों की तरह मस्त डोलता हूँ
छेड़ता हूँ बेचैन फक्त दिलजलो को
खुशहालों का कलेजा कम छोलता हूँ
बहर-ओ-वजन में ख्याल कम तोलता हूँ
मैं तो सीधे सीधे मन की बात बोलता हूँ
रखकर गुरेज हर्फों की जादूगरी से
सादगी का शेरो में रंग घोलता हूँ
कुछ भी तो नही रखता दिल में छिपाकर
ज़ज्बात की गाँठ सरेआम खोलता हूँ
उस्तादों सी संजीदगी नही है मुझमे
मैं शागिर्दों की तरह मस्त डोलता हूँ
छेड़ता हूँ बेचैन फक्त दिलजलो को
खुशहालों का कलेजा कम छोलता हूँ
Thursday, 22 November 2012
तू कितना घटिया था ख्याल दिल से मरने नही दूंगा
तेरी बेवफाई के जख्मो को कभी भरने नही दूंगा
तू कितना घटिया था ख्याल दिल से मरने नही दूंगा
थूकता रहूँगा सुबह और शाम तेरी तस्वीर पर
तेरी इबादत अब धडकनों को करने नही दूंगा
ले लेकर तेरा नाम बहुत रो चुका बिलख-बिलखकर
आइन्दा आंसुओ को दिन रात झरने नही दूंगा
निकाह मौत से करना पड़ा तो कर लूँगा चुपचाप
अब दर्द-ए-जुदाई को जियादा निखरने नही दूंगा
बेचैन तेरे साथ गुज़ारे हुवे लम्हों की कसम
तुम्हारी यादों को कदम ज़हन में धरने नही दूंगा
तू कितना घटिया था ख्याल दिल से मरने नही दूंगा
थूकता रहूँगा सुबह और शाम तेरी तस्वीर पर
तेरी इबादत अब धडकनों को करने नही दूंगा
ले लेकर तेरा नाम बहुत रो चुका बिलख-बिलखकर
आइन्दा आंसुओ को दिन रात झरने नही दूंगा
निकाह मौत से करना पड़ा तो कर लूँगा चुपचाप
अब दर्द-ए-जुदाई को जियादा निखरने नही दूंगा
बेचैन तेरे साथ गुज़ारे हुवे लम्हों की कसम
तुम्हारी यादों को कदम ज़हन में धरने नही दूंगा
Wednesday, 21 November 2012
वो घटियापन की सब हदों को पार किये बैठा था
मेरा दिल जिस शख्स का इंतजार किये बैठा था
वो घटियापन की सब हदों को पार किये बैठा था
समझता था मैं जिसको जमाने में सबसे जुदा
बदलकर नाम अपने दर्जनों यार किये बैठा था
बेवकूफी में बहाए जिस बदजात के लिए अश्क
ना जाने मुझसे कितनो को बीमार किये बैठा था
मन झूमता रहता था जिस अहसास के आंगन में
उस दर्द के रिश्ते को वो शर्मसार किये बैठा था
शुक्र है मिल गई रिहाई वक्त के रहते हुवे बेचैन
वरना झूठ से रूह को गिरफ्तार किये बैठा था
वो घटियापन की सब हदों को पार किये बैठा था
समझता था मैं जिसको जमाने में सबसे जुदा
बदलकर नाम अपने दर्जनों यार किये बैठा था
बेवकूफी में बहाए जिस बदजात के लिए अश्क
ना जाने मुझसे कितनो को बीमार किये बैठा था
मन झूमता रहता था जिस अहसास के आंगन में
उस दर्द के रिश्ते को वो शर्मसार किये बैठा था
शुक्र है मिल गई रिहाई वक्त के रहते हुवे बेचैन
वरना झूठ से रूह को गिरफ्तार किये बैठा था
Tuesday, 20 November 2012
उधर देश के इधर दिल के हालात बिगड़े है
उधर देश के इधर दिल के हालात बिगड़े है
खुदा जाने क्या होगा दिन और रात बिगड़े है
देश को नेताओ ने दिल को सितमगर ने लूटा
फ़िक्र किसकी करू बुरी तरह ज़ज्बात बिगड़े है
चुटकला बनके रह गई है लगभग जिंदगी सबकी
आखिर किसलिए ज़िंदादिली के ख्यालात बिगड़े है
जवाब देने वाला क्या ऐसी तैसी करवाएगा
जब पूछने वाले के ही सवालात बिगड़े है
वक्त कैसे अच्छा आएगा उस शख्स का बेचैन
चोट खाकर जिसके मौजूदा लम्हात बिगड़े है
खुदा जाने क्या होगा दिन और रात बिगड़े है
देश को नेताओ ने दिल को सितमगर ने लूटा
फ़िक्र किसकी करू बुरी तरह ज़ज्बात बिगड़े है
चुटकला बनके रह गई है लगभग जिंदगी सबकी
आखिर किसलिए ज़िंदादिली के ख्यालात बिगड़े है
जवाब देने वाला क्या ऐसी तैसी करवाएगा
जब पूछने वाले के ही सवालात बिगड़े है
वक्त कैसे अच्छा आएगा उस शख्स का बेचैन
चोट खाकर जिसके मौजूदा लम्हात बिगड़े है
Saturday, 17 November 2012
पहली बार मन से बददुआ है तुम्हारे लिए बेचैन
तडफ में डूबे तेरे तोहफे पास रखता किसलिए
दे आया मौलवी को ताबीज-ए-ख़ास के बदले
यकीनन वो तन्हाई में एक रोज सुबकियां भरेंगे
जो ज़हर पिलाते है किसी को विश्वास के बदले
चलो छोडो अब ख़ाक डालों किसके साथ क्या हुआ
मैं ही जानता हूँ क्या मिला मुझे अहसास के बदले
यही मेहरबानी मांगी है दो जहाँ के मालिक से
मुझको दुश्मन दे देना ऐसे गम शनास के बदले
पहली बार मन से बददुआ है तुम्हारे लिए बेचैन
तुझको भी आंसू मिले सबसे इखलास के बदले
दे आया मौलवी को ताबीज-ए-ख़ास के बदले
यकीनन वो तन्हाई में एक रोज सुबकियां भरेंगे
जो ज़हर पिलाते है किसी को विश्वास के बदले
चलो छोडो अब ख़ाक डालों किसके साथ क्या हुआ
मैं ही जानता हूँ क्या मिला मुझे अहसास के बदले
यही मेहरबानी मांगी है दो जहाँ के मालिक से
मुझको दुश्मन दे देना ऐसे गम शनास के बदले
पहली बार मन से बददुआ है तुम्हारे लिए बेचैन
तुझको भी आंसू मिले सबसे इखलास के बदले
Friday, 16 November 2012
सजधज कर मेरी जान जब पटाखा बन जाती है
सजधज कर मेरी जान जब पटाखा बन जाती है
अनार सी चलती है फुलझड़ी सी खिलखिलाती है
मैं फुस्स की आवाज के साथ खामोश हो जाता हूँ
मुझे बम की तरह गुस्से में जब वो धमकाती है
...
अनार सी चलती है फुलझड़ी सी खिलखिलाती है
मैं फुस्स की आवाज के साथ खामोश हो जाता हूँ
मुझे बम की तरह गुस्से में जब वो धमकाती है
...
नाराजगी की सौ बात पर हकीकत तो यही है
मैं दीया हूँ उसका तो वो मेरी बाती है
मन में अँधेरा ना रहने का यही सबब है यारो
वो चिराग बन दिल की मुंडेरो पर झिलमिलाती है
मेरे हिस्से की खुशियाँ भी उसे ही मिले बेचैन
काश दिवाली पर दुआ अगर कबूल हो जाती है
See Moreमैं दीया हूँ उसका तो वो मेरी बाती है
मन में अँधेरा ना रहने का यही सबब है यारो
वो चिराग बन दिल की मुंडेरो पर झिलमिलाती है
मेरे हिस्से की खुशियाँ भी उसे ही मिले बेचैन
काश दिवाली पर दुआ अगर कबूल हो जाती है
Sunday, 11 November 2012
मार डालेगा मुझको शोर बम और पटाखों का
दिवाली बिन तेरे कैसे मनाऊंगा बता तो दे
क्या रोने से खुद को रोक पाऊंगा बता तो दे
मार डालेगा मुझको शोर बम और पटाखों का
मैं ऐसे में कहाँ खुद को छिपाऊंगा बता तो दे
...
क्या रोने से खुद को रोक पाऊंगा बता तो दे
मार डालेगा मुझको शोर बम और पटाखों का
मैं ऐसे में कहाँ खुद को छिपाऊंगा बता तो दे
...
नोचे है कलेजे को तेरा गम लम्हा दर लम्हा
मिठाइयां क्या सोचकर मैं खाऊंगा बता तो दे
दिखाना था यही दिन तो क्यूं नजदीक आया था
सचमुच कसूर अपना समझ जाऊंगा बता तो दे
तुझे नही भूल पाया हूँ मुझे अ भूलने वाले
क्या उम्र भर ना मैं याद आऊंगा बता तो दे
चैन बेचैन ने माँगा था कोई दौलत नही मांगी
क्या ढंग से मैं कभी मुस्कुराऊंगा बता तो दे
मिठाइयां क्या सोचकर मैं खाऊंगा बता तो दे
दिखाना था यही दिन तो क्यूं नजदीक आया था
सचमुच कसूर अपना समझ जाऊंगा बता तो दे
तुझे नही भूल पाया हूँ मुझे अ भूलने वाले
क्या उम्र भर ना मैं याद आऊंगा बता तो दे
चैन बेचैन ने माँगा था कोई दौलत नही मांगी
क्या ढंग से मैं कभी मुस्कुराऊंगा बता तो दे
लो जिंदगी मैं तो चला आज मिलने कज़ा से
अपना रस्ता अपनी मंजिल मुबारक हो तुझे
लो जिंदगी मैं तो चला आज मिलने कज़ा से
और ज्यादा सहन करना मेरे बस का नही
तंग आ गया हूँ तुम्हारी नखरीली अदा से
मिली इबादत के बदले में नरक की सजा
क्या कसूर था पूछूँगा मैं जाकर खुदा से
उसकी बेरुखी तो बाद में असर करती
दामन जला बैठा मैं अपनी ही वफा से
धरा रह गया जिंदादिली का ज़ज्बा बेचैन
लो हार गया मैं साँसे जिंदगी की जुआ से
लो जिंदगी मैं तो चला आज मिलने कज़ा से
और ज्यादा सहन करना मेरे बस का नही
तंग आ गया हूँ तुम्हारी नखरीली अदा से
मिली इबादत के बदले में नरक की सजा
क्या कसूर था पूछूँगा मैं जाकर खुदा से
उसकी बेरुखी तो बाद में असर करती
दामन जला बैठा मैं अपनी ही वफा से
धरा रह गया जिंदादिली का ज़ज्बा बेचैन
लो हार गया मैं साँसे जिंदगी की जुआ से
Saturday, 10 November 2012
Wednesday, 7 November 2012
आह कलेजे से निकली हाय हाय हाय
नहा धोकर जब उसने बाल बिखराए
आह कलेजे से निकली हाय हाय हाय
सांसो में बर्फ सी जम गई आँखों के रस्ते
मुझे देखकर उसने जब होठ दबाए
जिस्म के पुर्जे पुर्जे में हथियार छिपे थे
उफ़ कत्ल खुद का क्यूं नही करवा पाए
नजर उतनी ही गहरी धंसती गई मन में
मेरी ओर देखकर वो जितना मुस्कुराए
यकीन हो ही गया आज सचमुच बेचैन
दिल झूठ से लगाकर हम बहुत पछताए
आह कलेजे से निकली हाय हाय हाय
सांसो में बर्फ सी जम गई आँखों के रस्ते
मुझे देखकर उसने जब होठ दबाए
जिस्म के पुर्जे पुर्जे में हथियार छिपे थे
उफ़ कत्ल खुद का क्यूं नही करवा पाए
नजर उतनी ही गहरी धंसती गई मन में
मेरी ओर देखकर वो जितना मुस्कुराए
यकीन हो ही गया आज सचमुच बेचैन
दिल झूठ से लगाकर हम बहुत पछताए
Friday, 2 November 2012
मुझे माँ के बाद उसी बीवी ने सम्भाला है
मेरे घर में मेरे जहन में जिससे उजाला है
मुझे माँ के बाद उसी बीवी ने सम्भाला है
शुक्र है बच्चों की माँ रूह में उतर गई वरना
साला हरेक रिश्तेदार मेरा देखा भाला है
इसलिए नही रखता मैं इश्कबाजी में यकीन
दिलो दिमाग पर लगा मोहतरमा का ताला है
सिवाय कमाने के मैं और करता भी क्या हूँ
सब बीवी ने जिम्मेवारी का बोझ सम्भाला है
कहो उससे बढ़कर मेरा कौन होगा गमख्वार
जिसके दिलो दिमाग में मेरी फ़िक्र का छाला है
वक्त के रहते पा लो अपने पाप से छुटकारा
दोस्तों मन तुम्हारा अगर कही से भी काला है
कैसे जीते जी भूलूँ उसका अहसान बेचैन
मिटाकर खुद को जिसने मेरे रंग में ढाला है
मुझे माँ के बाद उसी बीवी ने सम्भाला है
शुक्र है बच्चों की माँ रूह में उतर गई वरना
साला हरेक रिश्तेदार मेरा देखा भाला है
इसलिए नही रखता मैं इश्कबाजी में यकीन
दिलो दिमाग पर लगा मोहतरमा का ताला है
सिवाय कमाने के मैं और करता भी क्या हूँ
सब बीवी ने जिम्मेवारी का बोझ सम्भाला है
कहो उससे बढ़कर मेरा कौन होगा गमख्वार
जिसके दिलो दिमाग में मेरी फ़िक्र का छाला है
वक्त के रहते पा लो अपने पाप से छुटकारा
दोस्तों मन तुम्हारा अगर कही से भी काला है
कैसे जीते जी भूलूँ उसका अहसान बेचैन
मिटाकर खुद को जिसने मेरे रंग में ढाला है
Monday, 29 October 2012
सकून देकर के वो बेकसी दे गया
सकून देकर के वो बेकसी दे गया
जाने आँखों में कैसी नमी दे गया
मुझसे लेकर के वादा खुश रहने का
वो बदले में मुझको बेबसी दे गया
मैंने मुस्कुराहट उनसे क्या मांग ली
खुद पे हंसता रहूँ वो हंसी दे गया
शायद मिलकर मुझसे ख़ुशी नहीं मिली
इसलिए वो करार अजनबी दे गया
सीने में जारी है एक घबराहट सी
वो कहने को तो मुझे जिंदगी दे गया
रिश्ता पक्का हुआ दोनों में बीच में
कहकर हाथों में वो एक घड़ी दे गया
बोलकर आखरी बेचैन मुलाक़ात है
अपनी उम्र भर की मुझको कमी दे गया
जाने आँखों में कैसी नमी दे गया
मुझसे लेकर के वादा खुश रहने का
वो बदले में मुझको बेबसी दे गया
मैंने मुस्कुराहट उनसे क्या मांग ली
खुद पे हंसता रहूँ वो हंसी दे गया
शायद मिलकर मुझसे ख़ुशी नहीं मिली
इसलिए वो करार अजनबी दे गया
सीने में जारी है एक घबराहट सी
वो कहने को तो मुझे जिंदगी दे गया
रिश्ता पक्का हुआ दोनों में बीच में
कहकर हाथों में वो एक घड़ी दे गया
बोलकर आखरी बेचैन मुलाक़ात है
अपनी उम्र भर की मुझको कमी दे गया
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